मन की शांति – तन की शक्ति : तनाव प्रबंधन

0
1179
Rate this post

   बचपन से सुनते आ रहे हैं – “ मन के जीते जीत है, मन के हारे हार !” यदि मन में ठान लिया जाये तो दुनिया का कोई भी कार्य संभव है. मन के विषय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए गीता के छटवें अध्याय के पांचवें और छटवें श्लोक में बहुत ही सरल शब्दों में कहा है- “ मनुष्य को चाहिए कि अपने मन की सहायता से अपना उद्धार करे और अपना पतन न होने दे. यह मन मानव मात्र का मित्र भी है और शत्रु भी. जिसने मन को जीत लिया है, उसके लिए मन सर्वश्रेष्ठ मित्र है, किन्तु जो ऐसा न कर पाया उसके लिए मन सबसे बड़ा शत्रु बना रहेगा.” मन की चंचलता को जानते हुए उसको जीतना आसान नहीं है, लेकिन कुछ साधारण कदम उठाकर कम से कम उस पर नियंत्रण अवश्य किया जा सकता है.

सुप्रसिद्ध कवि और साहित्यकार डा. हरिवंश राय ‘बच्चन’ ने एक बार कहा था, जिसे उनके शताब्दी के महानायक सितारा पुत्र गाहे ब गाहे दोहराते रहते हैं – “ यदि मन का चाहा हो जाये, तो अच्छा. यदि मन का चाहा न हो तो और भी अच्छा, क्योंकि तब वह होता है, जिसमें परमात्मा की इच्छा शामिल रहती है.” ईश्वरीय शक्ति के बारे में जितना भी कहा जाये , कम है. विश्वास रखिये, हमारे जीवन में घटने वाली प्रत्येक बात से भगवान अवगत रहते हैं. वे जानते हैं कि हमारे लिए क्या सर्वोत्तम रहेगा. तब तनावग्रस्त क्यों होना ?

मानसिक तनाव की परिभाषा के अनुसार जब दैनंदिन जीवन में, जीवन के स्तर के कारण आने वाली समस्याओं के हल, अपने स्त्रोतों से नहीं निकल पाते तो मन में अशांति उत्पन्न होती है, उसे ही मानसिक तनाव का नाम दिया गया है. तनाव का अर्थ मन में परेशानी, चिंता, डर , थकान, क्रोध, मायूसी, असंतोष से ही लगाया जाता है – इनमें से एक या अनेक लक्षण होने का अर्थ है कि मन अशांति की ओर झुक चुका है. विडम्बना यह है कि मेडीकल विज्ञान भी तनाव प्रबंधन के बारे में कुछ न करके उसके परिणामों, यथा उच्च रक्तचाप, मधुमेह, अधिक कोलेस्ट्राल, हृदयरोग, धूम्रपान, आदि का इलाज करने लगा है. इसके अलावा खान-पान की आदत (अत्यधिक तनावग्रस्त और व्यस्त लोग गलत तरीके से खाते हैं), व्यायाम की कमी (अधिक तनावग्रस्त लोग और व्यस्त लोगों के पास व्यायाम के लिए समय ही नहीं), मोटापा ( उपरोक्त दो वजहों से वज़न का बढ़कर अन्यान्य बीमारियों को जन्म) रोगजनित तनाव पैदा करने में सहायक हैं.

आज की जीवन शैली का कारण ८-१० साल के बच्चे से लेकर ६०-७० वर्ष के दादा-दादी, नाना-नानी सभी तनावग्रस्त लगते हैं.  तनाव प्रबंधन के विषय में बात करते समय एक बात सदा ध्यान में रखना होगी कि आप तनाव हीन नहीं हो सकते. जीवन को चलायमान रखने के लिए कुछ न कुछ तनाव आवश्यक होता है. शून्य तनाव प्राप्त करना लगभग असंभव है, तथापि समझने के लिए अनुमानित चार श्रेणी हो सकती हैं:-

