गाँधी प्रतिमा से दायें मुड़ कर दूसरी गली में चौथा माकान “तिवारिन का ढ़ाबा” कहलाता है |यद्यपि यहाँ ढ़ाबे जैसा कुछ भी नही है न ही इस तरह का कोई बोर्ड लगा है |पर यहाँ 40 रु.थाली के हिसाब से भोजन जरुर मिलता है | जैसा कि आपको नाम से ही स्पष्ट हो गया होगा कि इस प्रतिष्ठान का संचालन कोई श्रीमती तिवारी करती हैं जो इस छोटे से कस्बे में तिवारिन के नाम से जानी जाती हैं |पांच वर्ष पूर्व पति की मृत्यु हो जाने के बाद से इस काम को वो खुद संभाल रही हैं | लगती तो नही फिर भी तिवारिन की उम्र लगभग 38-39 साल होनी चाहिए, क्योंकि उनकी बड़ी लड़की ही 18-19 साल की है |तिवारिन का कद सामान्य से एक डेढ़ इंच ज्यादा है ,रंग गोरा ,आँखें सुंदर और बड़ी बड़ी हैं और उनके चेहरे पर एक मुस्कान हमेशा तैरती रहती है,जो कि उनके व्यवसाय के लिए आवश्यक भी है |तिवारिन के घने काले बाल अभी भी कमर तक आते हैं, यद्यपि भोजन करने बालों में कुछ का मानना है कि बालों का ये कालापन डाई का कमाल है |
कस्बे वाले भले ही “तिवारिन का ढ़ाबा” कहें पर इस कहानी में इसे हम भोजनालय कहेंगे | ऐसे नौकरीपेशा लोग जो अपना घर बार छोड़ छाड़ कर इस ठेठ कस्बे में शासन की सेवा कर रहे हैं ,उनके भोजन का एक मात्र सहारा है, ये श्रीमती तिवारी का छोटा सा घरेलू भोजनालय |तीन चार मास्टर , बिजली ऑफिस का लाईन मैन ,अस्पताल का कम्पाउण्डर ,पोस्ट ऑफिस के दो बाबू और पोस्ट मास्टर ,रेलवे फाटक का चौकीदार,थाने का पूरा अमला ,इस तरह लगभग 20 लोग रोज इसी भोजनालय से भोजन पाते हैं |ग्रामीण बैंक के मेनेजर ,थानेदार जैसे साहबों के चार टिफिन भी यहीं से जाते हैं |गुरुवार बाजार का दिन होता है इस दिन बाहर से आये आठ दस दुकानदार भी दोपहर का भोजन यहीं करते हैं | कुल मिला कर कमाई ठीक ठाक है | खाना खाने वालों में थाने के हवलदार ,जो कि संयोग से तिवारी जी ही हैं ,प्रमुख व्यक्ति हैं | वैसे तो तिवारिन सभी को बड़े प्रेम से खाना खिलाती हैं पर तिवारी जी के लिए यह प्रेम कुछ ज्यादा ही नजर आता है | भोजन करने वाले चटनी और अचार तो चटकारे लेकर खाते ही हैं, तिवारी –तिवारिन के चर्चे भी चटकारों के साथ ही करते हैं |
यदि आप तिवारी तिवारिन के संबंधों में जानने को कुछ ज्यादा ही उत्सुक हो गये हों ,तो क्षमा करें , इसकहानीमें ऐसा कुछ भी नही है |
आप पहले ही जान चुके हैं कि दुर्भाग्यवश तिवारिन विधवा हैं |यद्यपि भोजनालय से कमाई ठीक ठाक है पर युवा होती लड़की और उससे छोटे दो भाईयों का लालन पालन आसान नहीं है |वो लड़की का विवाह जल्दी करना चाहती हैं ताकि लड़कों की पढ़ाई पर ध्यान दे सकें |इसके लिए वो तिवारी जी से अच्छा लड़का बताने का अनुरोध कई बार कर चुकी हैं |
