सब सही परंतु कुछ अच्छा नहीं,
अच्छी बातों को सुन लिया, समझ लिया पर धारण क्यों किया नहीं।
क्यों दर्द बांटने पर कम होगा जब दर्द बयां होए ही नहीं,
क्यों तू है आज उसके पीछे जो तुझे मिला ही नहीं,
सब सही परंतु कुछ अच्छा नहीं।
क्यों दिया सुख जब दुख का स्त्रोत तू ही,
रिश्ते क्यों बढ़ाए, जब निभाने आते नहीं।
क्यों किया वो जो तुझे आता नहीं,
क्यों रोए जब कोई आंसु पोछने वाला नहीं।
दूसरों के बारे में सोचे, पर दूसरों का अच्छा सहन होता नहीं,
क्यों तू अधिकार समझे उनपर जो तेरा है ही नहीं,
जब सब है सही तो तू खुश क्यों नहीं।
क्यों हार जाऊं जब जीत सकता ही नहीं,
समझ कर भी तू क्यों समझा अपनी फिदरत नहीं,
तू जब है कमज़ोर तो कमज़ोरी हटाई क्यों नहीं,
सब सही परंतु कुछ अच्छा नहीं।
जो सोचा क्यों पाया नहीं,
जो खोया उससे भुला क्यों नहीं,
जो सीखा, समझा उससे जीवन में उतरा क्यों नहीं
क्यों मर मर के जीना जब जीना ही नहीं।
क्यों करता है जो तेरे गुण ही नहीं,
क्यों दिखता है जो तू है ही नहीं।
क्यों खुश नहीं जब तेरे चारों ओर सबकुछ सही,
क्यों है ये चाहत जब पाने के उम्मीद भी नहीं।
क्यों हैं परेशान जब ये परेशानी खत्म होती ही नहीं,
क्यों करू कुछ भी जब कुछ भी अनुकूल मिलता नहीं।
क्यों रुके जब रुकना न लगे सही,
क्यों है ये नफ़रत जब प्यार भी,
सब सही परंतु कुछ अच्छा नहीं।
क्यों जीयु जब मरना ही लगे सही,
डर गए तो मर गए कहते है सभी
पर जब लगे डर तो क्यों है जिंदा नहीं,
क्यों बढ़े वहां जहां तेरी मंजिल ही नहीं
कैसे हुआ समय बरबाद जब समय का मोल ही नहीं
सब सही परंतु कुछ अच्छा नहीं।
क्यों खुश नहीं जो पा लिया तूने
क्यों दूसरों को देखकर उनसे आगे बढ़ने की आग भुजती नहीं
है अगर अच्छाई तो मुझमें क्यों आती नहीं
है अगर बुराई तो दूर मुझसे जाती नहीं
है अगर सब सही तो अच्छा लगता क्यों नहीं
अंदर झांक कर देख कहीं तू तो गलत नहीं।
क्यों मौत से पहले कुछ करे बड़ा
By: VISHAL KUMAR SINGH
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