पुस्तक की आत्मकथा

By Khan Husneha

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नमस्कार ! प्यारे मित्रों ! क्या आप ने मुझे पहचाना ? मैं पुस्तक बोल रही हूँ । मेरा जन्म आप सभी मनुष्यों को ज्ञान देने के लिए हुआ है । मेरे कारण ही आप लोग इतनी कामयाबी हासिल कर रहे हैं । मैं आप की सच्ची दोस्त हूँ । मैं आपको हर तरह का ज्ञान देती हूँ । अगर आप दुःखी हो तब भी मुझे पढ़ कर आप का मनोरंजन होता है । मेरे कई पात्र हैं । मैं आपको कभी कहानी , कभी चुटकुले, कभी शायरी आदि के रूप में नजर आती हूँ । मुझे पढ़ना मतलब  अधिक ज्ञान प्राप्त करना । मुझे पढ़ कर ही आज मनुष्य आसमान  छू रहे हैं । 

 मगर आज के युग में मनुष्य मुझे भूल ही गए हैं। । वह मुझे खरीदते तो हैं मगर पढ़ने के लिए नहीं, शौक के लिए । वह मुझे खरीद कर अपने घरों की अलमारियों में बंद कर के रख देते हैं । जहाँ मेरी तरह कई पुस्तकें पड़ी रहती हैं । वह अपनी अलमारी की शोभा बढ़ाने के लिए हम पुस्तकों को रखते हैं । मैं उनकी राह तकती रहती हूँ ,के वह मुझे इस अलमारी से निकाल कर पढ़ेगे मगर ऐसा नहीं होता । जो समय वह मेरे साथ बिताया करते थे और मेरा आनंद लिया करते थे । वह समय वे मोबाइल, इंटरनेट पर बिताते हैं । 

मैं सालों-साल  उसी अलमारी में बंद पड़ी रहती हूँ । मेरा उस अलमारी में दम घुटता है । मुझे बहुत दुःख महसूस होता है के जो मनुष्य मुझे कभी इतनी इज्जत दिया करते थे और मेरा ज्ञान प्राप्त किया करते थे । वही मनुष्य आज मुझे भूल गए हैं । जिस रोज मैं पुरानी हो जाऊँगी उस दिन यह मनुष्य मुझे रद्दी में डाल कर बेंच देंगे । रद्दी वाला मेरे पन्नों को फाड़ कर फेंक देगा । मेरा जीवन यूँ ही समाप्त हो जाएगा । मेरा महत्व भी मेरे साथ मिट जाएगा ।

मेरी आप सभी मनुष्य से यही विनती है , के वह मुझे आज भी वैसे ही सम्मान दे । जिस तरह पहले दिया करते थे । वह आज भी मेरा आनंद वैसे ही ले जिस तरह पहले लिया करते थे । धन्यवाद !

By Khan Husneha

SOURCEKhan Husneha
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