तिवारी जी तिवारिन के हर अनुरोध को गंभीरता से लेते हैं, और इस अनुरोध पर तो बहुत गंभीर हो जाते हैं |
आज तिवारी जी के साथ सुंदर युवा खाना खाने आया हुआ है | उसके चेहरे पर कुछ संकोच है पर तिवारी जी के चेहरे पर विजयी मुस्कान | खाना खा कर लड़का चला गया ,तिवारी जी हमेशा की तरह थोड़ा रुक कर जायेंगे |
“लड़का सरकारी नौकरी में है |पक्की नौकरी |पोस्टमैन हो कर कल ही आया है| पदस्थ भी इसी गाँव में है |”
सुनकर तिवारिन का चेहरा खिलता जा रहा है | “सब आपके ऊपर है हवलदार जी |आप चाहें तो रिश्ता हो सकता है |”
“हाँ,हाँ भगवान ने चाहा तो सब अच्छा होगा | रिश्ते का भतीजा लगता है इतना तो मानेगा ही |और अपनी लड़की क्या कम सुंदर है |” तिवारी जी निश्चिन्त भाव से कह रहे हैं |
इस कहानी के प्रारंभ में ही जो तिवारिन के रूप सौन्दर्य का वर्णन किया गया है उसके बाद यह स्पष्ट करने की जरूरत नही है कि उनकी लड़की कितनी सुंदर होगी |एक तो वो तिवारिन की लड़की है दूसरा वो उम्र के उस पड़ाव में है जहाँ हर लड़की सुंदर ही होती हैं |
अब खाने में लड़के का विशेष ध्यान रखा जाने लगा है |तिवारी जी पर तो ध्यान पहले से ही था |लड़के को भोजन परोसने का दायित्व अब लड़की को सौंप दिया गया है | जैसा कि स्वाभाविक है दोनों की नजरें कई बार मिल चुकी हैं और अनंग प्रेम अंग धारण करने के लिए दोनों दिलों में मचलने लगा है |
तिवारी जी ने लड़के की सहमती ले ली है और उसकी एक मात्र बूढ़ी नानी से भी बात कर ली है | लड़के के माँ बाप नहीं हैं, उसे उसकी नानी ने ही पाला है |
चूँकि देवता अभी सो रहे हैं अतः चार माह बाद उनके जागने पर अच्छा मुहूर्त देख कर विवाह संपन्न किया जाना सुनिश्चित किया गया |इस रिश्ते की जानकारी गोपनीय रखने की हिदायत तिवारी जी तिवारिन को दे ही चुके है | “अच्छा लड़का देख कर किसी की भी लार टपक सकती है |” तिवारी जी के इस मत से तिवारिन सौ प्रतिशत सहमत हैं |इस तरह ये राज चार दिलों में छुपा हुआ है ,पोस्टमैन,लड़की ,तिवारी और तिवारिन के दिलों में |
आज तिवारी जी के साथ एक और लड़का खाना खाने आया है |लम्बा कद ,छरहरा कसरती बदन,नुकीली नाक ,छोटे छोटे घुंघराले बाल ,गोरा रंग ,पतली मूंछें किनारे पर थोड़ा उठी हुयी |
“नया नया सिपाही भर्ती हुआ है |ट्रेनिंग कर के कल ही आमद दी है अपने थाने में|” तिवारी जी बांकी खाने बालों से परिचय करा रहे हैं | “ब्राह्मण है थोड़ा ख्याल तो रखना पड़ेगा |”
समव्यस्क होने से पोस्टमैन और सिपाही की अच्छी मित्रता हो गयी है |दोनों साथ साथ ही रहते है | खाना खाने भी साथ ही आते है |पोस्टमैन और तिवारी जी को खाना लड़की ही परोसती थी अब सिपाही को भी परोसने लगी है |देवताओं के उठने में अभी भी ढ़ाई माह बाकी है ,पर लगता है कि विवाह के राज ने पांचवां दिल भी ढूंढ़ लिया है ,सिपाही का |
