भारत का सबसे लोकप्रिय त्योहार “दिवाली”

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     रोशनी का त्योहार दीपावली भारत के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है, हालांकि यह त्योहार ना केवल भारत में बल्कि दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माने जाने वाले इस त्योहार को रोशनी का त्योहार भी कहा जाता है और जो अंधकार में रोशनी का विजय प्रतीक है। 

       14 साल के वनवास के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के अयोध्या वापस 

आने की खुशी में दिवाली का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है। जब रावण का वध करके अयोध्या नगरी वापस आए तब नगर वासियों ने अयोध्या को दीपक से दुल्हन की तरह सजाया था। तब से लेकर आज तक की परंपरा चली आ रही है कि कार्तिक अमावस्या के अंधकार को दूर करने के लिए रोशनी के दीप जलाए जाते हैं। खास बात तो यह है कि यह केवल एक दिन का नहीं बल्कि पाँच दिनों तक मनाया जाने वाला पांच पर्वों का अनूठा त्यौहार है। दीपावली के पर्व की शुरुआत धनतेरस के दिन से ही हो जाती है और उसके बाद खुशियों का सिलसिला लगातार पांच दिनों तक नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा व भाई दूज के दिन तक चलता रहता है। पाँच दिनों तक मिट्टी के दीए जलाकर अपने घरों में रोशनी करते हैं और आपस में मेल मिलाप का सिलसिला भी चलता 

रहता है। सबसे पहले धनतेरस मनाया जाता है। धनतेरस के दिन बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है इस दिन नए बर्तन खरीद कर उसमें पकवान रखकर भगवान को भोग लगाते हैं। धनतेरस पर पूजा करने से माता लक्ष्मी की असीम कृपा बनी रहती है। इस दिन चांदी के बर्तन या जेवर या फिर सिक्का भी खरीदा जा सकता है। धनतेरस के बाद दूसरा दिन आता है नरक चतुर्दशी के रूप में जो छोटी दिवाली के नाम से भी प्रसिद्ध है। नरक चतुर्दशी के दिन अपने घर की साफ सफाई करनी चाहिए, साथ ही शरीर पर उबटन लगा कर स्नान करना भी चाहिए।

      शरद ऋतु का दिल खोलकर स्वागत करता हैं, दिवाली का त्योहार- शरद उत्सव की ऋतु है और उन उत्सवों में दीपावली पर्व का विशेष स्थान है। हमारे उत्सवों का संबंध धार्मिक प्रसंगों से तो है ही ऋतुओ से भी है। विशेष ऋतु से 

विशेष त्यौहार जुड़ा है जिसका अपना महत्व है। शरद ऋतु में मौसम बड़ा सुहावना हो जाता है साथ ही किसानों के लिए भी यह समय विशेष होता है।

      स्वच्छता से जोड़ती है कड़ी- अंधकार पर प्रकाश की विजय के प्रतीक व सुख-समृद्धि के आगमन के जश्न में मनाए जाने वाले इस पर्व की तैयारियां दीपावली के दिन से बहुत पहले ही शुरू हो जाती हैं। लोग अपने घरों की साफ-सफाई कर उन्हें सजाने संवारने का काम करते हैं। वर्षा ऋतु के बाद जब शरद ऋतु आती है तो मौसम मनभावन हो जाता है। आसमान में छाए रहने वाले काले-काले बादल हट जाते हैं तथा आसमान एकदम साफ व नीला दिखाई देता है। रात को चांद अपनी शीतल चांदनी से पूरी धरती को प्रकाशित कर देता है।

       नदियों का पानी एकदम साफ निर्मल हो 

जाता है। हर समय गिली रहने वाली भूमि सूखने लग जाती हैं। प्रकृति अपने नए साज श्रृंगार में व्यस्त हो जाती हैं, जिससे सभी का मन उत्साहित रहता हैं। वर्षा ऋतु में हर जगह नमी रहने के कारण अनेक तरह के विषय में कीड़े मकोड़े व जीव जंतु पैदा हो जाते हैं जो मनुष्य और जानवरों को हानि पहुंचाते हैं। अधिक बारिश होने के कारण घरों की दीवारों और छतों में सीलन आ जाती है, जो स्वास्थय के लिए अत्यंत हानिकारक है। इस वजह से घर व आंगन की साफ सफाई करनी अति आवश्यक है। वर्षा की वजह से खराब हुए घरों में लिपाई व पुताई आवश्यक हो जाती है। इसलिए वर्षा काल के बाद जब शरद ऋतु का यह सुहाना मौसम आता है तो लोग सबसे पहले अपने घर और आंगन की साफ सफाई में व्यस्त हो जाते हैं जिससे कीड़े मकोड़ों का नाश होता है। 

