यह कहानी के हीरो है अल्बर्ट अल्बर्ट का जन्म सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में एक श्रीमंत परिवार में हुआ था।अल्बर्ट के पिताजी डॉक्टर थे और माँ एक पुस्तकालय में काम करती थी। अल्बर्ट के सारे शौख कहो या फरमाइश सभी तुरंत पूरी की जाती थी। अल्बर्ट के जन्म के बाद उसके दादा और दादी का घर आना जाना लगा रहता था। अल्बर्ट बहोत खुश रहता था जब जो चाहा मिल जाता था। पिताजी डॉक्टर थे तो अल्बर्ट भी उनके काम में रुचि लेता था। धीरे धीरे उसे भी बहोत सारी दवाइयों के नाम पता चल गए थे। कब कोनसी दवाई लेनी चाहिए उसे अब पता चल रहा था। दादा दादी जब भी घर आते तो वह उनको उनकी दवाई के बारे में पूरे विस्तार से बताता था। कौन सी दवाई कैसे शरीर में जाकर काम करती है सब वो अपने दादा दादी को बता था। अपनी विद्यालय की पढ़ाई पूरी होने पर उसने भी डॉक्टर बनने का निर्णय जारी रखा और एक दिन वह डॉक्टर की परीक्षा पास कर डॉक्टर बन भी गया। अल्बर्ट ने शादी कर ली पर अल्बर्ट का आना, जाना, खानापीना किसी बात पर कोई ध्यान रहता नहीं था इसी कारण से कुछ ही महीनों में उनका तलाक हो गया था। अल्बर्ट ने अपनी मेहनत और लगन से कामयाबी हासिल की थी और अपना एक अस्पताल भी बनाया था।
अल्बर्ट की एक परेशानी थी “हिंदुस्तानी” जी हाँ ठीक पढ़ा आपने। हिंदुस्तानीओ की तो आदत है जब मौका मिला तब मज़ाक मस्ती करो। खास कर सफर में अचानक बैग में से कुछ खाने की चीजें निकालकर खाने की चीजों आनंद लेना। जब भी किसी हिंदुस्तानी को देखते तो उनको गुस्सा आता था। अल्बर्ट हिंदुस्तानी से किसी भी प्रकार का लेन देन नहीं करते थे। और उसमे भी जब कोई हिंदुस्तानी डॉक्टर हो तो उनका गुस्सा सातवे आसमान पर होता था। उनका मानना था की हिंदुस्तानी सभी काम जुगाड़ से ही करते है। अस्पताल में मास्क नहीं तो रुमाल का प्रयोग कर लेते है। ऑपरेशन कामयाब रहा तो भगवान का शुक्रिया अदा करेंगे और ना-कामयाब रहा तो डॉक्टर को जिम्मेदार ठहराते है।जब कोई हिंदुस्तानी मरीज़ उनके अस्पताल में आता तो अल्बर्ट आस पास अगर कोई हो तो उसे कहता था देखना तुम यह मरीज़ पहले अपनी बीमारी बताएगा फिर खुद ही उसका इलाज भी बताएगा, फिर देखना जब इसे दवाई लिख कर देंगे ना तब फिर बोलेगा यह लाल नहीं वो हरी वाली दवाई दीजिए उस से ज्यादा जल्दी ठीक हो जाएगा। हिंदुस्तानी के पास सभी मुसीबतों का हल होता है खासकर जब वो परेशानी किसी दूसरे की हो।
अल्बर्ट का पूरा दिन एक जगह से दूसरी जगह जाने में ही निकल जाता था। एक दिन किसी मरीज़ को देखने जा रहे थे उस वक्त वो गाड़ी खुद चला रहे थे। एक डॉक्टर होने के ख़ातिर वह अपनी बाकी ज़िम्मेदारी भी अच्छे से समझते थे और ट्रैफिक के सारे नियम का पालन करते थे। पर उस दिन अचानक एक ट्रक का ब्रेक फैल हो गया था और वह ट्रक आ कर अल्बर्ट की गाड़ी से टकराया और अल्बर्ट की जगह पर ही जान चली गई। अल्बर्ट के चले जाने से बहोत लोग दुखी हो गए थे। मरीज़ के लिए तो वो देवता समान थे। लोगो ने उस ट्रक ड्राइवर को न जाने कितनी बद-दुवा दी होगी। कई डॉक्टर अल्बर्ट पर निर्भर थे, जब भी अल्बर्ट आस पास या ऑपरेशन थिएटर में रहते थे सभी का काम करने में आत्मविश्वास बढ़ता था।
