ऑडियो बुक

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आज मेरी तृतीय सेमेस्टर की पहली क्लास थी। नए नए विषयों की शुरुवात हुई। उन्हीं में से एक विषय "PRODUCTION OF RADIO PROGRAMS" था। जैसा कि मैंने बताया , आज पहली क्लास थी इसीलिए विषयों की डिटेल में न जाकर उनसे जुड़ी ऊपर ऊपर की बातों के बारे में प्रोफेसर महोदय जिक्र कर रहे थे। इसी क्रम में AUDIOBOOK की बात निकली ।

 वैसे तो मेरे हिसाब से सभी इस टर्म से परिचित होंगे और जो नहीं होंगे परिचित वो इस टर्म को पढ़ कर मोटा मोटी अनुमान लगा ही चुके होंगे , फिर भी मैं बताता चलूं कि AUDIOBOOK के माध्यम से हम किसी किताब/कहानी को पढ़ने के बजाय सुनते है और समझते हैं। आजकल तो इसका प्रचलन काफी बढ़ गया है। कोविड के दौर में जब लॉकडाउन लागू हुआ तो सभी अपने अपने घरों में बंदी बन गए । वो दिन गुजारने और मनोरंजन के लिए कई तरह की चीजों का इस्तेमाल किया। हमने तो फोन में लूडो खेल कर और टीवीपुरम पर रामायण देखकर वक्त गुजारा । कुछ समय के लिए अपन ने भीAUDIOBOOK के माध्यम से आधा दर्जन से अधिक किताबों को सुन डाला । यकीनन और भी कई लोगों ने AUDIOBOOK के माध्यम से अपना मनोरंजन किया होगा साथ ही साथ अपने ज्ञान को भी बढ़ाया होगा। 

जैसा कि हम सब जानते हैं 105AD में चीन ने पहली बार पेपर की खोज की थी। "THE ADVENTURE OF TOM SAWYER" टाइपराइटर पर लिखी गई दुनिया की पहली किताब थी और "BIBLE" प्रिंटिंग प्रेस में छपने वाली दुनिया की पहली किताब थी। इसके बाद तो करोड़ों से भी अधिक किताब अस्तित्व में आई। अकेले 2.8 करोड़ से अधिक किताबे तो अमेरिका की THE LIBRARY OF CONGRESS में मौजूद हैं। कुछ दशक पहले तक सिर्फ़ मुख्य शहरों में ही किताब मिला करती थी। ( एक दो अपवाद भी हो सकता है इसमें ) किताब पढ़ने का शौक रखने वाले वैसे लोग जो एक संपन्न परिवार से आते थे वह महीना दो महीना पर शहर में जाकर किताबें खरीद कर लाते थे, फिर पढ़ते थे। कुल मिला जुलाकर यह बात निकल कर सामने आती है कि किताब सबके पहुंच से काफी दूर था और जिनकी पहुंच में था भी , उनको भी इस प्रक्रिया को पूरा करने में अपना काफी सारा वक्त देना पड़ता था । 

समय के साथ-साथ आधुनिकीकरण होता गया , किताबें मुख्य शहरों से निकलकर छोटे शहरों में भी फैल गई, गांवों और कस्बों में भी पुस्तकालय खुलने लगी । धीरे-धीरे यह लगभग आधी आबादी के पहुंच में था परंतु आधी आबादी तो ना शिक्षित थी और ना ही संपन्न तो कुल मिला जुलाकर पहुंच में होने के बाद भी बहुत लोगों से दूर था । फिर कंप्यूटर/इंटरनेट/स्मार्टफोन का दौर आया। बहुत सारी किताबें इंटरनेट पर उपलब्ध हो गई जिनको e-books के नाम से जानते है। अब लोगो को किसी किताब को पढ़ने के लिए उसको बाजार में जाकर खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती थी बस इंटरनेट के माध्यम से e-books को डाउनलोड किया और पढ़ना चालू कर दिया। लेकिन इसमें भी कुछ समस्या थी जैसे सारी किताबें e-book के रूप में मिलती नहीं, जो मिलती उनको कंप्यूटर या स्मार्टफोन पर पढ़ना आंखों के लिए आरामदायक नहीं था इसके कारण किसी e-book को पढ़ने में काफी समय लग जाता और आंखों के लिए तो खतरा था ही। इसके बाद AUDIOBOOKS का चलन शुरू हुआ। अब लोगों को किताबें पढ़ने की कोई जरूरत नहीं थी बस कान में इयरफोन डाला और AUDIOBOOK चालू किया और बचपन में जैसे दादी नानी से कहानियां सुना करते थे वैसे ही सुनना चालू कर दिया। 1 से 1.5 घंटे में किताब सुनकर, काम खत्म । वर्क फ्रॉम होम/ऑनलाइन क्लासेज चालू होने की वजह से कंप्यूटर/स्नार्टफोन के इस्तेमाल करने का समय वैसे ही अधिक हो गया था, ऐसे में e-book को पढ़ने से अधिक अच्छा और सहूलियत AUDIOBOOK में थी इन्ही सब कारणों से इसका चलन तेजी से बढ़ा।Audible,GiGl,Kindle, Spotify.... जैसे सैकड़ों ऐप्स है जो AUDIOBOOKS की सुविधा उपलब्ध करा रही हैं।
 
सही मायनों में एक बात कहूं तो जो मजा, जो रुचि, जो समझ, जो जिज्ञासा किसी किताब को अपने हाथों में पकड़ कर पढ़ने में आता है वह AUDIOBOOKS में नहीं। ये मेरी अपनी राय है, बहुत सारे लोग मेरी राय से सहमत नहीं होंगे शायद! आज काफी देर तक इस पर विचार किया, बहुत सारी बातें निकल कर आई । अगर किताबों से ज्यादा AUDIOBOOKS को महत्व दिया जाए तो पाठक वर्ग की संख्या में भारी गिरावट आएगी और आने वाले कुछ सालों में ही इसका दुष्प्रभाव देखने को मिलने लगेगा। एक तो वैसे ही शिक्षा की स्थिति दिन प्रतिदिन बदहाल होती जा रही है। यह बात सभी को मालुम है किसी से छिपी तो है नहीं। ऐसे में पाठक वर्ग की संख्या बढ़ी तो इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, लोग तर्कशील बनेंगे, ज्ञान की वृद्धि होगी।परंतु एक सत्य भी है कि किताबों का चलन घटने से पेपर की इस्तेमाल में भी कमियां आएंगी और पेड़ों की कटाई का दर घटेगा , जैसा कि हम सब जानते हैं हमारी पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रही है ऐसे में पेड़ों की कटाई का दर घटना एक अच्छे संकेत के तौर पर देखा जा सकता है। 

मैं तो अभी भी इस दुविधा में हूं की किसको बढ़ावा दिया जाए किताबों को या फिर AUDIOBOOKS को ! आप भी विचार करें। 

प्रियांशु राज बिक्रमगंज, रोहतास (बिहार)

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