शौक, अभिरुचि या हॉबी एक ऐसा नियमित कार्यकलाप है, जो व्यक्ति अपने खाली समय में मौज-मजे के लिए करता है न कि व्यावसायिक लाभ-हानि के लिए. यह एक ऐसा काम भी बन सकता है जिसके माध्यम से कोई उद्देश्यपूर्ण ज्ञान प्राप्त करके जीविकोपार्जन का जरिया बना सकता है. बीसवीं सदी में भारी अनुसन्धान हुआ है कि जीवन में शौक या शगल का क्या स्थान है? जिससे मानव मात्र के मन-मस्तिष्क का भरपूर विकास हो सके. इसको परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि अभिरुचि ऐसा कार्य है जो बच्चों के खेल से लेकर स्वस्थ वृद्धावस्था तक किया जा सके. इसको अपना व्यवसाय, वृत्ति भी बनाया जा सके तो सोने में सुहागा हो जाता है. हम बहुत ही सौभाग्यशाली हैं कि आज हमारे पास शौकों (अभिरुचियों) का खज़ाना है जिनका उपयोग करके भविष्य में जीवन यापन किया जा सकता है ताकि काम, कार्य न लगकर एक खेल लगे और असीम आनंद की प्राप्ति हो.
२०१७ में राजधानी की एक सुरमई संध्या, ऑडिटोरियम खचाखच भरा था. तालियों की गडगडाहट के बीच डोनाल्ड और डॉ. रीटा को भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा सर्वोत्कृष्ट संगीत सम्मान से सम्मानित किया जा रहा है. उनके साथ-साथ उनके शुभचिंतकों, मित्रों, हितैषियों तथा नगर के लिए यह अत्यंत गर्व का विषय था. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों उन दोनों की आँखों के आगे सम्पूर्ण जीवन यात्रा, संघर्ष, उतार-चढ़ाव एक फिल्म कि मानिंद निकलते चले जा रहे हैं. फ़िल्मी गीतकार शैलेन्द्र जी की ये पंक्तियाँ उनके जीवन में संघर्ष को परिभाषित कर देती हैं:
ऊपर नीचे, नीचे ऊपर लहर चले जीवन की ,
वो नादां हैं जो बैठ किनारे पूछे राह वतन की .
चलना जीवन की कहानी, रुकना मौत की निशानी.
सुप्रसिद्ध गायिका सुर साम्राज्ञी माननीय लता मंगेशकर जी ने एक साक्षात्कार में अपने जीवन संघर्ष का निचोड़ कह डाला था-“ संगीत में सात स्वर होते हैं, जिनको सभी जानते हैं, लेकिन एक आठवां स्वर भी होता है जिसे मैं जानती हूँ. ‘श्रोताओं’ का, ‘गुणीजनों’ का, जिनके बगैर संगीत अधूरा है.” मेरी हैसियत इतनी बड़ी कलाकार के समक्ष नगण्य होने के बावजूद एक बात जोड़ने का दुस्साहस कर रहा हूँ जो उन्होंने ही कभी कहा था. आठवां स्वर है रियाज़ का, नवां स्वर है संघर्ष का तब जाकर दसवां स्वर श्रोताओं का आता है, जिसे सफलता कहते हैं. लता जी का जीवन भी कोई कम संघर्ष मय नहीं था जिसे पार करके वे विश्व प्रसिद्द गायिका बन गईं.
बीसवीं सदी के पांचवें दशक में एक ईसाई शिक्षक दंपत्ति जॉन मेक्लेयाड एवं मैरी मेक्लेयाड के घर गिटार के उदीयमान कलाकार ने जन्म लिया जिसकी ऑंखें गिटार के तारों की झंकार के बीच खुलीं. कानों में पड़ने वाली पहली आवाज़ गिटार की ही थी. कुछ बड़े होने पर घर में रखे हुए गिटार के तारों से डोनाल्ड ने छेड़खानी शुरू कर दी. पिता बहुत ही उम्दा गिटार वादक थे. उनको कुछ समय के बाद लगने लगा कि गिटार बजाने की कला में लड़का आगे बढ़ सकता है, तो डोनाल्ड को सही तरीके से गिटार पकड़ने के साथ-साथ पिक चलाने, तार कसने, ढीले करने का ज्ञान देना आरम्भ के दिया. कहने का तात्पर्य यह कि मूलभूत शिक्षा घर से ही आने लगी. बीच-बीच में पिता गायन का भी अभ्यास करने को कहते, तो गला मांजने का कार्य भी अपनी गति से चलने लगा.
