विश्व का सर्वश्रेष्ठ प्राकृतिक परिदृश्य: भेडाघाट, धुआंधार

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त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवि नर्मदे – नर्मदाष्टक 

भूमिका:- प्राकृतिक रूप से जबलपुर अनेक विविधताओं से परिपूर्ण है. संगमरमरी वादियों के लिए विश्व प्रसिद्द प्राकृतिक मनोहारी छटा से आच्छादित नर्मदा नदी के अनेक तीरों में से भेडाघाट प्रमुख धरोहर है. उसी से लगा हुआ धुआंधार- जल प्रपात जहाँ संगीत लहरी बिखेरता है, वहीँ दूसरी ओर यहाँ की संगमरमर की पहाड़ियां, चट्टानें दर्शकों के मन को मुग्ध कर देती हैं. मेरी लेखनी और हिंदी व्याकरण के समस्त विशेषण इस स्थल की सुन्दरता का वर्णन करने में कमजोर पड़ सकते हैं लेकिन प्राकृतिक दृश्यावली नैनों को सुकून, दिल को चैन, मनः शांति प्रदान करने में सिद्धहस्त हैं. 

इतिहास:- यह निर्विवाद है कि आधुनिक जबलपुर दसवीं शताब्दी में ‘जाबालिपत्तन’ के नाम से जाना जाता था. इस नगर पर कलचुरी शासकों का लगाव व अनुग्रह, विशेष रूप से कहा जाता है. जबलपुर के चारों तरफ फैली, बिखरी हुई विशेष शिलाओं को देखकर एक लोकाचार भी प्रचलन में पाया गया है कि ‘शिलाखंडों’ को अरबी भाषा में ‘जबल’ कहा जाता है, परिणामस्वरूप नगर का नाम अंग्रेजों ने “जब्बलपोर” रखा, जो कालांतर में जबलपुर के रूप में अपभ्रंशित हो गया. कुछ विद्वानों का मत है कि यह जाबाली ऋषि  की तप-स्थली रही है, जिनके नाम पर यह जाबालिपत्तन, जब्बलपोर और जबलपुर हुआ. यह बात उतनी तर्कसंगत नहीं प्रतीत होती है क्योंकि जाबालि  ऋषि का उल्लेख भारतीय दर्शन में नास्तिक आचार्यों के रूप में आता है. आधुनिक काल में बीसवीं सदी के छटवें दशक में आचार्य विनोबा भावे ने इसका नामकरण “संस्कारधानी” किया.    

    संगमरमरी चट्टानों का विहंगम दृश्य: भेडाघाट 

             

जबलपुर सड़क मार्ग, रेल मार्ग और हवाई मार्ग से देश के विभिन्न शहरों से जुड़ा है. मनोरम संगमरमरी वादियाँ शहर से लगभग २४-२५ किमी की दूरी पर हैं, जहाँ आवागमन के विभिन्न साधन यथा: टैक्सी, ऑटोरिक्शा, स्वयं के वाहन आदि से सुगमता पूर्वक पहुँचा जा सकता है. भेडाघाट में जिस जगह सवारियां उतारते हैं, वहां से १००-१५० सीढियां उतरकर पंचवटी घाट है. इसी घाट पर नौकायन का आनंद लेने के लिए नावें मल्लाह सहित उपलब्ध रहतीं हैं. वर्षाकाल के पश्चात् लगभग ९ माह तक नौका-विहार किया जा सकता है. भेडाघाट प्रकृति की अदभुत कारीगरी का एक नायाब तोहफा एवं नयनाभिराम नमूना है. संगमरमर की ऊंची-ऊंची पहाड़ियों को काटती हुई नर्मदा नदी भेडाघाट को अनुपम, अनोखा सौन्दर्य प्रदान करती हैं. इसको देखने प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में देश-विदेश से पर्यटक आते हैं. चांदनी रात में भेडाघाट का सौन्दर्य अपने यौवन पर होता है, तब इसकी सुन्दरता कई गुनी बढ़कर दिखाई देती है.

