था संकट में सारा जहां |
ना समझ आ रहा था कि जाए कहां ||
मचा हुआ था भय का शोर |
मचा था हा हा कार चारो और ||
कोई ना बचे, था ऐसा संकट |
मानो लोग जैसे देख रहे थे मृत्यु निकट ||
हां, थी कुछ परिस्थती इतनी विकट |
की मरे हुए का परिवार भी ना जा सकता था निकट ||
ना दूर था मेरा देश भी इस परिस्थिति से |
लेकिन सब लडे इस आफ़त से कुछ अलग से ||
कुछ थी मजबूत हमारी आवाम |
कुछ हो गई थी देख कर अंजाम ||
मदद को आया था फरिश्ता इस देश में |
लोग नहीं पहचान सके किस भेष में||
उस के निर्देशों ने कई जान बचाई |
इसी बात पे पूरे देश ने शंख, घंट और थाली बजाई ||
जब मेरे देश पर संकट आया |
पहले काम मेरे देश का नमक आया ||
रही जब कसर बाकी |
कुछ फरिश्ते आए पहन के खाखी||
आज था सब का सर फक्र से ऊंचा |
क्योंकि मदद लेने की जगह मदद की उनकी जो समाज रहे थे मेरे देश को नीचा ||
शायद था ये कमाल उस का |
रहता है दुवाओं में ज़िक्र जिसका ||
छाया था जग में अंधेरा |
तब चमक रहा था मोबाइल, मोमबत्ती और दियो से देश मेरा ||
था अंधेरो से उजालो तक का है सफर मुश्किल |
लेकिन हौसलों से था बिल्कुल ये मुमकिन ||
मेरा देश आज फिर दुनिया को काम आया |
ज़रूरत पड़ने पर जब दुनिया के होठों पे मेरे देश का नाम आया ||
जरूर लूटी थी सोने की चिड़िया एक दिन उन्होंने |
ना लूट सके वो दिमाग उनका, बनाई थी सोने की चिडिय़ा जिन्होंने||
भले ही था आज मंदिर मस्जिद गिरजा घरों में ताला |
लेकिन हमने देखा था सफेद कोट में ऊपर वाला ||
किसी ने ये देखा की ना बढ़े महंगाई |
तो कोई हमें स्वस्थ रखने के लिए आज भी कर रहे थे सफाई ||
हम आज सो रहे थे अपने घरों में बेफिक्र |
मालूम था कि एक इंसान को है पूरे देश की फ़िक्र ||
बांधी थी उसने हमारे लिए लक्ष्मण रेखा |
जिस के अंदर रहने का परिणाम आज दुनिया ने देखा ||