2 -3 साल गुजर जाने पर पिताजी को महसूस हुआ कि इसे किसी योग्य गुरु के सान्निध्य में सिखाना चाहिए. वे स्वयं अपने ही गुरु के पास गए और डोनाल्ड को गिटार सिखाने का निवेदन किया. गुरु ने पहले वार्धक्य के कारण मना किया. पिताजी ने गुरु के चरण पकड़कर येन केन प्रकारेण मना लिया और वे अंततः राजी हो गए. इस तरह विधिवत संगीत शिक्षा प्राप्त होने लगी. जब कुछ बेहतर बजाने लगे तो शुरुआत में छोटी छोटी कक्षाओं में बच्चों के सामने गिटार बजाने का मौका मिला. हम-आप सभी जानते हैं कि किसी भी कान्वेंट स्कूल में ईसाई बच्चों का प्रवेश आसान होता है और वे स्कूल वाले प्रतिभाशाली, विशेष योग्यता रखने वाले बच्चों का विशेष ध्यान रखते हैं. इस तरह विभिन्न चर्चों में गिटार बजाने के अवसर प्राप्त होने लगे. शाला के वार्षिक स्नेह-सम्मलेन में हर साल गिटार बजने और गाने का मौका निश्चित ही था. कभी-कभी कैरव्स में भी अवसर मिला तो अपने आप को जॉन त्रिवोल्टा और माइकेल जैक्सन से कम नहीं समझने लगे.
एक दफा क्रिसमस के अवसर पर किसी चर्च में प्रार्थना के बाद गिटार बजाया तो श्रोताओं मे से एक ओर्केस्ट्रा संचालक के मन को भा गए. उसने अपनी ओर्केस्ट्रा पार्टी स्वर्णिम वाद्य वृन्द में गाने-बजाने का ऑफर दे डाला. सुर को जमाते जमाते गाना तो शुरू कर ही चुके थे. एक बात हमेशा पीड़ा देती रही कि इन सबमे मौलिकता नहीं है, यह काम चल ही रहा था, साथ में बी कॉम, एम् कॉम की पढाई भी चल रही थी. एक दिन किसी कार्यक्रम में ओर्केस्ट्रा पार्टी का नियमित उद्घोषक बीमार पड़ गया तो डोनाल्ड को एंकर का काम करने कहा गया. उस दिन बात कुछ ऐसी जम गयी कि वाहवाही हो गयी. उसी समय मन में ख्याल आया कि हिंदी उच्चारण पर मेहनत करके, कुछ जानकारियां बढाकर उद्घोषक का कार्य भी किया जा सकता है, यानि ओर्केस्ट्रा पार्टी में गाना, गिटार बजाना और एंकरिंग सभी कुछ साथ साथ चलने लगा. थोड़ी बहुत आमदनी भी होती थी जो जेब खर्च, किताबों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुई. पढाई- लिखाई फ्री थी ही. कान्वेंट में एक उपलब्धि जरूर हुई कि हिंदी पढाने वाले टीचर्स इतने बढ़िया मिले कि उन्होंने हिंदी साहित्य विशेषकर हिंदी कविता में भरपूर रूचि जागृत कर दी. ये कवितायेँ एंकरिंग में काम आतीं और इनको संगीतबद्ध करने की महत्वाकांक्षा ने अंगड़ाई लेना शुरू कर दिया.