  • न्यूनतम तनाव:- यह बहुत ही कम या लगभग शून्य तनाव (जीरो स्ट्रेस) दर्शाता है. समाज में रहते हुए  आवश्यकताओं, जिम्मेदारियों और समस्याओं के रहते इस श्रेणी को हासिल करना लगभग नामुमकिन है. लोग तब भी मानते हैं कि सच्चे संत को ऐसा तनाव हो सकता है. किन्तु क्या बड़े-बड़े आध्यात्मिक संगठनों के मार्गदर्शक साधुओं और आध्यात्मिक गुरुओं को कोई तनाव नहीं है?
  • मामूली तनाव:- यह तनाव का आदर्श स्तर है. टेंशन हो परन्तु अधिक नहीं. आप समस्त परिस्थितियों में सुविधाजनक हों, अच्छा कार्य करें, अपनी जवाबदारी पूर्ण कर पायें, तार्किक रूप से जीवन में सफल रहें, जो मिला है, जो पास है उसमें संतोष करें (संतोषी सदा सुखी), आस-पड़ोस से अच्छे सम्बन्ध हों, फिर क्या चाहिए? इस श्रेणी में अमूमन १० % से १५ % लोग आते हैं.
  • अधिक तनाव:– इस आधुनिक और व्यस्त समाज में  अधिकांश लोग इसी श्रेणी में आते हैं. इनका कोई भी लक्ष्य, उनकी क्षमता से ऊंचा होता है, तनाव सम्बंधित बीमारी का आरंभ इनमें ही हो जाता है. आजकल की शहरी दुनिया के ५०% से ६०% लोग तनाव की इसी श्रेणी में पाये जाते हैं. इनको ही तनाव प्रबंधन  की महती आवश्यकता होती है.
  • अत्यधिक तनाव:– यह तनाव की सबसे बुरी श्रेणी है, लेकिन दुर्भाग्यवश हममें से बहुत सारे लोग  इसी श्रेणी में हैं. चारों ओर से बहुत अधिक तनाव, अत्यधिक काम और ढेर सारी समस्याएं इसकी पहचान हैं.

 मन के भीतर तनाव की उत्पत्ति के कई फैक्टर्स हैं, जैसे हमारा काम – धंधा, नौकरी, परिवार और समाज के प्रति दृष्टिकोण,  एक दूसरे से बात करने का ढंग- टोन, आवश्यकताएं, बीमारी, जीवन स्तर बनाये रखना आदि. जीवन के विभिन्न क्षेत्र जैसे रुपया-पैसा (वित्त), प्रेम, समर्थन, अहम्, सामाजिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक इत्यादि क्षेत्रों में विभिन्न कारणों से असंतुलन भी तनाव के कारण बन जाते हैं. आपका अच्छा, ईमानदार , सरल होना, नैतिक दृष्टिकोण से भी बेहतर होना, आपके द्वारा किसी को नुकसान न पहुँचाना, किसी को धोका न देना आदि ऐसे सद्गुण भी हैं कि आपको तनावग्रस्त मानने की कोई वज़ह नहीं समझ में आ सकती. प्रश्न यह है कि तनावग्रस्त व्यक्ति की पहचान कैसे हो और उसका प्रबंधन कैसे हो? कुछ लक्षण नीचे दिए जा रहे हैं जो व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर इनसे भिन्न भी हो सकते हैं.

(१) भौतिक या शारीरिक लक्षण :- अनियंत्रित सांस, मुख सूखना, हथेली में पसीना, उँगलियाँ ठंडी होना, बार-बार पेशाब आना, आदि.  

(२) व्यावहारिक लक्षण :- धूम्रपान, तम्बाखू/गुटका खाना, बार-बार चाय/कोफ़ी पीना, मदिरा सेवन, मुंह से नाख़ून चबाना, बाल नोंचना, घुटने हिलाना, अरुचिपूर्ण दृष्टि इत्यादि.

(३) भावनात्मक लक्षण :- चिडचिडाना, क्रोध आना, थकान, उदासी,भय, नींद न आना, सपनों में खोए रहना, अनावश्यक आक्रात्मकता आदि.

(४) बोधात्मक लक्षण :- असावधान रहना, अस्पष्ट सोच विचार, अनिश्चितता, अनावश्यक कार्य करना, हास्य-व्यंग की आदत में कमी होना.

मानसिक दबाव से बचने के लिए सर्वाधिक सुलभ और सादा सा उपाय है- प्रकृति से निकटता. प्रकृति की हर वस्तु आसानी से उपलब्ध है- लॉक डाउन हो या न हो. उसके लिए किसी बगीचे में, वृक्षों से आच्छादित रास्तों पर मात्र दस मिनिट पैदल चलना ही पर्याप्त होगा. सनातन उर्जा के स्तोत्र सूरज से उर्जा ले सकते हैं. पारिवारिक मिलन से सौहार्द्र ग्रहण किया जा सकता है. वार्तालाप, अध्ययन से दयालुता, रचनात्मकता प्राप्त कर अपनी कल्पना को एक नया रंग-रूप दे पाएंगे. ध्यान, ईश आराधना आपके जीवन में सुकून दे सकती है. एक और महत्वपूर्ण बात है कि मानसिक/शारीरिक थकान के निवारणार्थ पहला नियम है- थकने के पहले आराम कर लीजिये , अन्यथा वो एक आश्चर्यजनक गति से बढ़ती रहती है, जिसे सम्हालना कठिन ही नहीं बल्कि नामुमकिन हो जाता है. यहाँ अधिक महत्वपूर्ण है कि सभी कारणों पर ध्यान अवश्य दें किन्तु प्रतिक्रिया न दें. प्रतिक्रिया बहुत बड़े तनाव का जनक है.