अल्बर्ट के जाने के बाद सभी डॉक्टर की यह भी चिंता थी की अब अस्पताल का क्या होगा। सरकार इसे अपने कब्ज़े में ले लेगी? या फिर इस अस्पताल को बंध कर देगी क्योंकि अल्बर्ट के माता पिता का तो देहांत हो गया था। अस्पताल की एक समिति बनी थी। समिति ने आपस में मुलाकात कर सरकार से मिलने का निर्णय लिया। सरकार ने समिति के सभी सदस्यों से कहा की आप या तो चुनाव कर लीजिये या तो फिर आपस में बातचीत करके कोई एक अभिरक्षक बन जाए और हमें समय समय पर अपनी रिपोर्ट भेजे। सरकार ने यह निर्णय इसलिए लिया क्योंकि बहोत सारे मरीज़ उस अस्पताल पर निर्भर थे। सिर्फ मरीज़ नहीं अस्पताल के कर्मचारी भी निर्भर थे अचानक से अस्पताल बंध करना आसान नहीं था।
सरकार को भी बहोत सारे काम करने थे अल्बर्ट के घर का, बैंक में जमा राशि का और उनके गाड़ी का क्या करना यह भी सोचना था। अस्पताल में रखे हुए सारे मशीन कब और कहा से ख़रीदे थे और कितनी कीमत में ख़रीदे थे अस्पताल का मालिक सिर्फ अल्बर्ट अकेले थे या यह किसी के साथ भागीदारी करके ख़रीदा था। कई ऐसे सवाल थे सरकार के सामने इसलिए सरकार ने निर्णय लिया अभी जो भी चल रहा है उसे वैसे ही चलने दो। सरकार अपनी एक अलग समिति बनाएगी जो पूरे जांच पड़ताल के बाद फैसला लेगी। सरकार को तो यह भी देखना था की अल्बर्ट की गाड़ी का अकस्मात हुआ था या किसी ने लालच में आकर करवाया था।
दूसरा जन्म (मुंबई, हिंदुस्तान में):भाग २
अल्बर्ट ने कभी सपने में भी सोचा नहीं था की उसका दूसरा जन्म हिंदुस्तान में होगा। जी हाँ आप ठीक समझे आखिर अल्बर्ट का पुनर्जन्म हिंदुस्तान में हुआ। करोड़पति से रोड़पति सुना तो है सभी ने पर यहाँ वो सच हो गया था। अल्बर्ट का जन्म गोरेगांव, मुंबई में एक फुटपाथ पर रहता परिवार में हुआ। अल्बर्ट के माता पिता खिलोने बेचने का काम करते थे। अब अल्बर्ट नाम को यहाँ रोकना पड़ेगा, क्योंकि अब अल्बर्ट का नाम बिरजू हो गया था। ज्यादातर माँ ही सब कुछ संभालती थी, पिताजी कड़िया काम जानते थे तो जब कोई काम मिल जाता तो फिर माँ अकेली ही खिलोने बेचने चली जाती थी। खिलोने बेचने रोज अलग अलग जगह पर जाते थे।
मुंबई में हफ्ते के सात दिन के सात बाजार मिल जाएंगे। मलाड जाओगे तो सोमवार बाजार, गोरेगाव में गुरुवार बाजार ऐसे सभी जगह अलग अलग दिन बाजार लगते है। बिरजू के माता पिता सभी दिन अलग अलग जगह जाकर खिलोने बेचते थे।
फुटपाथ के पास करीब १०-१२ परिवार रहते थे जो सब ऐसे ही कुछ न कुछ सामान बेचते थे। सभी लोग साथ में ही जाते थे तो एक दूसरे को मदद मिल जाती थी खास कर ट्रेन में आने जाने में आसानी होती थी। बिरजू अब तीन साल का हो गया था। अब वो अपनी माँ के साथ खिलोने बेचने जाता था। सभी माँ अपने बच्चों से जान से भी ज्यादा प्यार करती है और इस बात का एहसास बिरजू को भी हो गया था। बिरजू अपनी जिंदगी से परेशान कम और हैरान ज्यादा था। उसे पता चल गया था की रोज सुबह उठ कर कहीं न कहीं खिलोने बेचने जाना है पर उसकी चिंता यह थी की आखिर कब तक ऐसा चलेगा? क्योंकि रोज कमा कर रोज खाने से भविष्य में कामयाबी कैसे मिलेगी। किसी लोटरी के इंतज़ार में ही जिंदगी चली जाएगी। माँ बाप की परिस्थिति देखकर उसे अंदाज़ा आ गया था की किसी भी विद्यालय में उसका दाख़िला होने वाला है नहीं।