हिंदी उच्चारण में बेहतर हो जाने पर एक अवसर मिला आकाशवाणी में अंश कालिक उद्घोषक, नाट्य कलाकार बनने का. ऑडिशन हुआ सौभाग्य शाली रहे कि उसमे पास हो गए. इसी सिलसिले में आकाशवाणी जाना होता था, जहाँ एक शास्त्रीय गायिका रीटा जी से मुलाकात हुई जो आकाशवाणी की नियमित मुलाजिम थीं. वे आकाशवाणी पर सुगम संगीत गाया करतीं थीं. मुलाकातें बढीं, प्यार में तब्दील हो गईं. हम लोग एक ही तबके से थे तो विवाह बिना किसी झिकझिक के संपन्न हो गया.
जैसे जैसे ज़िम्मेदारियां बढीं तो दोनों के माता-पिता को चिंता हुई कि ऐसा शौकिया काम से उदर पूर्ति कैसे होगी ? ओर्केस्ट्रा में गाना बजाना, एंकरिंग, आकाशवाणी के नाटक, उद्घोषक आदि काम से नैय्या कैसे पार लगेगी? पिताजी ने बहुत जोर देकर बैंक की परीक्षा का फॉर्म भरवा दिया. पहले तैय्यारियाँ बेमन से शुरू कर दीं, किन्तु जिम्मेदारियों के अहसास ने जम कर तैय्यारी कि प्रेरणा दी. परिणामस्वरूप न केवल लिखित परीक्षा में वरन इंटरव्यू में भी सफल हुए. बैंक स्थानीय था, इस कारण नौकरी, संगीत एक साथ चल पड़ा. रीटा जी विवाह के समय स्नातक पढ़ रही थीं, उनने अपनी पढाई जारी रखी और स्नातकोत्तर, पी एच डी सभी कुछ कर डाला. इसका नतीजा यह निकला कि वे एक कॉलेज में संगीत भी नियमित सिखातीं, आकाशवाणी में भी नियमित गातीं. कहने का मतलब यही कि जीवन एक निश्चित ढर्रे पर चल निकला.
डोनाल्ड और डॉ रीटा जी का जीवन नौकरी एवं संगीत के साथ-साथ सुचारू रूप से चल रहा था कि डोनाल्ड का मन बैंक की नौकरी से उचट गया और स्तीफा देकर पूर्णतः संगीत को ही समर्पित हो गए. तथापि रीटा जी की नौकरी बदस्तूर जारी थी जो संघर्ष के दिनों का मज़बूत संबल रही. इन सब कठिनाइयों के दौर में भी हमेशा मन में एक बात घूमती रहती कि न तो अपनी मौलिकता को खोना है और न कोई समझौता ही करना है. जिसका संघर्ष के दौरान बहुत बड़ा सहारा रहा. धीरे-धीरे कुछ लोगों को संगीत सिखाते-सिखाते अपना स्टूडियो बना लिया जिसमे गिटार बजाकर, गाना गाकर , रेकोर्डिंग करके अपना जीवन यापन करने लगे. आज भी दोनों के देश-विदेश के शिष्य ऑन लाइन ज्ञान प्राप्त करते हैं. उनकी एक मात्र पुत्री भी संगीत से जुडी हुईं हैं और शौकिया तौर पर गातीं हैं, गिटार भी बजाती हैं. इस तरह पारिवारिक परंपरा को ही आगे ले जा रहीं हैं. कुल मिलाकर उन दोनों का जीवन संघर्षमय तो रहा लेकिन उपलब्धियों से भी भरा रहा. मेरे पसंदीदा गीतकार शैलेन्द्र जी की ये पंक्तियाँ सदा उनका आधार रहीं.
होंगे राजे राजकुंवर हम बिगड़े दिल शहजादे,
हम सिंघासन पर जा बैठे जब जब करें इरादे.
सूरत है जानी पहचानी दुनिया वालों को हैरानी.
