जैसे ही मामा ने फोन पर खबर दी हम तुरंत नज्जो (नानी को सब इसी नाम से पुकारते हैं) से मिलने निकले। मां रोए जा रही थी। मुझे भी रोना आ रहा था। आंसू रोकने के लिए मैंने खिड़की का कांच नीचे किया ताकि हवा मुझे और मां को सहला सके लेकिन हवा ने तो पुरानी यादों के पिटारे खोल दिए और सारी बचपन की यादें पंक्ति में खड़े होकर दस्तक देने लगी।
बचपन और ननिहाल
बचपन की यादें मानस पटल पर चित्रित हो रही थी।
गर्मी ,सर्दियों की छुट्टियों में हम नज्जो के घर जाने की तैयारी में जुट जाते थे क्योंकि यही दो छुट्टियों में ही तो नज्जो के घर जाने मिलता था,खूब धमाचौकड़ी करने मिलती थी। नज्जो दिनभर रसोई में ही रहती हर दिन नए पकवान बनाती और खिलाती ,वह पीछे पीछे दौड़ती हमारे हमे खिलाने। हमारे साथ खेलती।बाजार जब वह सब्जियां बेचने जाती तो खिलौने, किताबें और मिठाइयां लाती। गर्मी में सितारों से सजी आसमान के नीचे खटिया बिछाती और ढेरो कहानियां सुनाती। तपती दोपहर में भी हमारे लिए आम ,जामुन चुनने चली जाती और कड़ाके की ठंड में भी हरे चने,मूली,गाजर,हरी साग सब्जी तोड़ने चली जाती और चुन चुन कर मीठे बेर लाती। और ठंड में रात को हमारी खटिया के नीचे धीमी आंच की सिगड़ी रखती और सीने से लिपटाकर हमे सुलाती ।जब छुट्टियां खत्म होने को आती तो नज्जो उदास हो जाती हमे कभी वो अलविदा कहने नही आती और दरवाजे के पीछे छिपकर रोती। नज्जो हर बार एक पौधा देती जो आज बड़े बड़े पेड़ बन गए हैं।
यादों के कारवां में पता ही नही चला कब हम कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट एंड हॉस्पिटल पहुंच गए । मां मामा के गले लगकर रोने लगी । नज्जो अभी हमसे मिलने की हालत में नहीं थी। डॉक्टर ने बताया कि नज्जो को धुएं में ज्यादा रहने के कारण फेफड़ों में इन्फेक्शन हो गया है और कहा कि शायद आजकल के इंफेक्टेड पानी,हवा और केमिकल्स के कारण कैंसर हो गया है और यह भी बताया कि कैंसर का यह दूसरा स्टेज है।आपको थैरेपी के लिए इन्हें हर हफ्ते यहां लाना होगा। यह बोला डॉक्टर ने। मां ने जैसे ही यह सुना तो नज्जो से मिलने के लिए ज़िद करने लगी। जब नज्जो से मिलने गए तो देखा कभी न शांत बैठने वाली नज्जो बेहाल पड़ी थी। मां ने नज्जो के उन हाथों को आंसुओं से गीला कर दिया जिन्हें जीवन के संघर्ष ने पत्थर का बना दिया था। नज्जो के हाथों की नसें नज्जो की कहानी बयां कर रही थी।
नज्जो।
पति की बेवफाई के बाद नज्जो ने अपने दोनो बच्चों को अकेले ही पाल पोषकर बड़ा किया और काबिल बनाया। नज्जो अपने जीवन के तम को बुहारने के लिए खूब मेहनत करने लगी। ससुराल वालों ने भी साथ नही दिया। नज्जो को गांव के छोटे से स्कूल में मध्यान भोजन बनाने का और बर्तन धुलने का काम मिल गया। वह सुबह उठकर खेत जाती फिर दस बजे स्कूल और शाम को बर्तन धुलकर ही घर लौटती। हर रोज शिकायत करती की “भीमा यह चूल्हे का धुआं मुझे निगल जाएगा एक दिन।”
