गांव का जाड़ा

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बच्चों से जो डरती है जवान है जिसके भाई बूढ़ों को तो छोड़ती नहीं जितनी ओढ़े वह रजाई ;

जाड़े की तैयारी कर लो भई ठंड की ठिठुरन करने लगी अब बर्फ की सिकाई।

जाड़े के संगी कंद-मूल का मौसम आया ,गोद में वसुंधरा के जाग कर ले रहे जमकर अंगड़ाई ।

सेम की लताएं फैल रही हैं निरंतर छू रही हैं हर ऊंचाई।

सर्दी के मौसम ने चहुंओर रंगों की है दुकान है लगाई।

कहां ?

जरा फूलों को निहारो भई।

खोलकर दुकान रंगों की फूलों ने की खूब कमाई

कीट- पतंगों ने अपनी भीड़ बढ़ाई। गेंदे ने लूट ली सारी वाहवाही।

पीला नारंगी रंगों की हुई खूब कमाई क्योंकि जाड़े को भाए इन रंगों की पुताई ।

शोर मचा है डाल -डालऔर पाती -पाती शिखर पर बैठकर गुनगुनी धूप सेकने के लिए पंछी कर रहे हैं लड़ाई ।

सुहानी लगने लगी धूप जो लगती थी अब तक परेशानी ;

गुनगुनी धूपसेंकने लोगों ने आंगन -छत पर चहल कदमी है बढ़ाई ।

शाम ढलते तक गोष्ठियां आंगन में दे रही हैं सुनाई ।

खेत- खलिहान से विदाई अब धान की होने की आई, ज्यादा कसरत करवा रहे धान की किसान भाई।

खेतों में मिर्च की थैलियां लटक रही है, खिलखिला रहे लाल टमाटर डाली डाली । हरे मैदान में होने लगी सब्जियों के मेले की तैयारी।

मेढ़ की तुअर कर रही सर्द हवाओं से हाथापाई।

रबी, तिलहन ,दलहन की फसलों ने छिपकर ओढ़ ली मटमेली रजाई उन्हें जगाने के लिए हो रही हर रोज सिंचाई ।

ठिठुरा रही हैं सर्द हवाऐं ; ठंड का सितम जारी है ।

गांव में सिर्फ अलाव ,अंगीठी है त्राण जो बचा रहे हैं सर्द ऋतु में सबके प्राण। चाय का पतिला भी ठंड से कांपे तभी तो चूल्हे से उसे दिनभर कोई ना उतारे।

चुस्कियां चाय की थोड़ी राहत दिलाए ,गुनगुनी धूप सब को नहलाए , अंगीठी से लोग करें बदन की सिकाई फिर भी सब पूछ रहे तपन रानी से ठंड कब लेगी बिदाई ?

रचयिता: आशीष रहांगदाले

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