हमराही

By: उपेन्द्र प्रसाद

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प्यारी – सी मुस्कान अधर पर, नयन कँवल – सा खिला रहे,

भोली – सी सूरत चितवन पर, बोल मधुर – सा मिला रहे |

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बादल जैसे बाल घने, सुरमयी शाम – सी प्यारी है,

पँखुड़ी – सी पलक नैन पर, लगती कितनी न्यारी है |

काजल की घनघोर घटा, तेरे नयनन पर जो छायी है,

अभिभूत सावन की छटा, देख तुझे शर्मायी है |

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सुनहरे बदन सदा, सुर्ख कली – सा खिला रहे,

भोली – सी सूरत चितवन पर, बोल मधुर-सा मिला रहे |

हिरन जैसी चाल तेरी, बलखाती मतवाली है,

गजगामिनी देख तुझे, शर्म से पानी – पानी है |

बोरल आम की डाली – सी, लचके कमर निराली है,

मुंडेरों पर मोरनी भी, देख – देख हर्षायी है |

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चाँद – सा मुखड़ा तेरा, नक्षत्र गगन – सा खिला रहे,

भोली – सी सूरत चितवन पर, बोल मधुर – सा मिला रहे |

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दाने जैसे दन्त तेरे, मुखमण्डल पर सजते हैं,

नभमण्डल में जुगनू – जैसे, जगमग – जगमग करते हैं |

गोल कपोल,अनमोल सरीखे, मन को कितने भाते हैं,

उनपर भी अश्रु मोती के, लुढक – लुढ़क कर जाते हैं |

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 काले तिल अल्हड़ होठों पर, भौरें – सा जो फ़िदा रहे,

भोली -सी सूरत चितवन पर, बोल मधुर -सा मिला रहे |

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कंचन – सी कोमल काया, मन को बड़ी लुभाती है,

तरुणाई तन की अदा, बरबस हमें बुलाती है |

मयखाने – से नयन तेरे, नशा प्यार का लाती है,

खुशियों की दिलकश चमन में, होश मदहोश कर जाती है |

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रुपकामिनी, मनभाविनी, गुलशन तेरा खिला रहे,

भूल न जाना हमराही को, सांसों में तू मिला रहे |

~उपेन्द्र प्रसाद

(पटना, बिहार)

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