मानसिक तनाव, वास्तव में दो बड़े और अहम् कारकों (फैक्टर्स ) की परस्पर क्रिया है, जिसमें एक बाह्य कारक ( एक्सटर्नल फैक्टर्स) जैसे- भ्रष्टाचार, रेलों का विलम्ब, अक्खड़ बॉस , रिश्तेदार, भीड़-भाड़ आदि है . इनके साथ यदि आपकी प्रतिक्रिया समुचित रही तो तनाव की मात्रा निश्चित रूप से कम हो सकती है. दूसरा है आन्तरिक परिस्थितियां (इंटरनल फैक्टर्स), जो हमारे विगत अनुभवों, प्रशिक्षण, मूल्यों, उम्मीद और आशा के परिणाम स्वरुप निर्मित होते हैं. इस पर हमारा विश्वास, उम्मीद, दृष्टिकोण, महत्वाकांक्षा, मौजूदा सामाजिक संरचना, हमारा परिवार, शिक्षा, धर्म और आध्यात्मिकता, टीवी, रेडियो, अख़बार और सबसे बढ़कर स्वानुभव इत्यादि सभी या कुछ अपना प्रभाव डालते हैं. इन सभी बातों को दृष्टिगत रखते हुए तनाव प्रबंधन के लिए निम्नलिखित कुछ सरल कदम दिए जा रहे हैं जो हरेक व्यक्ति के ऊपर एक अथवा अनेक या सभी लागू हो सकते है.

पहचान- तनाव के कारणों की पहचान आधा हल है. सुधार – कई बाह्य कारकों में सुधार कर तनाव में कमी की गुंजाईश रहती है. स्वीकार्यता- दुनिया में कुछ फैक्टर्स यथा भ्रष्टाचार, अक्खड़ बॉस, स्वार्थी रिश्तेदार को स्वीकार करना ही श्रेयस्कर है. संघर्ष- कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जिनसे बचना मुमकिन नहीं हो पाता और न ही वो स्वीकार करने लायक ही होते हैं. उनसे संघर्ष कर सामना करना हमेशा बेहतर होता है. उपेक्षा- कुछ फैक्टर्स ऐसे भी होते हैं जो जीवन की मौलिक आवश्यकताओं से सम्बंधित नहीं होते, उनको नजर अंदाज़ करना ही उचित है. नकारात्मकता- जीवन में कुछ परिस्थितियां ऐसी भी होती हैं, जिनकी न कल्पना की गई हो और न ही पूर्व में उनका सामना किया गया हो. इस बारे में भी नकारात्मक की जगह सकारात्मक पहलू पर विचार कर उसे क्रियान्वित करने का विचार करें. कोरोना वायरस के कहर में सामाजिक दूरियां बनाना और घर में बने रहना ही उससे संघर्ष का उपाय है. इसीलिए सकारात्मक सोचें- देश के पर्यावरण में सुधार हुआ, पारिवारिक सौहार्द्र में वृद्धि, ईश्वर पर भरोसा बढ़ा, आध्यात्मिकता में इजाफा हुआ, जिन क्रियाओं को दकियानूसी कहकर दरकिनार करते रहे उन पर भी विश्वास आया, वगैरह में परिवर्तन हुआ तो है. श्वास पर नियंत्रण- जैसे – जैसे हमारे मनोभाव बदलते हैं वैसे-वैसे श्वास की गति परिवर्तित होती है. श्वास पर नियंत्रण (प्राणायाम) अपने मन को नियंत्रित किया जा सकता है. तदनुरूप अपने विचारों, सोच में परिवर्तन संभव है. ध्यान या मैडिटेशन- इसका अर्थ है फिर से स्वयं अपना हो जाना. गहरे अर्थों में यह स्वयं को पहचानने की प्रक्रिया है जो हमारे स्वभाव में ही अन्तर्निहित है. धर्म और अध्यात्म से जुड़ने के अलावा तन-मन की अच्छी सेहत के लिए ध्यान या मैडिटेशन एक कारगर एवं बेहतरीन उपाय है. इसके द्वारा एकाग्रता में वृद्धि के साथ अवसाद और तनाव से भी बचाव होता है. हमको ज्ञात है कि शरीर , मन व आत्मा को जोड़ना ही योग है. जब ये तीनों मिलकर एक ही दिशा में सक्रिय होते हैं तो मानव अपनी क्षमता के चरम पर होता है. ध्यान से ही मन या चित्त की निर्मलता प्राप्त की जा सकती है.