आज पोस्टमैन की सूरत लटकी है और तिवारी जी का मूड भी उखड़ा हुआ है वो स्थानीय नेताओं से लेकर प्रधानमंत्री तक को गालियाँ दे रहे हैं |दरअसल बात ये है की तीन महीने पहले ही आये पोस्टमैन का यहाँ से तबादला कर दिया गया है |तिवारिन और लड़की सुन कर भौंचक्के हैं| दुखी तो सिपाही भी है | खाना खा कर सिपाही और पोस्टमैन चले गए हैं |तिवारी जी हमेशा की तरह थोड़ा रुक कर जायेंगे |
“वैसे कोई परेशानी नहीं है ,शादी के बाद लड़की घर से दूर ही रहे तो अच्छा है |” तिवारी जी तिवारिन को समझा रहे हैं |तिवारिन के पास सहमती में सिर हिलाने के सिवाय कोई विकल्प नही है ,सो वे सिर हिला रही हैं |
लड़की रात में सो नही पाई है वो एक बार पोस्टमैन से मिलना चाहती है |
जैसा कि हर प्यार करने वालों के साथ हो जाता है, इसकहानीमें भी ट्रांसफर विलेन बन कर आ गया है |खैर, पुराने प्रायमरी स्कूल के पीछे मिलने की व्यवस्था तय हुई | नियत समय पर दोनों भागते दौड़ते स्कूल के पीछे नीम,नही इमली ,हाँ इमली के पेड़ के नीचे मिलने आ ही गए |जैसा कि होता है इस मिलन में भी कुछ कसमे ,कुछ वादे ,ज्यादा आंसू ,थोड़ी बहुत प्यार भरी बातें और होने बाली शादी की योजनायें प्रमुख भूमिका में रहीं |साथ ही पोस्टमैन ने उससे वादा भी किया कि वो हर हफ्ते उसे एक चिठ्ठी लिखेगा और लड़की को स्पष्ट चेतावनी भी दी कि चिठ्ठी लेने वो स्वयं पोस्ट ऑफिस जाएगी ताकि पत्र किन्ही गलत हांथों में न पड़े ,इसके लिए वो बूढ़े और सठिया गए पोस्टमास्टर को बता जायेगा |
अब पोस्टमैन खाना खाने नही आता |तिवारीजी के साथ सिपाही अकेला आता है |खाना परोसने में लड़की की रूचि खत्म हो गयी है |वो अक्सर उदास रहती है ,पर यदि कोई पढ़ सके तो सिपाही की आँखों में उसके लिए निश्छल प्रेम आसानी से पढ़ा जा सकता है |
आज चिठ्ठी मिल गयी है |लड़की का पहला प्रेमपत्र है |वो बार बार उसे पढ़ रही है |उसे सारा कुछ सुंदर लग रहा है,दिन में ही रात रानी की भीनी खुशबू फैल गयी है ,वो कहीं खो खो जा रही है |
उसने कुकर की छटवीं सीटी तब सुनी जब वो उस चिठ्ठी को दसवीं बार पढ़ रही थी |कुकर में रखी दाल जल चुकी है | दाल तो तीसरी सीटी में ही गल जाती है | आज माँ की डांट पर गुस्सा नही आ रहा ,खाने वालों द्वारा की जा रही दाल की निंदा प्रशंसा लग रही है | वो मीठे सपनो में खोई हुयी है | आज उसने तिवारी जी और सिपाही को बहुत प्यार से खाना परोसा है |
सच , प्यार से ज्यादा अच्छा इस जगत में कुछ भी नहीं है |
तीन दिन बाद देवता जागने वाले है| तिवारिन के घर पर भी शादी की तैयारियां शुरू हो गयी है |अनाज भरना ,कपड़े खरीदना,लिपाई पुताई ,मेहमानों की व्यवस्था ,और न जाने क्या क्या ,सारे कामों की योजनायें बनने लगी हैं |