बिरजू एक समझदार बच्चा था वो जानता था की सारे खिलोने बेचने के लिए है, खेलने के लिए नहीं अगर वो उस खिलोने से खेलेगा और खिलौना गन्दा हो गया या टूट गया तो कोई उसे खरीदेगा नहीं और उतना नुक्सान होगा। उसे बुरा यह भी लगता था की माँ पूरे दिन काम करने के बाद शाम में फिर सभी के लिए खाना बनाती थी और बाकी सब घर के काम भी करने पड़ते है और माँ हसते मुस्कुराते सब कुछ कर लेती थी। बिरजू अब समझ गया था की कोई चारा नहीं है ऐसे ही जिंदगी निकल जाएगी। देखते ही देखते समय निकल गया और अब बिरजू ५ साल का हो गया था। जब वो पांच साल का हुआ तब उसे कुछ अजीब से सपने आते थे, उसे समझ में नहीं आता था की किसी को बताये या नहीं। उसे उसके पिछले जन्म के सपने आते थे जी हाँ बिलकुल वैसा ही जैसे फिल्मो में होता है। उसने आखिर एक दिन अपनी माता से बात की माँ ने तुरंत कहा बेटा अब तू उस दिशा में सर रखकर मत सोना, तू पुल के नीचे सोना बाहर फुटपाथ पर सोता है ना इसलिए ऐसे बुरे सपने आते है। बिरजू ने माँ की बात मानकर पुल के नीचे सोना शुरु किया पर सपनो का सिलसिला चलता रहा। उसकी तबियत अब बिगड़ने लगी थी क्योंकि रात में अच्छी तरह से सो नहीं पा रहा था। आखिर माँ उसे एक डॉक्टर के पास ले गई। दवाई से अब उसकी नींद तो पूरी हो रही थी पर उसे धीरे धीरे सब कुछ याद आ रहा था सभी सपनो को वह जोड़कर सोचने लगा था। एक दिन सुबह सभी परिवार डर गए थे क्योंकि बिरजू बहोत बहोत जोर से चिल्लाया था। उसे अपना वो अकस्मात दिखा था जिसमे वो एक ट्रक के नीचे दबकर मर गया था।
भाग ३
सुबह उठकर वह अपने आस पास देखने लगा था अपने माँ बाप को, बाकी परिवार को, पहले तो वह कुछ समझा नहीं। फिर उसे अंदाजा आ गया की अब में हिंदुस्तान में पैदा हुआ हूँ। एक ग्लास पानी पीकर वो सभी से बोला में ठीक हूँ और पुल से थोड़ी दूर चला गया। पुल ख़तम होते ही एक सिगनल था जहा वो हमेशा बैठता था वहीँ जाकर बैठ गया।
उसे यकीन ही नहीं हो रहा था की वो ऑस्ट्रेलिया से हिंदुस्तान ऐसी हालत में आएगा। इस वक्त उसे भगवान और गॉड दोनों पर एक साथ गुस्सा आ रहा था पर उसने अपने आप को संभाला और थोड़ी देर आँख बंद करके बैठा रहा। माँ उसे ढूंढते ढूंढते फिर आ गई पूछने लगी बेटा तू ठीक तो है ना? बिरजू बोला हाँ माँ कुछ नहीं हुआ फिर एक भयानक सपना देखा पर यह आखरी सपना था। माँ बोली आखरी सपना? बिरजू बोला माँ तुम नहीं समझोगी। माँ बोली ठीक है चल तैयार हो जा खिलोने लेके जाना है।बिरजू थोड़े दिन परेशान हुआ पर उसने सोचा की जिस लोटरी के बारे में वह सोच रहा था शायद अब वो लोटरी मिल गई है। अब इस लोटरी को कॅश में कैसे बदलना है उसके बारे में सोचना है। बिरजू की सोच में अब कैसा परिवर्तन आ गया देखिए कल तक वो सोचता था की उसके पास भी एक साईकल होती तो कितना अच्छा होता, भले उसमे ब्रेक न भी होता तो चला लेता। आज बिरजू सोचता है की इन सब बड़ी बड़ी गाड़ियों मे तो में बैठ चूका हूँ। अब उसकी सोच एक समझदार इंसान की तरह हो गई। हकीक़त तो यह ही है की साईकल और गाड़ी उसके पास कल भी नहीं थी और आज भी नहीं है पर उसे अब कोई गम नहीं। सभी इंसानों के दुःख का ज्यादातर कारण उसकी सोच होती है। एक अच्छी सोच गम को ख़ुशी में बदल सकती है। बिरजू कभी कभी सिगनल पर दोनों हाथ जेब में रखकर (भले जेब फटी हुई थी) चारो और ऐसे देखता था जैसे उसने पूरी मुंबई खरीद ली हो। बिरजू जब शाम को माँ के पास बैठकर खाना खाते समय माँ को बोलता की माँ तू देखना एक दिन यहाँ हेलीकॉप्टर मुझे लेने आएगा। पास बैठे हुए परिवार उसका मज़ाक उड़ाते थे और बोलते की वो जो खिलोने में रखा हुआ है उसी की बात कर रहा है ना? बिरजू थोड़े गुस्से से उनकी तरफ देखता था और फिर मन में ही बोलता था इसी कारण से मुझे हिंदुस्तानी से नफरत थी, दूसरे के मामले में ज्यादा पंचायत रहती है सबको। फिर माँ के सामने देखकर सोचता सभी हिंदुस्तानी ऐसे नहीं होते है अगर मेरा जन्म हिंदुस्तान में नहीं होता तो माँ का प्यार और ममता में इस जन्म में भी समझ नहीं पाता। माँ भी बोलती तुझे बड़ा होकर जो करना है वो करना पहले तू खाना खा ले।
