ना मै अबला हूँ अब
ना मैं अबला थी तब ।
मैं हूँ अब दामिनी
मै थी तब दामिनी |
मुझको बाबुल के घर बेटी बहना कहा ।
मेरी मैय्या ने नखरों को मेरे सहा ।
आई साजन के घर नये बाबुल
मिले जिसनें भाभी कहा उसके चेहरे खिले रम गई
मै वहां जिसने पूजा मुझे कालिका बन गई
जिसने घूरा मुझे कौन कहता है
कलको मै नादान थी आज बलवान हूँ ,
कल भी बलवान थी तब
था रावण ने जाना छुआ तक नहीं ।
आज भी लोग कहते है विद्वान उसे हरी थी
उसने सीता अपने कुल के लिए जानता था
सबो ने कुल कलँकित किए बैर प्रभु से वो लेकर अमर हो गया
सिया को न छूकर बहुत कह गया
आज की हूँ नारी समझ लो मुझे वरना कर लो प्रभू से जो वो कर गया ।।
रचयिता: नेहा शुक्ला Participate in Creative writing Contest & International Essay Contest and win fabulous prizes.