दीवानगी

By: JAIGOPAL KRISHNAN KUTTY

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महज़ कागज़ के किताब की दीवानी
बन के न रहिये
हम भी है लायक पढ़ने के
हर लम्हे को कभी पढ़ कर देखिये

दिल है एक बहर-ए-इश्क़ मेरा
जो लबरेज़ है मोहब्बत से
उतर कर इसकी गहरायिओं में
भींग जाइये मेरी मोहब्बत से

जुदा हो कर आप से मानो
जकड़ गए जैसे तन्हाइयों के जाल में
ज़िंदा रख कर हमें छोड़ गयी
मेरी अपनी सांसों ने मेरे हाल में

खुली झरोखों से आती है वो
हवा लेकर तुम्हारी यादें
भर कर उन हवाओं को अपने बाँहों में
जी लेता हूँ लेकर तुम्हारी यादें

संन्नाटों से है भरी मेरी ज़िन्दगी
डरता हूँ के यह न बन जाये मेरे यार
हर उस आहट के पीछे दौड़ पड़ता
जो आहट याद दिलाते थे मेरे यार

By: JAIGOPAL KRISHNAN KUTTY

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