बिरजू के साथ तो जैसे बहोत बड़ा चमत्कार हो गया कल तक जो अनपढ़ था आज अचानक से डॉक्टर बन गया (यह बात अलग हे की ५ साल के बच्चे ज्यादा पढ़े लिखे नहीं होते)। जी हाँ बिरजू को पिछले जन्म का सब कुछ याद था पढ़ना लिखना अपनी डॉक्टर की सारी तालीम उसे याद थी। कभी कभी सिगनल के पत्थर पर बैठकर अपने आप से अंग्रेजी में बात कर लेता था।
बिरजू का एक मित्र था ट्रैफिक पुलिस भोसले। सिगनल पर कभी कभी भोसलेजी से उसकी बातचीत होते रहती थी। एक दिन भोसलेजी उसके बाज़ू में आकर बैठे और बोले बिरजू साहब कैसे हो ? मन में बिरजू बोला साहब तो में बन गया हूँ बस अब कागजपत्र की कमी है। बिरजू बोला ठीक हूँ साहब आप बताये कैसे चल रहा है हालचाल। भोसलेजी बोले भगवान की मेहरबानी है सब कुछ ठीक है। फिर बिरजू ने सोचा कागजपत्र के बारे में भोसलेजी को पता होगा थोड़ी बात कर लेता हूँ। बिरजू ने भोसलेजी से कहा साहब कभी बहार भी घूमने चले जाओ बीवी बच्चो को भी खुश कर दो। भोसलेजी बोले अरे अभी तो गांव जाकर आए है हर १५ दिन में किधर घुमाते रहूं?बिरजू बोला भोसलेजी में गांव जाने की बात नहीं कर रहा हूँ। कहीं विदेश-बिदेश भी जाना है या नहीं की पूरी जिंदगी सिर्फ मर-मर के काम ही करना है? भोसलेजी तुरंत बोले येड़ा हो गया है क्या? विदेश जाने में कितना खर्चा होता है मालूम है क्या कुछ? बिरजू बोला साहब खर्चा तो होगा ही ना अगर मुफ्त में होता तो हर १५ दिन में सभी लोग विदेश ना जाते? जिंदगी का कोई भरोसा नहीं आज है कल नहीं इसीलिए कहता हूँ ज़िन्दा है तो एक बार विदेश जाकर आओ पता नहीं अगला जन्म कब, कहाँ और कैसा मिलेगा। भोसलेजी बोले नहीं रे बहोत ज्यादा खर्चा हो जायेगा, में और मेरी बीवी और २ बच्चे ४ लोगो का विदेश आना जाना बहोत महंगा पड़ेगा। बिरजू बोला क्या साहब पैसा पैसा कर रहे हो आप अभी अपने बच्चो को ले जाओगे तो वो भी तैयार हो जायेंगे। वरना कल जब वो बड़े हो जायेंगे तो वो भी यही सोचेंगे की कितना खर्चा हो जाएगा। अगर ऐसे चलता रहा तो कोई विदेश जा ही नहीं पाएगा। फिर आपके पढ़े लिखे होने का क्या फायदा?
सरकारी नौकरी होने का क्या फायदा? आपकी और हमारी जिंदगी एक जैसी ही है सुबह से श्याम तक सिगनल पर ही जिंदगी निकल जाएगी। भोसलेजी तुरंत बोले अरे बाबा बस कर तूने तो बातो बातो में मुझे सीधे फुटपाथ पर लाकर खड़ा कर दिया। बिरजू बोला जी नहीं आप पहले से ही फुटपाथ पर हो में आपको रन-वे के सफर के बारे में समझा रहा हूँ पर आप रन-अवे(run away) समझते जा रहे हो।अचानक बिरजू की माँ की आवाज़ आयी, बिरजू कहाँ हो ? बिरजू ने तुरंत आवाज़ दी आया माँ और जाते जाते भोसलेजी को बोल गया मेरी बातों पर एक बार सोचना ज़रुर। कुछ देर के लिए तो भोसलेजी सोच मे पड़ गए की यह ५ साल का बच्चा बातों बातों में कितना कुछ बोल गया और जो बोला वो सच भी है। जब में छोटा था तब कभी पैसे के बारे में नहीं सोचता था आई बाबा जहाँ ले जाते थे हस्ते कूदते जाने को तैयार था अब बात बात में पैसो का हिसाब रख रहा हूँ।