क्या लोगों की चीख है लोकतंत्र,
या सांसदों में गूंजती आवाज़ है लोकतंत्र?
क्या गाँधी के पीछे चलती वो भीड़ थी लोकतंत्र,
या नेताओं के टुकड़ों में बटी ये भीड़ है लोकतंत्र?
एक ध्वज को मानने वाली भीड़ है लोकतंत्र,
या ध्वज को रंगों में बांटने वाली भीड़ है लोकतंत्र?
उँगलियों में लगी स्याही पहचान है लोकतंत्र की,
या उन उँगलियों से गिरती लहु है लोकतंत्र?
अख़बारों में काली स्याही से लिखी परिभाषा,
या हाथों में तख्तियाँ लिए विद्यार्थियों की परिभाषा है लोकतंत्र?
हिंसा होने पर भी चुप रहना,
या इंकलाब के नारे लगाना है लोकतंत्र?
सच को छुपाना,
या सच के लिए मर जाना है लोकतंत्र?
हक़ के लिए आवाज़ उठाना,
या गोलियों का निशाना बन जाना है लोकतंत्र?
वोट देना ही क्या फर्ज़ है लोकतंत्र की,
या लोकतंत्र को लोकतंत्र बनाना फर्ज़ नहीं है हम सबकी?
लोकतंत्र कोई ख्वाब तो नहीं,
हकीकत है संविधान की….
आलिया फ़िरदौस, राँची (झारखण्ड )