दुनिया

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मैं क्यों चलू दुनिया के हिसाब से, 

दुनिया चलती है क्या मेरे अंदाज़ से|

समुद्र में कई लहरें है, जिनमें

डूब रहे मेरे दिल के राज़ गहरे है

पर बताऊँ किसे, यहाँ तो जगह पर बुराई के पहरे है

मेरी आवाज़ किसी तक पहुँचती क्यों नहीं, क्या यहाँ सब बहरे हैं? 

मेरा हर सपना टूट ही जाता है, 

मेरा रास्ता हमेशा छूट ही जाता है,

मेरा दर्द आंसू बनकर बह जाता है, 

मेरा हर सपना अधूरा रह ही जाता है 

और मुझसे ये बात कह जाता है

कि ये दुनिया बुराई का साया है

यहाँ चलती सिर्फ माया है, 

तुझे अपनी राह खुद बुननी है 

तुझे अपनी मंजिल खुद चुननी है, 

हमेशा चलते रहना कभी मत घबराना 

एक दिन तेरी भी मंजिल आएगी

और ये बुराई इस जहां से मिट जाएगी|

दुनिया की यही असलियत है, 

हर इंसान की यही शख्सियत है||

By Nitu Ohlan, Delhi

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