कुछ दिन बाद फिर बिरजू भोसलेजी से मिला और बोला क्या हाल है भोसले साहब। भोसलेजी बोले शुक्रिया दोस्त। बिरजू बोला किस बात का शुक्रिया? मेने क्या किया? भोसलेजी बोले तूने जो किया वो आज तक किसी ने नहीं किया। वो सब छोड़ तुझे जानकर ख़ुशी होगी की मेने विदेश जाने का फैसला कर लिया है। बिरजू बोला हो हो हो क्या बात है भोसलेजी भी अब हाइवे से सीधा रन-वे की और निकल पड़े। अभी सिर्फ मेने जाने का फैसला किया बहोत तैयारी करनी पड़ेगी। पहली बार जा रहे है ना। बिरजू बोला किस प्रकार की तैयारी? भोसलेजी बोले अरे पहले तो सारे कागजपत्र जमा करने पड़ेंगे। आधार कार्ड, पैन कार्ड, ना-हरकत प्रमाणपत्र (NOC) ,यह सब कागजपत्र होंगे तब जाकर पासपोर्ट बनेगा उसके बाद विज़ा के लिए जाना पड़ेगा। बिरजू बोला वो तो आपके पास सब होगा ही आप सरकारी कर्मचारी जो ठहरे। भोसलेजी कुछ बोले उसके पहले ही बिरजू बोला फिर मिलते है आल बेस्ट और भाग गया। भोसले जी बोले अरे आल बेस्ट नहीं, ऑल धी बेस्ट होता है।
भाग ४
रात में खाना खाने के बाद बिरजू थोड़ा चिंतित था, वह सोच रहा था की एक सरकारी कर्मचारी को विदेश जाने के लिए इतने सारे कागजपत्र चाहिए तो में तो कभी ऑस्ट्रेलिया जा ही नहीं पाऊंगा। मेरे पास तो मेरे जन्म का भी कोई प्रमाणपत्र नहीं है, बाकी कागजपत्र तो बहोत दुर की बात रही। बिरजू को अब थोड़ा गुस्सा आ रहा था जैसे लोटरी का टिकट गुम हो गया हो। उसे नींद नहीं आ रही थी और गुस्सा बढ़ते जा रहा था। ऐसे में एक डॉक्टर (डॉ. शरद) जोगेश्वरी (जो गोरेगाव के बाज़ू का स्थानक है) के पास एक अकस्मात के कारण ट्रैफिक जाम से निकल कर आ रहे थे। डॉक्टर साहब गुस्से में थे उन्हें पहले ही देरी हो गई थी उसमे इस अकस्मात ने और देरी करवा दी जहाँ १५ मिनट का समय लगना चाहिए वहां १ घंटा चला गया। जैसे ही गाड़ी गोरेगाव के पूल के पास आयी जहाँ बिरजू रहता था उन्होंने देखा की रात के १२ बजे भी लोग सिगनल के नियम का पालन कर रहे है यह देखकर उन्होंने अपना हाथ मानो जैसे हॉर्न पर चिपका दिया हो। हॉर्न की आवाज़ सुनकर बिरजू के अंदर जैसे अल्बर्ट की आत्मा आ गई (वैसे तो बिरजू के अंदर अल्बर्ट की ही आत्मा थी) और वह तुरंत पूल के बाहर आया उसने डॉक्टर साहब की गाड़ी के शीशे पर अपना हाथ ठोका और गाड़ी के टायर के और इशारा किया। डॉक्टर शरद तुरंत शीशा नीचे कर पूछने ही वाले थे की टायर पंक्चर हुआ क्या? डॉक्टर कुछ बोले उसके पहले तो बिरजू ने अंग्रेजी(ऑस्ट्रेलिया असेंट) में भाषण और गाली दोनों डॉक्टर शरद को सुना दिए।बिरजू ने डॉक्टर को अच्छे से समझा दिया या सुना दिया कहिए की यहाँ लोग १२ घंटे काम करके सो रहे है सुबह फिर इनको अपने काम पर जाना है और तुम यहाँ अपना हाथ हॉर्न पर चिपका कर घटिया सा संगीत बजा रहे हो। एक ४-५ साल का बच्चा जो फटे पुराने कपड़ो में एक फूटपाथ पर रहकर अंग्रेजी में बात कर रहा है यह देखकर तो डॉक्टर के होश उड़ गए। डॉकटर तुरंत अपनी गाड़ी में बैठ कर चले गए। डॉक्टर काफी थके हुए थे पर उन्हें नींद नहीं आ रही थी उनके दिल और दिमाग दोनों पर बिरजू की अंग्रेजी ही छायी हुई थी।
उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था की उनके साथ क्या हुआ।सुबह होते ही डॉक्टर शरद तैयार होकर अपने दवाखाना जाने ही वाले थे की उन्होंने सोचा पूल के पास उस बच्चे से मिलकर फिर दवाखाना जाता हूँ। दूसरी और बिरजू भी गाड़ी के हॉर्न सुनकर सोच में पड़ गया की उसने रात में जो भाषण दिया उसकी कोई सजा तो नहीं मिलेगी ना? बिरजू को शक था की वो गाड़ी वाला फिर आएगा क्योंकि कुछ ज्यादा ही भाषण हो गया था रात में। बिरजू तैयार होकर पूल से दूर एक गराज के पास बैठा था। डॉक्टर अपनी गाड़ी खड़ी कर बिरजू को ढूढ़ने लगे। किसी ने डॉक्टर से पूछा क्या चाहिए साहब? डॉक्टर बोले में एक बच्चे को ढूंढ रहा हूँ। बिरजू की माँ बोली कोनसे बच्चे को ढूंढ रहे है? डॉक्टर बोले एक बच्चा जो अंग्रेजी भाषा जानता है। यह सुनकर सभी लोग हस पड़े। बिरजू के पिताजी बोले अरे साहब यहाँ कोई ढंग से हिंदी नहीं बोल पाता और आप अंग्रेजी की बात कर रहे हो।
डॉक्टर बोले जी नहीं कल रात में एक बच्चा इसी फुटपाथ पर मुझ से अंग्रेजी में बात कर रहा था। बिरजू के पिताजी बोले शायद आगेवाला पूल होगा साहब यहाँ तो ऐसा कोई बच्चा नहीं है जो अंग्रेजी जानता हो। बिरजू यह सब दूर बैठ कर देख रहा था। डॉक्टर अपनी गाड़ी लेकर चले गए। बिरजू जानता था की यह इंसान फिर आएगा, आखिर कब तक छुपते फिरुँगा शाम को आए तो बात कर लूँगा। शाम को फिर डॉक्टर साहब गाड़ी दूर खड़ी करके पूल पर नजर रखे बैठे थे। बिरजू को देखते ही वो पूल की और दौड़ पड़े। बिरजू को आवाज़ दी यह लड़के रुक बिरजू चलता हुआ सिगनल के पत्थर पर जाकर बैठ गया।डॉक्टर बिरजू के पास जाकर उसे गौर से देखते रहे, बिरजू बोला ऐसे क्या देख रहे हो?। क्या तुम वही हो जिसने कल रात में मुझे प्रवचन दिया था? बिरजू बोला जी नहीं में कोई प्रवचन नहीं देता। डॉक्टर बोले मेरा कहने का मतलब हे तुम मुझे कल रात इस पूल के नीचे मिले थे या नहीं? बिरजू बोला जी नहीं। डॉक्टर बोले तुम झूठ बोल रहे हो में तुम्हे कभी नहीं भूल सकता। बिरजू कुछ बोल नहीं रहा था और डॉकटर थोड़ा जल्दी में भी थे तो सोचा फिर कभी बात कर लूँगा और अपनी गाड़ी की और चले गए।
गाड़ी घुमाकर निकल ही रहे थे की बिरजू की नजर उनके गाड़ी पर लगे हुए प्लस चिन्ह पर गई (जो अक्सर डॉक्टर की गाड़ी पर होता है)। बिरजू ने हाथ दिखाया डॉक्टर ने गाड़ी रोक दी बिरजू ने पास जाकर उनसे कहा कल दोपहर में आइए तब बात करते है। डॉक्टर ठीक है बोलकर चले गए।बिरजू सोच रहा था यह गाड़ी वाला है तो डॉक्टर पर क्या यह मेरी लोटरी की टिकट को कॅश में बदल पाएगा? कहीं यह मुझसे अपने अपमान का बदला तो लेना नहीं चाहता? बिरजू ने सोचा एक काम करता हूँ पहले दोस्ती कर लेता हूँ अगर इंसान सही लगा तो आगे की बात करुंगा। दूसरे दिन दोनों मिले डॉक्टर को पासवाले आरे गार्डन में ले जाने को कहा, दोनों गाड़ी में बैठकर गार्डन में पहुंचे। पास में एक होटल था बिरजू ने कहा कुछ खाने के लिए आर्डर होगा क्या? इसलिए बोल रहा हूँ की यहाँ बिना आर्डर के ज्यादा देर बैठने नहीं देते। पैसा में आपको बाद में दे दूँगा अभी थोड़ी उधारी दे दीजिए। डॉक्टर ने खाने का आर्डर दे दिया। जैसे ही वो फिर से अपने टेबल पर आकर बैठे पहला सवाल पूछा अंग्रेजी कहाँ से सीखी? बिरजू बोला जी में कुछ समझा नहीं। डॉक्टर बोले देखो ज्यादा भोले बनने की कोशिश मत करो। बिरजू बोला साहब वो थोड़ा बहोत एक अंग्रेज़, जो आरे गार्डन में रोज दौड़ने आता था उसने सिखाई है। इतनी अच्छी तरह कैसे बोल लेते हो? जैसे की कोई ऑस्ट्रेलियाई बोल रहा हो। बिरजू बोला कहाँ साहब थोड़ा बहोत तो आता है। डॉक्टर ने सोचा एक मुलाकात में सब कुछ जानना मुमकिन नहीं है दोस्ती जारी रखूँगा तो धीरे धीरे सब पता चलेगा। डॉक्टर ने फिर घर परिवार के बारे में पूछा। बिरजू ने भी मौका देखकर कहा क्या आप मेरे माता पिता के लिए कोई काम की व्यवस्था कर सकते हो? डॉक्टर ने कहा कोशिश करता हूँ २ दिन बाद आता हूँ तब बात करते है।