भेडाघाट में नौकायन के दौरान जो सौन्दर्य दर्शन होता है, वह अनुपम, स्वर्गिक, पारलौकिक अनूभूति देने वाला होता है. इसमें ४५ से ५० मिनिट का समय लगता है. यहाँ केवल मल्लाह चालित नौकाओं को चलाने की अनुमति है, जिसमे नाविक एक कुशल मागदर्शक की भूमिका निभाता चलता है. नौकायन आरम्भ होते ही सफ़ेद संगमरमर के अलावा स्लेटी, नीले, गुलाबी संगमरमर की चट्टानें दृष्टिगोचर होने लगती हैं. थोड़ा आगे जाने पर भूल-भुलैयां, जहाँ पर्यटक के लिए यह बताना कठिन हो जाता है कि नर्मदा का प्रवाह किस ओर से आ रहा है? प्राकृतिक रूप से निर्मित हाथी का मस्तक, टूटी-फूटी क्षतिग्रस्त कार आदि भी देखने मिल जाते हैं, ये सभी संगमरमर की चट्टानों में अपने आप बने हैं. कुछ दूर और बढ़ने पर दो प्रेमियों के मिलने/बिछड़ने के परिणाम वगैरह स्थानीय गाइडों/ मल्लाहों द्वारा श्रुतियों तथा स्वनिर्मित नमक-मिर्च मिश्रित विशेषताओं से अवगत कराया जाता है.

नौकाविहार:- जिस जगह से नौकायन आरम्भ हुआ, वहां नर्मदा नदी की गहराई ६०-७० फुट है जो आगे जाकर लगभग 200 फुट हो जाती है. उल्लेखनीय है कि नर्मदा के दोनों किनारों पर लगभग 90-100 फुट ऊंचे पहाड़ों, चट्टानों की श्रृंखला है जिसके मध्य घाटी में पुण्य सलिला सिद्धिदायनी नर्मदा प्रवाहित होती रहती है. आगे बीच नदी में एक चट्टान पर शिवलिंग स्थापित है, जिसकी स्थापना कहा जाता है कि अहिल्या बाई होलकर ने की थी. कुछ और आगे जाने पर ऐसा आभास होता है कि नदी के दोनों किनारों पर स्थित पहाड़ों के शिखर तुलनात्मक रूप से करीब हो गए हैं- इसे बन्दर कूदनी कहते हैं. संभवतः कभी कोई वानर कूदकर इस पार से उस पार गया होगा. बीच-बीच में नाविक बताता चलता है कि अमुक स्थान पर, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, प्राण जाये पर वचन न जाये’, ‘अशोका’ आदि फिल्मों की शूटिंग हुई थी. तथापि एक सत्यता तो है कि संगमरमर के इतने ऊंचे एवं गहरे पहाड़ दुनिया में अन्यत्र नहीं हैं.

 वैसे तो प्रत्येक पूर्णिमा की रात में नौका विहार एक स्वर्गिक अनुभव होता है जब जल प्रवाह रजत प्रवाह में तब्दील हो जाता है. लेकिन शरद पूर्णिमा की रात यहाँ अमृत वर्षा के साथ जो ख़ुशी और आनंद की प्राप्ति होती है, वह पारलौकिक, अदभुत, चिर-स्मरणीय, और कमाल की होती है. जब नाव रजत प्रवाह में से गुजरती है तो यकीन मानें कि प्रकृति अपने ही सौन्दर्य में कई गुना वृद्धि कर देती है जो संसार में कहीं भी उपलब्ध नहीं है. पारदर्शक, स्वच्छ जल पर क्षीर का निर्माण करने वाले मैग्नीसियम युक्त चूने के  पत्थर की सफ़ेद चट्टानों, गुलाबी, स्लेटी, नीले रंग की संगमरमरी चट्टानों के बीच से प्रवाहित होने वाली नर्मदा यानि कुल मिलकर इस स्थल की सुन्दरता स्वयं निखार पर आ जाती है.   

