डायनासोर द सुपर पावर! एलियन द सुपर पावर! ह्यूमन द सुपर पावर! हमें अक्सर सुनने को मिलता है। सुपर पावर अर्थात सर्वशक्तिमान की अवधारणा विभिन्न काल- खंडों में भिन्न-भिन्न रही है। किसी जमाने में इस धरती पर डायनासोर नामक विशालकाय जीव का आधिपत्य था | यह जीव अपनी स्थूल शक्तियों एवं हिंसक प्रवृत्तियों के कारण सर्वशक्तिमान था। किंवदन्तियों से एलियन नामक कल्पनातीत प्राणियों के संबंध में जानकारी मिलती है। किसी अन्य ग्रह के वासी एलियन की शक्ति अदृश्य एवं अद्भुत है, जिससे उन्हें सर्वशक्तिमान की संज्ञा प्राप्त होती है। आज मनुष्य अपने बल एवं विवेक से सारे प्राणियों पर अपना प्रभुत्व कायम कर अपने कालखंड का सर्वशक्तिमान बना हुआ है। पर मेरी अभिरुचि सर्वशक्तिमान के रूप में प्राणी-जगत पर आधिपत्य कायम करने के बजाय उनके भावी समस्याओं के समाधान में है – चाहे अदृश्य शक्तियों के माध्यम से हो या रोबोटिक्स के माध्यम से | इसी संकल्पना के साथ मैं अब सर्वशक्तिमान के रूप में अपनी छद्म – यात्रा प्रारंभ कर रहा हूँ |
अरे!यह व्यक्ति गुमसुम क्यों है? शरीर से स्वस्थ दिख रहा है, खाने-पीने एवं पढ़ने-लिखने की सारी चीजें इसके पास मौजूद है। पॉकेट में पैसे भी हैं पर यह किस उधेड़बुन में पड़ा हुआ है? ठहरो, मैं इसकी ब्रेन मैपिंग करता हूं | ओ! माय गॉड!यह तो सामाजिक यातना का शिकार है| इसकी स्वाभाविक रुचि तो खेल में है पर परिवार का दबाव इसके कदमों को बोझिल बना दिया है। अपनी अदृश्य उर्जा से उसकी सुषुप्त रूचि को जागृत करता हूं। वह व्यक्ति आनंद का अनुभव करते हुए अपनी पूर्ण क्षमता से खेल की विधाओं को सीख रहा है| अब तो वह अंतरराष्ट्रीय खेलों में भाग लेकर देश का नाम रोशन भी करने लगा है।
आगे बढ़ता हूँ, सामने एक वृद्ध व्यक्ति, बिल्कुल अकेला। क्या इनके पुत्र-पुत्री नहीं है? क्या इनकी पत्नी जिंदा है? इनका कोई घर है अथवा नहीं? इतना लाचार क्यों दिख रहा है? ठहरो, इनके परिवार की कुंडली देखता हूँ | परिवार तो भरा-पूरा है—एक पुत्र है, एक पुत्री है और वृद्ध पत्नी भी। घर आलीशान है। किंतु पुत्र एवं पुत्री विवाह के बाद विदेश में बस गए हैं। आलीशान घर में वृद्ध माता-पिता की देखभाल करने वाला कोई नहीं है | क्यों ना ऐसे वृद्ध व्यक्तियों के लिए उनके संतान सदृश एक आज्ञाकारी रोबोट का प्रबंध कर दूँ, जो देखभाल के साथ संतान-सुख प्रदान कर सके। इस महत्वाकांक्षी प्रबंधन से तमाम वृद्ध एवं लाचार दंपतियों की खुशी वापस लौट आई है |
अचानक मेरी नजर अस्पताल पर पड़ती है। यहाँ कई लोग अपनी मृत्यु से संघर्ष कर रहे हैं। कुछ लोग मृत्यु के समक्ष आत्मसमर्पण कर रहे हैं तो कुछ लोग जीवनदान की मिन्नतें कर रहे हैं। इनकी जीवन कुंडली खंगालने की कोशिश करता हूँ | कई लोग तो रईसी में अपनी जीवनशैली ही बिगाड़ ली है तो कई लोग अति हाइजेनिक होकर अपने जीवन को ही संकट में डाल दिया है। फलत: जीवन में संतुलन लाने के लिए मैं इन्हें प्रेरित करता हूँ | परिणाम उत्साहवर्धक आ रहे हैं। मृत्यु -शैया से उठकर जीवनदान पाने वाले व्यक्ति इस अभियान के वाहक बन रहे हैं |
सबसे बुरा दृश्य वेश्यावृत्ति एवं बलात्कार का है | जिस देश में नारी पूजी जाती हो, वहां इसका स्थान पाना समझ के परे है। दोषी युवा -युवती है या समाज? जो परिवार के धरोहर हैं, वे गंदे गह्रर में कैसे गिर सकते हैं? मैं काफी कंफ्यूज हूँ |कहीं से कोई ठोस कारण दिख नहीं रहा है। अमीर -गरीब सभी वर्ग शामिल है | इसका कारण अभाव कहूं या शौक? यह गंदगी समय के साथ तेजी से फैल रही है। इससे समाज को उबारना ही होगा | मैं इसके जिम्मेवार कारकों को कुरेदता देता हूं। आश्चर्य का ठिकाना नहीं | यहां तो न युवा दोषी है न युवती। समाज भी कहीं दोषी नहीं है। असल दोषी तो उसके जीन एवं हार्मोन का असंतुलन है। अब मैं अपने अदृश्य तरंगों से उसके जीन एवं हार्मोन का उपचार करता हूँ | अब वे अतीत की कुहेलिका से निकलकर आदर्श परिवार स्थापित कर रहे हैं।
अंत में, मेरी दृष्टि पर्यावरण पर पड़ी है | लोगों ने स्वार्थवश इसे काफी प्रदूषित कर रखा है| पेड़-पौधों को काटकर जंगलों को क्षत-विक्षत कर दिया है। कई प्राणी विलुप्त होने के कगार पर हैं। जो जीवित है, उसे कैद करने की कोशिश की जा रही है | इसके लिए प्रकृति बार-बार सचेत कर रही है पर सर्वशक्तिमान का ढोंग रचने वाला मनुष्य अपना ही अस्तित्व मिटाने पर तुला हुआ है। एक सर्वशक्तिमान दूसरे सर्वशक्तिमान को कैसे काबू में लाये, मुझे सोचने पर विवश कर दिया है | अब मैं कोरोना नामक विषाणु का सहारा ले रहा हूँ | भले ही इससे कुछ निर्दोष लोगों की जानें जाएंगी पर मानव जाति का अस्तित्व तो बच जाएगा। दूसरों को कैद करने वाला आज स्वयं कैदी बनकर बैठा हुआ है। पर्यावरण भी परिशुद्ध हो गया है। उम्मीद करते हैं कि अब मानव के साथ सारे प्राणी-जगत का जीवन निर्बाध रूप से लंबे अरसे तक बरकरार रह सकेगा। यही हमारी हार्दिक इच्छा है और चिरप्रतीक्षित कामना भी। इसी के साथ मैं सर्वशक्तिमान की कल्पित भूमिका से मुक्त हो रहा हूँ |
By Upendra Prasad
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