भाग ५
दो दिन बाद फिर दोनों मिले डॉक्टर ने माता और पिताजी के लिए नौकरी की व्यवस्था कर दी माँ को उनके पास के अस्पताल के कैंटीन में चाय-कोफ़ी बनाने की नौकरी दिला दी और पिताजी को भी उसी अस्पताल में स्टोर कीपर को मदद करने के लिए नौकरी दिला दी। बिरजू अब खुश था उसे अब डॉक्टर साहब अच्छे इंसान होने का एहसास हो रहा था। डॉक्टर ने फिर एक दिन बिरजू को अपने दवाखाने में बुलाया और बैठने को कहा फिर पूछा क्या लोगे चाय या कोफ़ी? बिरजू मुस्कुराया, बिरजू की मुस्कराहट देख कर डॉक्टर बोले क्या हुआ? बिरजू बोला अरे डॉक्टर साहब आप डॉक्टर होकर इतना भी नहीं जानते की चाय और कोफ़ी दोनों सेहत के लिए हानिकारक है? डॉक्टर कुछ नहीं बोले और अपने टिफ़िन से सैंडविच खाने को दिया, सैंडविच खाते खाते फिर बिरजू बोला वैसे तो ब्रेड और पाऊ भी सेहत के लिए अच्छे नहीं पर कभी कभी चलता है। डॉक्टर बोले क्या तुम पिछले जन्म में डॉक्टर थे क्या जो इतना ज्ञान बाट रहे हो। बिरजू भी हाँ बोल कर सैंडविच खाता रहा।
डॉक्टर ने फिर पूछा तुमने बताया नहीं की तुमने अंग्रेजी कहा से सीखी। बिरजू बोला उस दिन तो बताया था ना एक अंग्रेज़ ने सिखाई हे। डॉक्टर बोले देखो तुम मुझे जितना बेवकूफ़ समझते हो उतना बेवकूफ़ में हूँ नहीं, तो मेहरबानी करके सच बताओ और अब तो हम अच्छे दोस्त बन गए है। बिरजू ने भी सोचा आखिर कब तक सब छुपाऊंगा और कोई मेरी ऑस्ट्रेलिया जाने में मदद कर सकता हे तो वो यह डॉक्टर ही है। बिरजू ने डॉक्टर से पूछा क्या आप पुनर्जन्म में विश्वास रखते हो? डॉक्टर बोले जी नहीं में एक डॉक्टर हूँ और ऐसी बातो पर बिलकुल विश्वास नहीं करता। बिरजू मन ही मन में बोला पिछले जन्म मे में भी ऐसे ही बोलता था। फिर बिरजू ने पूछा क्या आप डॉक्टर अल्बर्ट को जानते हो? डॉक्टर बोलें कोन डॉक्टर अल्बर्ट? डॉक्टर अल्बर्ट जो ऑस्ट्रेलिया में रहते थे। डॉक्टर शरद ने कहा तुम घुमा फिरा कर बात करोगे तो कुछ समझ में नहीं आएगा।
बिरजू ने कहा में पिछले जन्म में सिडनी, ऑस्ट्रेलिया का एक डॉक्टर था। एक अकस्मात में मेरी जान चली गयी और फिर ६ महीने बाद मेरा दूसरा जन्म हिंदुस्तान में हुआ। मेरा एक खुद का केयर एंड केयर नाम का अस्पताल है। में करोड़पति से सीधा रोडपति बन गया हूँ। जब बिरजू सब यह बता रहा था डॉक्टर ने अपने लैपटॉप में सारी जानकारी इंटरनेट पर ढूंढ ली थी। डॉक्टर शरद ने बिरजू से कहा अगर तुम सच में डॉक्टर अल्बर्ट हो तो में तुम्हें कुछ सवाल पूछता हूँ उसका जवाब दो। डॉक्टर ने ४-५ अस्पताल की तस्वीर दिखाई और पूछा इनमे से तुम्हारे अस्पताल की तस्वीर कोनसी है? बिरजू ने मुस्कुराते हुए कहा इनमे से कोई भी नहीं, शायद आप मेरी बातो पर विश्वास नहीं कर रहे है इसीलिए मेरी परीक्षा ले रहे है। डॉक्टर ने कहा ठीक समझे तुम, और तुम्हें पास होना पड़ेगा। फिर डॉक्टर ने अस्पताल के सभी सदस्यों की तस्वीर दिखाई और पूछा इनमे से डॉक्टर अल्बर्ट की तस्वीर कोनसी है? बिरजू ने लैपटॉप में देखा और उसकी आँखों से आंसू निकल आए। डॉक्टर बोले अरे तुम रो क्यों रहे हो? बिरजू बोला इनमे से कुछ कमीने मेरे दोस्त है जिनको देख कर आंसू निकल आए और रही मेरी तस्वीर की बात तो जो पहली तस्वीर हे वो ही मेरी है या कहो की डॉक्टर अल्बर्ट की है। डॉक्टर शरद को अब यकीन हो गया था की बिरजू सब सच बोल रहा है। बिरजू बोला अब आप ही हो जो मुझे रोडपति से करोड़पति बना सकते हो। डॉक्टर शरद ने कहा देखो में कोई वादा नहीं कर सकता पर में अपने तरफ से पूरी कोशिश करुंगा।