पर यदि आप यह सोच रहे हैं की लड़की की शादी पोस्टमैन से होने वाली है तो हम आपको बता दें की इसकहानीमें तो लड़की की शादी सिपाही से हो रही है |आप शायद कुछ चौंक गए हैं,पर लड़की की सोचिये यह जानकर उस पर क्या गुजरी होगी |उसके ऊपर तो जैसे आसमान गिर गया है |पिछले पन्द्रह दिनों में पोस्टमैन की चिठ्ठी न आने का कारण भी उसको समझ में आ रहा है |
उसने प्रथम चरण में हाँथ पैर पटक कर रोते हुए इस शादी का विरोध किया |घंटों तकिये में मुंह छुपाकर रोती रही |द्वितीय चरण में खाना पीना छोड़ कर स्वयं को कमरे में बंद रखा है ,समय समय पर गुस्से और दुःख में अपने बाल नोचे ,कभी कभी दीवार पर सर मारा |बात बनते न देख अंतिम चरण के रूप में आत्महत्या कर लेने की चिरपुरातन धमकी भी दी |पर तिवारिन ने भी प्यार पुचकार से लेकर डांट डपट और थोड़ी बहुत पिटाई से उसे समझाने कि कोशिश की |और अंतिम अस्त्र के रूप में स्वर्गीय पिता कि इज्जत और छोटे भाईयों कि पढ़ाई का हवाला दिया |
स्वाभाविक ही लड़की को अपने पिता और भाईयों से बहुत प्यार था। अंततः दुखी मन से उसने परिस्थितियों को स्वीकार कर ही लिया |
नियत तिथि पर विवाह संपन्न हो गया |जिसने भी देखा जोड़ी कि सराहना की|तिवारिन के सर का बोझ हल्का हुआ ,तिवारी जी ने कर्तव्य पूरा कर लिया | सिपाही के दिल की कह नही सकते पर लड़की के दिल टूटने को क्या किन्ही शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है ?
लड़की सिपाही के साथ पुलिस क्वाटर में रहने आ गयी |बिना मर्जी कि शादी के जो हाल होते हैं वो यहाँ भी नजर आने लगे |लड़की गुमसुम और नाराज ही रहती |सिपाही मनाने कि कोशिश करता रहता |जहाँ तक संभव हो सिपाही उसे खुश रखने प्रयास करता पर विवाह कि गाड़ी तो दोनों की रजामंदी से ही दौड़ती है |पन्द्रह दिनों में ही रिश्ता घिसटने लगा |
आज लड़की खुश है बहुत खुश |पोस्टमैन कि चिठ्ठी डाकघर से ले आई है |रास्ते में ही चिठ्ठी पढ़ ली है |घर पर कोई नही है सिपाही थाने गया है,फिर भी छुप छुप कर कई बार चिठ्ठी पढ़ डाली है |फिर वही रातरानी दिन में महकने लगी है |शाम को सज धज कर फिर से चिठ्ठी पढ़ डाली है |सच है ,प्यार अँधा होता है ,तभी तो अक्षरों कि बदलाहट लड़की कहाँ देख पाई है |सिपाही आने वाला होगा ,चिठ्ठी को संदुक में छिपा दिया है |पर यह ख़ुशी एक दो दिन ही रहती है |फिर वही खीझ,झल्लाहट और अनमनापन |पर सिपाही के लिए तो यही एक दो दिन भागते भूत कि लंगोटी हैं |