लोककथा:- संगमरमरी चट्टानों में प्राकृतिक कटावों के अप्रतिम सौन्दर्य के पीछे एक जनश्रुति, लोककथा प्रचलित है. नर्मदा का विवाह सोनभद्र नामक राजा (संभवतः समुद्र) के साथ तय किया गया . राजा का मन नर्मदा से मिलने को हुआ. इधर साथ-साथ नर्मदा भी अपने भावी पति का दर्शन लाभ लेने को उत्सुक हुईं. नर्मदा अपनी दासी लेकर, सोनभद्र से मिलने के लिए चल पड़ीं. ऐसा कहा जाता है कि नर्मदा की दासी, जो उनके आगे-आगे चल रही थी, नर्मदा के समान अतीव सुंदरी थी. सोनभद्र भी शनैः-शनैः  आगे बढ़ता चला आ रहा था. नर्मदा को मिलने पूर्व उसको नर्मदा की दासी आगे चलने के कारण पहले ही मिल गयी. यहीं  सोनभद्र उक्त दासी को नर्मदा समझने की गलती कर बैठा. बस फिर क्या था ! नर्मदा बिफर गई और भारी उथल-पुथल मचाती हुई लौट पड़ीं. नर्मदा और सोनभद्र का मिलन (भेडा) इसी जगह पर हुआ था. इस नाम की व्युत्पत्ति ‘भेडा’ शब्द से हुई है जिसका अर्थ है संगम स्थल. इसी कारण इस जगह को “भेडाघाट” कहा जाता है. नर्मदा की नाराजगी का एक प्रमाण और भी दृष्टिगोचर होता है. देश की लगभग सारी नदियाँ पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं, जबकि नर्मदा एक मात्र नदी है जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है. इसके अलावा  नर्मदा समुद्र में समाप्त न होकर खाड़ी (खम्बात की खाड़ी) में विलीन हो जाती है. परिणामस्वरूप नर्मदा (रेवा) को कुंवारी नदी भी कहा जाता है. नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक की पहाड़ियां हैं, सोनभद्र नदी भी वहीँ से निकलती है, परन्तु दोनों के प्रवाह एक दुसरे से विपरीत दिशा में आरम्भ होते हैं. इसके मूल में  भी वही लोक-कथा है. एक प्रचलित मान्यता के अनुसार साधक को सिद्धि प्राप्त करने के लिए नर्मदा तट पर साधना करना ही पड़ती है.  

  धुआंधार


जलप्रपात :- पंचवटी घाट से लगभग २ किमी ऊपर की तरफ नर्मदा नदी का एक बहुत ही सुन्दर और भव्य मनोहारी जल-प्रपात है. यहाँ लगभग 95-100 फुट की ऊँचाई से पानी गिरता है, गिरने के कारण पानी की नन्हीं- नन्हीं बूँदें हवा में ऊपर की ओर उडती रहतीं हैं तथा धुएं का अहसास कराती हैं. इसी वज़ह से इस प्रपात का नाम धुआंधार किया गया है. गिरने के बाद यही प्रवाह आगे ऊंची-ऊंची संगमरमरी चट्टानों के बीच से होता हुआ पंचवटी घाट तथा और भी आगे जाता है. दोनों पर्यटन स्थल पर आधारभूत सुविधाएँ जैसे पक्के घाट, पेय जल सुविधा, विद्युतीकरण, दुकानें, पार्किंग, कटाव का रखरखाव, मंदिरों का संरक्षण-संवर्धन आदि. यहाँ पर एक से बढ़कर एक शिल्पकार मौजूद हैं, जो सॉफ्ट संगमरमर पत्थर की बेमिसाल सुंदर कलाकृतियाँ बनाते हैं, खरीदी के समय मोल-भाव करने की सलाह दी जाती है.

शहर के स्वनामधन्य विशेष व्यक्ति:- यहाँ पर एक बात बताना आवश्यक समझता हूँ कि जबलपुर का नाम रोशन करने वालों में नामचीन व्यंगकार हरिशंकर जी परसाई, महर्षि महेश योगी, अभिनेता प्रेमनाथ, आचार्य/भगवान रजनीश या ओशो जैसी हस्तियों का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है.. इसके अलावा प्राक्रतिक सौन्दर्य एवं नर्मदा नदी का आसपास सतत प्रवाह शहर की सुन्दरता में चार चाँद लगा देता है. जैसा ऊपर बता ही चुका हूँ कि शहर से लगभग २४-२५ किमी दूर विश्व का एक मात्र प्रकृति निर्मित दर्शनीय स्थान भेडाघाट, धुआंधार है; जिसके बारे में ओशो का कथन गागर में सागर की तरह है. ओशो अर्थात रजनीश इस शहर में पढ़े, पढाया (प्रोफेसर रहे) किन्तु भगवान रजनीश होते ही उनने जबलपुर त्याग दिया और ओशो के नाम से जग प्रसिद्द हो गए. ये दुनिया उनकी देखी हुई है, घूमी हुई है- अतः भेडाघाट के विषय में उनके उदगार काबिले तारीफ़ हैं तथा गौर करने लायक हैं:

