कन्या एक नन्हे से फूल सी खिलती है
जो सिर्फ खुशनसीबो को ही मिलती है,
जिसको दुनिया माता का स्वरूप भी कहती है
जिसके जन्म पर दुनिया गम मे बहती है ,
जिसके पैदा होते ही उसे पराया धन कहा जाता है
उसका बचपन 8-10 साल मे ही खत्म हो जाता है ,
उसे पढ़ाना भी परीवार कि मजबूरी है
क्योकि शादी के लिए यह जरूरी है ,
उसे अपने परीवार मे भी नही गिना जाता है
यहा तक कि उन्हे पित्र पूजा से भी दूर रखा जाता है,
उसका परीवार अपने ही घर मे दुख-दर्द सहने कि आदत डाल देता है
जिसके सपने भी कोई और तह कर देता है,
जिसकी पूरी जिंदगी घर मे सीमट कर रह जाती है
जो 20-25 साल अपने ही घर मे गैरो कि तरह बिताती है ,
जिसकी परवरीश भी दूसरो के हिसाब से करते है
जिसको अपने सपने भी दूसरो के हिसाब से देखने पड़ते है ,
जिसको अपने ही घर मे बोझ कि तरह रहना पड़ता है
उम्र के बड़ते-बड़ते उसे बहुत कुछ सहना पड़ता है,
जिसकी जिंदगी किसी कारावास से कम नही
जिसके लिए मां-बाप का हर फैसला सही,
फिर न चाहाते हुए भी अपनो से दूर जाकर रहती है
एक अनजान परीवार मे सब कुछ अकेले ही सहती है,
जो हर पल आंसू कि घुंट भरते है
उसको लड़की वाले खाली हाथ भी नही स्वीकारते है ,
जो एक बहन, पत्नी और मां के रिश्ते निभाती- निभाती मर जाती हैं
फिर भी ये समाज में बोझ मानी जाती हैं
By: Anjali Mudgal
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