लड़की लड़ झगड़ कर, नाराज हो कर ,जब जी चाहे मायके चली जाती है |कभी तिवारिन कभी तिवारी समझा बुझा छोड़ जाते हैं ,कभी सिपाही मना कर ले आता है | लड़की के लिए सिपाही के घर रहना मुश्किल होता जा रहा है | घर पर रोज तनाव ही बना रहता है ,सिवाय उन कुछ दिनों के जब लड़की को पोस्टमैन कि चिठ्ठी मिलती है |
लड़की पिछले कुछ दिनों से मायके में ही है |माँ सिपाही के प्यार और सहनशीलता कि दुहाई देते हुए लड़की को समझा रही है |
“बेटा तू इतने प्यार करने वाले के घर क्यों नही रहना चाहती |”
“तुम जानती हो माँ मै क्यों नही जाना चाहती |”लड़की रोते हुए चिल्ला रही है |
“हम सब तैयार थे पर जब पोस्टमैन ने ही मना कर दिया तो हम क्या करते |”माँ ने फिर समझाया |
“नही तुम झूठ बोल रही हो “ लड़की जोर दे कर बोल रही है |
“अरे हम क्या तेरे दुश्मन हैं हमने ही तो तेरी शादी कि बात पोस्टमैन से चलाई थी |अब सामने वाला ही मना कर दे तो क्या करें| वो तो अच्छा हुआ कि सिपाही राजी हो गया |”तिवारिन का स्वर भी तेज होता जा रहा है |
“झूठ है ,झूठ है ,वो क्यों मना करेंगे और यदि मना किया था तो चिठ्ठियाँ क्यों लिखते हैं |”लड़की के स्वर में दृढ़ता है |
“अरे एक दो चिठ्ठी लिख दी होंगी |”
“एक दो नही पूरी बारह चिठ्ठियाँ हैं बारह |” लड़की चिल्ला रही है |
“तो क्या शादी के बाद भी उसकी चिठ्ठियाँ आ रही हैं |”माँ आश्चर्य से पूंछ रही है |
“हाँ आ रही हैं, एक तो चार दिन पहले ही आई है |”
“नही, ऐसा नही हो सकता” माँ के स्वर में भय मिश्रित आश्चर्य है |
“क्यों नही हो सकता, घर चलो मै पढ़वाती हूँ सारी चिठ्ठियाँ |”
लड़की बोले चली जा रही है |
“नही,नही,ऐसा नही हो सकता |’ तिवारिन बोलते बोलते जमीन पर बैठ गयी है |
“ऐसा ही है माँ,ऐसा क्यों नही हो सकता ,ऐसा हुआ है हो रहा है |”माँ कि हालत देख लड़की अब कुछ घबड़ा रही है |
“क्योंकि बेटा, क्योंकि पोस्टमैन अब इस दुनिया में नही है |”माँ बदहवासी में बोल रही है |
“ये क्या कह रही हो तुम” लड़की को विश्वास नही हो रहा | उसे सब कुछ घूमता नजर आ रहा है | वो बेहोश सी हो गयी है |
माँ खुद को सँभालते हुए उसे समझा रही है “हाँ बेटा वो तो यहाँ से जाने के बाद ही एक एक्सीडेंट में भगवान के घर चला गया |”लड़की कि आँखें शून्य में देख रही हैं |शायद उसे कुछ दिखाई नही दे रहा ,शायद कुछ सुनाई भी नही पड़ रहा |लड़की लगभग अचेत हो गयी है |
तिवारिन ने छोटा लड़का थाने दौड़ा दिया है | सिपाही और हवलदार को बुलवाने |बड़ा लड़का गाँव के एकमात्र डाक्टर के पास भेज दिया गया है |सिपाही और तिवारी जी पास के गाँव में दबिश मारने गए है |लड़के ने आ कर माँ को बता दिया है कि दोनों देर रात तक ही आ पाएंगे | पर बड़ा लड़का डाक्टर को ले आया है |डाक्टर ने कमजोरी बताते हुए बोतल चढ़ा दी है| बुखार की दवाई भी दे दी है |