नज्जो की मेहनत रंग लाई और मां और मामा शिक्षक शिक्षिका के पद पर नियुक्त हो गए।जब मां और मामा को नौकरी मिली तब बहुत मिन्नतों के बाद नज्जो ने अपना खाना पकाने और बर्तन मांजने का काम छोड़ा और अपनी बची हुई जमापूंजी और मां और मामा की मदद से स्कूल में एक नया किचन और गोबर गैस प्लांट बनवाया क्योंकि नज्जो नही चाहती थी कि दूसरी औरतों का उसकी तरह धूएं में दम घुटे। स्कूल से कम छुटने के बाद नज्जो फिर खेती में दिन रात मेहनत करने लगी उसे मेहनत करने की आदत जो लग गई थी। इसका विरोध मां और मामा ने नही किया। मां हमेशा नज्जो को समझाती कि जब खेत में दवा का छिड़काव करे तो मुंह ढककर और दस्ताने पहनकर करे और हाथ धोए लेकिन नज्जो मां को यह कहकर डांट देती कि तू मेरी मास्टरनी मत बन । भला नज्जो से कौन जीत पाया है अब तक जो मां जीत पाती। नज्जो की ठगिया गाय गांव की हिर्री नदी का पानी पीकर परलोक सिधार गई थी और गांव के सभी लोग अचानक से बीमार हो रहे थे हिर्री नदी का पानी पीकर। नज्जो ने पता किया तो पता चला कि गांव के पास लगी फेक्ट्री का गंदा पानी नदी में मिलता है और गांव वालों और मवेशियों को बीमार करता है ,वह खुद बहुत दिनों से बीमार थी लेकिन नज्जो तो नज्जो है वह लड़ने चली गई थी फेक्ट्री के मालिक से और रिपोर्ट लिखवा कर आ गई थी थाने में। कई गांव वाले उस फेक्ट्री में काम करने जाते थे तो उन्होंने नज्जो को फेक्ट्री बंद करवाने से रोक लिया । नज्जो हमेशा कहती “कितने सारे शहर तो बन चुके है न फिर क्यों गांव को शहर बनाना,लगता है गांव की कब्र में ही सीमेंट के जंगल बनेंगे एक दिन।” दस्ताने न पहनकर ,मुंह न ढककर दवाई न छिड़कने वाली नज्जो को अब प्रदूषण समझ में आने लगा था। नज्जो ने जन सुनवाई में पहुंचकर गांव में पानी के जांच करने की अर्जी लगाई और १५ दिन बाद से वहां पानी की जांच होने लगी। मै जब भी गांव की खूबसूरती की तारीफ करता तो वह मुझे चुप करवा देती और कहती “इस जमाने में प्रकृति की तारीफ मत करो वरना हम मनुष्य इसे हथियाने और इसका शोषण करने लग जायेंगे।”
वर्तमान……
नज्जो कुछ दिन हॉस्पिटल में ही एडमिट रहने वाली थी। मामाजी को घर से कपड़े और कुछ सामान लाना था तो हम चल दिए नज्जो के गांव। मै पढ़ाई के कारण चार साल बाद गांव जा रहा था। गांव पहुंचा तो देखा गांव गांव नही रह गया था । हरियाली गायब थी, तालाब सूखकर डंपिंग साइट बन गए थे ,जिस नदी में नहाते थे उसका पानी गंदा हो गया था ,कवेलू के मकान गायब थे ,बच्चे पेड़ो में उछल कुद नही कर रहे थे, मवेशियों की जगह वाहन खड़े थे आंगन में। सौंदर्यीकरण की कीमत गांव खुद को बदलकर चुका रहा था। गांव में पत्तो की जगह प्लास्टिक नजर आ रही थी। मामा ने बताया कि गांव में कैंसर से बहुत से लोग पीड़ित है। घनश्याम काका की खबर सुन दिल भारी हो गया।
गांव में तपन सुबह सुबह भी तेज लग रही थी क्योंकि पेड़ जो कट गए थे। गांव की हवा मुझे असहज कर रही थी। जिस गांव की सुंदरता का मै बखान करते नही थकता था वो गांव मुझे कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। अरे हां! पक्की सड़क के बनने से गांव पहुंचने में अब बहुत कम समय लगने लगा था और पक्षी पक्के मकानों के वेंटिलेशन में घोंसले बनाने लगे थे ,मिट्टी के घरों में रहने वाली गौरैया पता नही कहां घोंसला बनाकर रह रही थी।
नज्जो के हेल्थी सेल्स को कैंसर निगल रहा था और गांव को मॉडर्नाइजेशन और प्रदूषण।
सोशल मीडिया के कारण शहर गांव की ओर लौट रहा था और गांव शहर की ओर।
By: Ashish Rahangdale
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