कविता श्रृंखला: सनिधि यादव

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*मझु को तो अकेला रहने दो*


क्यों दीप जलातेहो मन में,

इस घर में अंधेरा रहने दो,

औरों का जहां आबाद करो,

मुझ को तो अकेला रहने दो,

कुछ दूर तो साथ चले होते

हम अपनी कहानी कह देते

जो अपना स्वर तुम देना सके,

तो गीत अधूरा रहने दो

बिन कारण मुझ से रूठ गए,

वह नेह के नाते टूट गए,

तमु प्यार करो मुझसे ना करो

मुझ को तो अकेला रहने दो।


*नाम -सुनिधि यादव*


*अंतिम अभिलाषा*

लो आज चला इस दुनिया से

साथी न मिला इस धरती पर,

अगर अपना सा मैं तुझे

लगूतो फूल चढाना अर्थी पर

यह मौंन अस्थियां अब मेरी

तमु को न बुलाने जाएंगी

कुछ समझ सको तो आ जाना

यह बस यूं ही जल जाएंगी,

यूं तो जीवन भर जला दिया,

अब आज आखरी ज्वाला है,

तमु दो बूंद आंसू छलका देना

समझूंगी की यह वरमाला है,

बल पाकर धुआं उठेगा जब

पढ लेना तमु उसकी भाषा,

मिलना फिर अगले जन्म में तमु ,

यही है अंतिम अभिलाषा है

यही है अंतिम अभिलाषा

यही है अंतिम अभिलाषा ।।


*नाम -सनिधि यादव*आयु -15

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