दोपहर तक लड़की कुछ ठीक अनुभव करने लगी है |तिवारिन अभी भी सोच सोच कर परेशान है कि चिठ्ठियाँ कहाँ से आ रही हैं ,इन्हें कौन लिख रहा है |शाम होने जा रही है |दोनों माँ बेटी सिपाही के घर कि ओर जा रहे हैं | घर की एक चाबी लड़की के पास है |दोनों घर पहुंच गए हैं | लड़की अपने संदूक से छिपाए गए पत्र निकाल कर माँ को दिखा रही है| माँ चिठ्ठियों को हैरानी से उलट पुलट रही है |
लड़की घबड़ाई हुयी है उसे एक चिठ्ठी नहीं मिल रही जो चार दिन पहले ही आई थी |उसे वो शायद संदूक में नही छुपा पाई |चिठ्ठी के लिए उसने पूरा संदूक खंगाल लिया है अब वो इसे सिपाही कि टेबिल में ढूंढ़ रही है |सिपाही कि डायरी में उसे एक चिठ्ठी मिल गयी है |उसका दिल धक् कर के रह गया है |”क्या सिपाही को चिठ्ठियों का पता चल गया है ? उसने चिठ्ठी संदूक में छिपा क्यों नही दी ? कुछ भी हो आखिर सिपाही उसका पति है |”विचार तेजी से आ रहे हैं|कांपती उँगलियों ने पत्र डायरी से निकाल लिया है |
छिपाने से पहले वो इसे पढ़ रही है |अरे ये क्या , ये वो चिठ्ठी नही है | है तो उसी के नाम पर अभी पूरी लिखी भी नहीं गयी है |
लड़की धम्म से कुर्सी पर बैठ गयी है | उसने अधूरी चिठ्ठी कई बार पढ़ डाली है |प्यार अँधा होता है पर इस बार उसने अक्षरों कि बनावट पहचान ली है |उसे पता चल गया है कि चिठ्ठियाँ कौन लिख रहा है |दूसरे कमरे से माँ उसे बुला रही है |उसने चिठ्ठी डायरी में वापिस रख दी है वो यंत्रवत माँ के पास खड़ी है |”बेटा ,इन चिठ्ठियों को जला दे नही तो तेरा घर बसने से पहले ही उजड़ जायेगा |”माँ समझा रही है |
लड़की चुप है |उसके मन में कोई निश्चय दृढ़ हो रहा है | उसने माँ को वापिस भेज दिया है माँ सिपाही के आने तक रुकना चाहती थी ,पर लड़की ने उसे भेज ही दिया |
लड़की ने आलू उबलने रख दिए हैं |चटनी बनाने के लिए टमाटर,धनिया ,अदरक, मिर्ची निकाल रही है |आज वो आलू के परांठे बनाएगी और कद्दू की खीर भी | ये सब सिपाही को बहुत पसंद है उसे पता है |
सिपाही आ गया है खाना हो गया है |सिपाही हैरान है और खुश भी ,बहुत खुश |रात बीतती जा रही है ऊपर चाँद बादलों से आंख मिचौली खेल रहा है नीचे सिपाही और लड़की गहरी नींद सो रहे हैं, बहुत गहरी |एक दूसरे कि बाँहों में ,मीठी और प्यारी नींद |
निश्चय ही अपने मजनू ,फरहाद, राँझा जैसे बड़े प्रेमियों के बड़े बड़े किस्से सुने होंगे | उनके प्यार के लिए आपके दिलों में बड़ी जगह भी होगी |लेकिन जरा देख लें कि कहीं ,इसकहानीमेंजो सिपाही का प्यार है ,वो भी आपके दिल में थोड़ी जगह तो नही मांग रहा ?
Note : Madhur Mohan is the FIRST PRIZE WINNER (joint) of QUATERLY CREATIVE WRITING COMPETITION (OCT_DEC,2018)
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