प्रार्थना- सर्वशक्तिमान परमात्मा से वार्तालाप का सर्वश्रेष्ठ और सबसे आसान तरीका प्रार्थना ही है. इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि हम याचक बन बैठें, बल्कि जो कुछ भी उसने दिया है, जो कुछ भी हमें हासिल है, उसके लिए आभार और धन्यवाद प्रेषित करें. वह जानता है कि हमारे लिए कौन सा काम, कौन सी वस्तु सर्वश्रेष्ठ है. इससे मनः शांति निश्चित है.

मानसिक तनाव की मात्रा में  कटौती करने के लिए मात्र दो विकल्प हैं- एक तो यह कि बाह्य रूप से तनाव पैदा करने वाले कारणों से समुचित ढंग से निबटना और दूसरा आन्तरिक परिस्थितियों को बदलना, जो अधिक व्यवहारिक और असरकारक है. इस सच को सभी जानते हैं, मानते भी हैं कि हमारा जीवन, उसके सुख-दुख, आचार-व्यव्हार हमारे अपने ही हाथों में है. जैसा हम सोचते हैं, वैसा ही हमारा जीवन बन जाता है- चुनाव हमारा है. इसमें एक बात तो निश्चित है कि जीवन में बेहतरीन स्वास्थ्य और अधिक से अधिक सुख प्राप्ति का प्रयत्न कभी भी किया जा सकता है- जिसके लिए कभी देर नहीं होती. यदि आप प्रसन्नचित्त और आनंद पूर्वक हैं, तो आप स्वर्ग में हैं क्योंकि अच्छा-बुरा, स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य , सुख-दुःख सभी मन की अवस्थाएं हैं. इस बारे में आर्थर स्कोपेंहर का उद्धरण विचारणीय है- “ प्रत्येक सच तीन अवस्थाओं से गुज़रता है. पहले उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है, फिर उसका उग्रतम विरोध होता है और अंत में उसी को प्रमाणित मानकर स्वीकार कर लिया जाता है.”

इसके समापन में, जीवन को तनाव रहित, आनंदित, सुखपूर्वक जीने के लिए एक सूत्र देने का प्रयास करता हूँ, जो ‘अल्कोहल अनानिमस’ नामक संस्था की प्रार्थना का एक वाक्य है तथा उनका आधारभूत सिद्धांत भी है – “ईश्वर ने मुझे शांति और स्वच्छता के साथ ताकत दी कि मैं उन बातों को स्वीकार कर सकूँ, जिन्हें बदला नहीं जा सकता और उन बातों को बदलने का साहस, जिन्हें मैं बदल सकता हूँ! क्योंकि ईश्वर ने मुझे इन दोनों में अंतर करने लायक विवेक भी दिया है !” कभी किसी बात का निबटारा करने के लिए एक प्रश्न करें – “ क्या फर्क पड़ता है ?” यदि “कुछ नहीं” उत्तर मिले तो फिर चिंता किस बात की. अतः क्षमा करें और भूल जाएँ. (Forgive and Forget). ज़िन्दगी से तनाव तिरोहित होगा, स्वास्थ्य सुधरेगा !

हर्ष वर्धन व्यास, 263, गुप्तेश्वर ,

                                    कृपाल चौक के पास, जबलपुर (म.प्र.) ४८२००१.

मोबाइल नं. ९४२५८०४७२८              

Previous articleपढ़ने में बच्चों की रुचि और उनकी मन: स्थिति
Next articleछलावा
Avatar
''मन ओ मौसुमी', यह हमारे जीवन को बेहतर बनाने के लिए, भावनाओं को व्यक्त करने और अनुभव करने का एक मंच है। जहाँ तक यह, अन्य भावनाओं को नुकसान नहीं पहुँचा रहा है, इस मंच में योगदान देने के लिए सभी का स्वागत है। आइए "शब्द" साझा करके दुनिया को रहने के लिए बेहतर स्थान बनाएं।हम उन सभी का स्वागत करते हैं जो लिखना, पढ़ना पसंद करते हैं। हमें सम्पर्क करें monomousumi@gmail.com या कॉल / व्हाट्सएप करे 9869807603 पे

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here