इस दौरान पुराने सपने “संगीत में कविता” ने सर उठाना शुरू कर दिया. रवीन्द्र नाथ टैगोर , भवानी प्रसाद मिश्र, नीरज, माखन लाल चतुर्वेदी की साहित्यिक कविताओं को स्वरबद्ध करके गाया जो मौलिकता की नज़र से एक बहुत बड़ी उपलब्धि रही. इससे प्रभावित होकर भारतीय ज्ञानपीठ ने “कला अनूप सम्मान” से नवाज़ा.
समय अपनी गति से चल रहा था. जीवन के उतार-चढ़ाव ने धीरे-धीरे सफलता की ओर कदम बढ़ाना शुरू कर दिया था. इस संगीत मर्मज्ञ युगल को बरसों गाते -बजाते इतने पुरुस्कार, इतने विभिन्न सम्मान प्राप्त हुए हैं कि उनकी यदि गिनती करने बैठूं तो यह जगह और समय दोनों कम पड़ जायेंगे. न केवल उन दोनों ने वरन उनकी बेटी ने कवि नीरज जी की इन पंक्तियों को अपने जीवन में साकार कर रखा है:-
जिंदगी ने कर लिया है स्वीकार ! अब तो पथ यही है, यही है !!
यह तो बात हुई मेरे मित्र एवं उनकी श्रीमतीजी के विषय में बात, जिनने अपने शौक संगीत को प्रोफेशन में तब्दील कर डाला. इस आलेख का समापन करने के पूर्व अपनी बात कहना चाहता हूँ. अपने अनुभवों तथा विभिन्न सर्वे एवं अध्ययनों में पाया है कि अपने शगल को रोजी रोटी कमाने का साधन बनाने वाले महापुरुषों, में निम्नलिखित चरित्रगत विशेषताएं, सद्गुण उभर कर दृष्टिगोचर होने लगते हैं, जो हमारे संगीतकार युगल में कूट-कूट कर भरे हैं.
आत्मविश्वास और आत्मगौरव युक्त व्यक्तित्व का निर्माण.
चूँकि अभिरुचि ही पेशा है तो पेशेगत तनाव दूर भागता है बल्कि शौक को निरंतर कार्य में परिणित करने की ख़ुशी कुछ अलग ही आनंद का अनुभव है.
सामाजिक जीवन को बेहतर बनाकर धैर्य धारण स्वतः ही आ जाता है.
जीवन को समृद्धिशाली बनाकर किसी भी भौतिक वस्तु तथा मानसिक आल्हाद के लिए एक नवीन दृष्टिकोण का विकास स्वतः हो जाता है.
जीवन में नित नवीन लक्ष्य सृजित होता रहता है, जिसे प्राप्त करने की चुनौती निरंतर सामने मौजूद रहती है.
जीवन में इससे बेहतर कुछ हो नहीं सकता कि कुछ लोग अपने शौक या शगल या अभिरुचि को अपना व्यवसाय या आजीविका का साधन बनाने में सफल हो जाते हैं. यह न सिर्फ आपके खाली समय को भर देता है बल्कि बुरी आदतों, बुरी संगत, समय की बर्बादी से बचाते हुए असीम आनंद का स्त्रोत बनता चला जाता है. सम्पूर्ण संगीत मर्मज्ञ मेक्लेयाड परिवार को आपकी तथा मेरी तरफ से उज्जवल भविष्य हेतु हार्दिक शुभकामनायें प्रेषित करना चाह रहा हूँ. इन दिनों मेक्लेयाड दंपत्ति ऑन लाइन संगीत-गायन, वादन की शिक्षा देने में व्यस्त रहते हैं. विभिन्न स्तरों पर आकाशवाणी, दूरदर्शन, विभिन्न वाद्यवृन्द समूहों जैसे ओल्डीज़, गीत गाता चल आदि, में अपने कार्यक्रम देते रहते हैं.
