ज़िन्दगी तू क्यों इतनी परेशान है ,
करती बार-बार मुझे हैरान है।
न जाने कब बन गई है तू पहेली ,
मुझे तो लगता था कि, है तू मेरी सहेली।
कभी भी ले आती है आँखों में तू आँसू ,
ऐसे में कैसे मैं बार-बार यूँ हँसु।
सिसकियाँ जब होने लगती हैं कम ,
ला कर दे देती है तू, फिर एक नया ग़म।
रोज़ एक नया दिन, रोज़ एक नया कर्म,
कैसे समझ पाएँगे तेरा ये मर्म।
बढ़ते हैं आगे, जब मेरे ये कदम,
वापस खींचने के लिए, क्यों लगाती है तू दम।
पता नहीं किसके दिल से निकली है दुआ,
जो इन सब के बाद भी जज़्बा है मेरा अनछुआ।
सांस मेरी जब तक चलती रहेगी,
हिम्मत मुझे तब तक मिलती रहेगी।
चाहे न मिले चैन, ना मिले सुकून,
कम ना होगा अब मेरा ये जूनून।
तू लगा ले ऐड़ी छोटी का ज़ोर ,
मुझे मिल गया है एक ऐसा छोर।
जिसे पकड़ कर मैं चलूंगी आज,
चाहे कुछ भी आये मेरे हाथ में काज।
अब छेड़ तू नयी धुन, या छेड़ तू नया साज़ ,
मेरे हौसले को मैं बनाऊँगी, सिर का ताज।
अब ना गिरा पाएगी, फिर तू मुझ पर गाज,
क्यूंकी…. मुझे मिल गई है मेरी अंतरात्मा की आवाज़।।
By Smriti Kaushik
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