उद्गार:- “मैं जबलपुर में बरसों रहा. जबलपुर में इस जगत का , इस पृथ्वी का सुंदरतम स्थल है- भेडाघाट. मेरे हिसाब से शायद इस पृथ्वी पर इतनी सुंदर जगह कोई दूसरी नहीं है. दो मील तक नर्मदा संगमरमर की पहाड़ियों के बीच से बहती है. दोनों तरफ संगमरमर की पहाड़ियां, हजारों ताजमहल का सौन्दर्य इकठ्ठा, फिर बीच से नर्मदा का बहाव बड़ा अपूर्व नयनाभिराम दृश्य है. पूर्णिमा की रात में इतना जादू हो जाता है और भरोसा ही नहीं आता कि पृथ्वी पर इतना सौन्दर्य हो सकता है.”

नर्मदा पुराण का उद्धरण:-उस प्राकृतिक दृश्य का, उसकी सुन्दरता का इससे सटीक और सरल भावानुवाद हो पाना शायद असंभव है. इस नयनाभिराम सौन्दर्य के अतिरिक्त एक बात और भी मनन करने योग्य है. नर्मदा पुराण के अनुसार जो पुण्य लाभ गंगा नदी में नहाने से प्राप्त होता है, वही पुण्य लाभ कुंवारी नर्मदा के दर्शन मात्र से मिल जाता है. शहर से लगे हुए नर्मदा के तीन-चार घाट हैं. इनमे से किसी भी घाट पर कभी भी जाकर उसके किनारे बैठकर मात्र नर्मदा के जल प्रवाह को निरखते रहें, निहारते रहें, देखते रहें- जो अनुभूति होती है उसको शब्दों में लिख पाना लगभग असंभव है. वह वर्णनातीत है. यह स्वानूभूत सच्चाई है. उसको चाहे मनोवैज्ञानिक अनुभव कह सकते है अथवा प्राकृतिक सुन्दरता का संसर्ग; कोई न कोई ऐसी अदृश्य शक्ति अपना प्रभाव अवश्य डालती है, जिसे समझ पाना साधारण मानवों की शक्ति, क्षमता, ज्ञान एवं बुद्धि के परे है. इसे ही अंग्रेजी में कहते हैं- TOTAL MESMERISM.

उपसंहार:- अब धुआंधार में रोप वे लग चुका है जो सम्पूर्ण परिदृश्य के प्रति एक नवीन दृष्टिकोण को जगाता है. हो सकता है मेरी लेखनी, मेरे अनुभव, मेरे ज्ञान में उतनी क्षमता न हो जो भेडाघाट- धुआंधार सरीखे विश्व के एकमात्र उक्त अप्रतिम, आश्चर्यपूर्ण, अलबेले प्राकृतिक दृश्य की सम्पूर्ण सुन्दरता को समेट सके. अतः मेरा करबद्ध अनुरोध है कि संसार के इस सर्वश्रेष्ठ प्राकृतिक परिदृश्य का स्वचक्षु से सौन्दर्य पान एक भिन्न अलौकिक अनुभव ताजिंदगी यादगार रहेगा. आखिर प्रकृति से बड़ा रचनाकार कौन हो सकता है!

सिद्धिदायनीमाँरेवाकेचरणोंमेंविनम्रतापूर्वकसमर्पित.

नोट:- इसमें प्रयुक्त फोटो मेरे द्वारा पिछली भेडाघाट यात्रा में लिए गए हैं.   

हर्षवर्धनव्यास , गुप्तेश्वर ,जबलपुर (म.प्र.) जबलपुर (म.प्र.)

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