जहाँ तक संगीत का प्रश्न है उसका ज्ञान, उसकी गहराई तभी पता लगती है और समझ में आती है, जब आप किसी महान गुरु के संपर्क में आते हैं, शिक्षा ग्रहण करते हैं. संगीत का ज्ञान बिना गुरु के असम्भव है- ऐसा मैं मानता हूँ. यह ज्ञान ऐसा नहीं होता जिसको किताबों में पढ़कर, कॉलेज जाकर बिना रियाज़ सीखा जा सके. मध्य प्रदेश में मुख्य रूप से इंदिरा संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ तथा मान सिंह तोमर कला एवं संगीत विश्वविद्यालय, ग्वालियर हैं. इनसे सम्बद्ध कॉलेज में संगीत विषय की पढाई भी होती है और डिग्री भी दी जाती है. उसके बाद निरंतर नियमित रियाज़, कड़ी मेहनत और आपकी किस्मत शिखर तक पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोडती. इसी बात पर शायर साहिर लुधियानवी कि चार पंक्तियाँ बहुत ही मौजू हैं:
अश्कों ने जो पाया है, वो गीतों में दिया है,
हर्षवर्धन व्यास , गुप्तेश्वर , जबलपुर
[…] संगीत के अतिरिक्त स्वर : रियाज़, संघर्ष, … SOURCEBy Anju Kanwar Share Facebook Twitter Google+ Pinterest WhatsApp Previous articleगांधीवाद की प्रासंगिकताNext article‘लेखन’-एक हॉबी जरूरी है|प्रकार-कैरियर की संभावना-पुस्तकों-पुरस्कारों 'मन ओ मौसुमी'https://monomousumi.com/HINDI''मन ओ मौसुमी', यह हमारे जीवन को बेहतर बनाने के लिए, भावनाओं को व्यक्त करने और अनुभव करने का एक मंच है। जहाँ तक यह, अन्य भावनाओं को नुकसान नहीं पहुँचा रहा है, इस मंच में योगदान देने के लिए सभी का स्वागत है। आइए "शब्द" साझा करके दुनिया को रहने के लिए बेहतर स्थान बनाएं।हम उन सभी का स्वागत करते हैं जो लिखना, पढ़ना पसंद करते हैं। हमें सम्पर्क करें monomousumi@gmail.com या कॉल / व्हाट्सएप करे 9869807603 पे var block_td_uid_5_5f7c7809d9f17 = new tdBlock(); block_td_uid_5_5f7c7809d9f17.id = "td_uid_5_5f7c7809d9f17"; block_td_uid_5_5f7c7809d9f17.atts = '{"limit":3,"sort":"","post_ids":"","tag_slug":"","autors_id":"","installed_post_types":"","category_id":"","category_ids":"","custom_title":"","custom_url":"","show_child_cat":"","sub_cat_ajax":"","ajax_pagination":"next_prev","header_color":"","header_text_color":"","ajax_pagination_infinite_stop":"","td_column_number":3,"td_ajax_preloading":"","td_ajax_filter_type":"td_custom_related","td_ajax_filter_ids":"","td_filter_default_txt":"All","color_preset":"","border_top":"","class":"td_uid_5_5f7c7809d9f17_rand","el_class":"","offset":"","css":"","tdc_css":"","tdc_css_class":"td_uid_5_5f7c7809d9f17_rand","tdc_css_class_style":"td_uid_5_5f7c7809d9f17_rand_style","live_filter":"cur_post_same_categories","live_filter_cur_post_id":915,"live_filter_cur_post_author":"1","block_template_id":""}'; block_td_uid_5_5f7c7809d9f17.td_column_number = "3"; block_td_uid_5_5f7c7809d9f17.block_type = "td_block_related_posts"; block_td_uid_5_5f7c7809d9f17.post_count = "3"; block_td_uid_5_5f7c7809d9f17.found_posts = "13"; block_td_uid_5_5f7c7809d9f17.header_color = ""; block_td_uid_5_5f7c7809d9f17.ajax_pagination_infinite_stop = ""; block_td_uid_5_5f7c7809d9f17.max_num_pages = "5"; tdBlocksArray.push(block_td_uid_5_5f7c7809d9f17); […]