विशेषज्ञों का कहना है कि इस पर्व पर सरसों के तेल में दीपक जलाने से वातावरण से रोगाणु में जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और वातावरण स्वास्थ्यप्रद हो जाता है। इस ऋतु में दीपावली पर्व के बहाने साफ सफाई भी हो जाती है और हर तरफ रोशनी भी फैल जाती है जो कि बेहद अहम है।

      सुख समृद्धि का महोत्सव- अपना देश एक कृषि प्रधान देश है। इस समय कृषक वर्ग की भी धान व गन्ने की खेती पूरी तरह से पक जाती है और किसान की लक्ष्मी तो उसकी फसल ही होती है। इसलिए कृषक वर्ग भी अत्यधिक उत्साहित रहता है। कुल मिलाकर यह त्यौहार हिंदू धर्म के हर वर्ग के लिए नए उत्साह व खुशियों भरा त्यौहार है सुख समृद्धि के स्तर पर लोग नए कपड़े, जेवर व जरूरत की वस्तुओं की जमकर खरीदारी करते हैं।

       वास्तव में यह त्यौहार वर्षा ऋतु के खत्म होने और शरद ऋतु के आगमन के उपलक्ष में मनाया जाता है। इस समय खरीफ की फसल पक जाती हैं और काटने का समय होता है तो भगवान को धन्यवाद करने के लिए यह त्यौहार मनाते हैं।

बच्चों के लिए खास है दिवाली का त्यौहार- बड़ों के लिए पूजा-पाठ तो बच्चों के लिए धूम-धड़ाका है दिवाली। बच्चों में दिवाली को लेकर अधिक उत्सुकता होती है। बड़ों की तरह वह भी इस त्योहार का हिस्सा बनने के लिए उत्साहित रहते हैं। दिवाली पर बच्चों को अपनी जड़ों और अपनी संस्कृति से जोड़े रखने का खास अवसर है। दिवाली का यह त्यौहार बच्चों को उत्साह और उमंग के रस में सराबोर करने के अलावा परिवार में और सुरक्षा का अहसास कराता है। इसके अलावा दिवाली मिठाइयों की भरमार के 

लिए भी जाना जाता है जो अक्सर बच्चे को खासा पसंद भी होती हैं। ऐसे में अभिभावकों को बच्चों के स्वास्थ्य को मद्देनजर अच्छी गुणवत्ता व साफ-सुथरी दुकानों से ही मिठाई की खरीदारी करनी चाहिए। साथ ही इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे जरूरत से ज्यादा मिठाइयों का सेवन ना करें। 

      इस दौरान माता-पिता और घर के बड़ों को बच्चों को इस त्योहार का महत्व और खासियत के बारे में बताना चाहिए। इससे बच्चों तथा बड़ों के रिश्तो को मजबूती मिलती है और वह समाज के बारे में अपनी समझ को और बेहतर बना पाते हैं और दुनिया के तौर तरीकों के बारे में जान पाते हैं। इतना ही नहीं इन त्योहारों पर बच्चे अपने अभिभावकों के साथ मिलकर बहुत सी गतिविधियां कर सकते हैं जैसे- दिए सजाना, रंगोली बनाना, घर के सजावट के सामान तैयार 

करना तथा बड़ों की मदद से घर सजाना आदि

इसके अलावा दिवाली पर बच्चों को खास तोहफे देने देना भी एक बेहतर विचार हो सकता है।

      भले ही कोरोना के कारण त्योहारों में लोगों के मेलजोल पर प्रभाव पड़ा हो लेकिन सामाजिक रुप से त्योहारों का महत्व कायम है। इन त्योहारों के दौरान बच्चों को त्योहारों के सामाजिक पहलू को समझाने के लिए दिवाली से जुड़ी कथाओं और मान्यताओं कहानियां सुना सकते हैं। आजकल के आधुनिक समाज में अनेकों माध्यमों द्वारा अपने रीति-रिवाजों व संस्कृतियों से जुड़ी कहानियों का समझा, सुना या देखा जा सकता है। रामायण या मां लक्ष्मी और गणेश से जुड़ी कहानियों को इस त्यौहार पर अपने बच्चों को सुना सकते हैं और उनकी समझ तथा उनके मन में उठने वाले अनेक 

सवालों के आसान जवाब दे सकते हैं। बच्चों की उर्जा को दवाएं नहीं बल्कि उनमें खोजी गुणों को विकसित होने दे।

वक्त के साथ बदलता गया दिवाली का जायका- दिवाली का त्यौहार सिर्फ उत्सव की रौनक और उत्साह का माहौल ही नहीं स्वाद की भी अनोखी बयान लेकर आता है। फर्क सिर्फ इतना है कि वक्त के साथ-साथ यह स्वाद भी बदलता गया है और जमाने के हिसाब से ढलता गया है।

कहते हैं परिवर्तन ही संसार का नियम है और इसीलिए बदलते दौर के साथ हर चीज में बदलाव आता है। बदलाव न सिर्फ इंसान के व्यवहार में आता है और उसके पहनावे में बल्कि उसकी लाइफ स्टाइल में भी आता है। यहां हम बात कर रहे हैं दिवाली पर तैयार होने वाले पकवानों और मिठाइयों को लेकर। मिठाइयों को लेकर सालों पहले दिवाली- 

धनतेरस पर ज्यादातर घरों में पारंपरिक व्यंजन ही पकाए जाते थे लेकिन वक्त बदलता रहा तो हर किसी के खानपान में बदलाव देखने को मिला। लिहाजा अब त्योहारों को सेलिब्रेट करने का तरीका भी बदल गया है।

      हमेशा से दिवाली पर घर की गृहणियाँ घरों में हलवा, अनरसा, नारियल के लड्डू, केसर खीर, खोया वाली गुजिया और बेसन की बर्फी बनाती थी लेकिन अब बड़े त्योहारों पर लोग इस तरह की मिठाइयां न बनाकर कुछ नया ट्राई करते हैं। पहले जहां साधारण मिठाइयां मिलती थी लेकिन अब आप स्वीट्स में तमाम तरह की डिजाइन देख सकते हैं। 3D के दौर में हलवाई मिठाई में भी हर तरह की डिजाइन निकालने में माहिर हैं। अब हर तरह की मिठाई पर आप आकर्षक डिजाइन देखते हैं। दिवाली पर अब प्लेन पुलाव की जगह शाही पुलाव बनने लगे हैं। 

वही नॉर्मल दही बड़े नहीं बल्कि अब काॅर्न दही भल्ला बनने लगा है। काॅर्न के ट्विस्ट वाले दही भल्ले अब कलरफुल भी होने लगे हैं। दिवाली पर अब साधारण मटर पनीर नहीं बल्कि मखाने पनीर, काजू पनीर, खोया पनीर, आलू पनीर, सोया पनीर जैसे व्यंजन बनते हैं। स्वाद का नयापन युवा पीढ़ी को भी त्यौहार की तैयारी में हिस्सा लेने का मौका देता है, ताकि वह भी अपने पसंद के अनुसार कुछ नए व्यंजन तैयार करें और परिवार को खुश करें।

      अंत में बस इतना ही कहना है कि दिवाली का त्यौहार सभी के लिए बेहद खास होता है। इस त्यौहार को लेकर सभी के मन में बहुत सारी आशाएं और उमंगे होती हैं। क्या खाना है? क्या पहनना है? क्या बनाना है? घर को कैसे सजाना है? सभी चीजों को लेकर लोग बहुत उत्साहित रहते हैं, लेकिन जैसे दिवाली का त्योहार हर 

जगह के अंधकार को दूर करके सभी जगह प्रकाश ही प्रकाश कर देती है, उसी प्रकार मनुष्य को भी अपने मन के अंदर के सारे अंधकार को दूर करके अपने मन में केवल ज्ञानरूपी प्रकाश  को रखना चाहिए और सच्चे मन से भगवान की आराधना करनी चाहिए। यह पर्व खुशी खुशी मनाना चाहिए और जितना हो सके सभी की सहायता करनी चाहिए। जिससे यह त्योहार सभी के लिए खुशियों से भरा रहे।

By Divyanshi Triguna, Amroha (UP)

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