भारतीय संस्कृति: डॉ. शरद ने फिर बिरजू से पूछा तो कैसा लगा हिंदुस्तान? बिरजू बोला क्या बताऊ अब, हिन्दुस्तान की तो जितनी तारीफ करो उतनी कम है। यह में इसलिए नहीं बोल रहा की में अब हिंदुस्तान में पैदा हुआ हूँ। मुझे यहाँ जन्म लेकर पता चला की माँ क्या होती है, माँ की ममता क्या होती है। मेरा यह कहने का मतलब नहीं की बाकी देशो में माँ अपना फ़र्ज़ पूरा नहीं करती। अगर माँ के पास कोई चीज है और बच्चा जिद कर रहा हो तो माँ उसे दे देगी पर जब कोई बच्चा वह चीज़ मांग रहा है जो उसके बस में नहीं फिर भी उसे दिलाने की जो कोशिश माँ करती है वो एक हिन्दुस्तानी माँ ही कर सकती है।
हर मोड़ पर चाहे अच्छे हो या बुरे, माँ हमेशा अच्छी सलाह देती है, कैसी भी विकट परिस्तिथी हो माँ हमेशा भरोसा दिलाती है की सब कुछ ठीक हो जाएगा। विदेश में ज्यादातर बच्चे कुछ ही उम्र में आज़ाद हो जाते है और अपने फैसले खुद लेने की आज़ादी भी है तो माता-पिता भी उनके काम में दखल अंदाज़ नहीं करते है और फिर बच्चे मुँह के बल गिरते है तब उन्हें माता पिता की याद आती है।
मुझे यहाँ जन्म लेकर यह पता चला की त्यौहार क्या होता है। जब में देखता हूँ त्यौहार की तैयारी लोग १ महीने पहले से ही शुरू कर देते है, कितनी ख़ुशी का माहौल होता है। नए कपड़े, नए खिलोने और फिर सभी जगह घूमना, दोस्तों और अपने रिश्तेदारों से मिलना, सब कुछ देखकर ही कितना अच्छा लगता है। साल में इतने सारे त्यौहार आते है की हर कदम पर ख़ुशियाँ मनाने का मौका तैयार ही है समझो। कितनी सारी भाषा है यहाँ, लेकिन किसी का भी कोई काम रुकता नहीं सभी लोग ३-४ भाषा तो जानते ही है बोल नहीं पाते तो समझ तो जाते ही है की सामने वाला क्या बोलना चाहता है। इसके अलावा मुझे यह भी पता चला की पानी कितनी कीमती चीज़ है। इसका सही इस्तेमाल करना कितना ज़रुरी है। सिर्फ पानी नहीं बिजली, पेट्रोल और डीज़ल सभी की कीमत आप तभी जान सकते हो जब इसकी कमी हो या आपके पास ना हो। यहाँ लोग सभी मौसम का इंतज़ार करते है। गर्मी में कब बारिश होगी, ठंडी में कब गर्मी शुरु होगी और बारिश में फिर गर्मी का इंतज़ार। डॉ. शरद बोले बस बस में समझ गया नहीं तो तुम यहाँ की संस्कृति पर निबंध ही लिख दोगे।
कहानी फिर से आगे बढ़ते हुए: भाग ६
डॉक्टर शरद अब चिंता में थे की यह सब कैसे हो सकता है? डॉक्टर शरद कुछ दिन तो सोचते रहे की कैसे काम करे? क्या काम करे? जिससे बिरजू को फिर से ऑस्ट्रेलिया भेजा जा सके। डॉक्टर शरद जो और एक डॉक्टर(डॉ. पदमा) को जानते थे जो सरकारी चिकित्सा के कई समिति के सदस्य भी रह चुकी थी। डॉक्टर शरद ने उनसे मुलाकात करके सारी बातें बताई और फिर बिरजू की मुलाकात डॉ. पदमा से कराई।
डॉ. शरद जानते थे बिरजू से मिलने के बाद डॉ. पदमा उनकी ज़रुर कोई न कोई मदद करेगी। डॉ. पदमा बिरजू से मिलने के बाद बिरजू से प्रभावित तो हुई पर डॉ. शरद से कहा तुम यह सारी बाते किसी को भी बताओगे तो कोई भी यकीन नहीं करेगा, सरकार तो बिलकुल भी नहीं। में जानती हूँ परिस्थिति गंभीर है, बिरजू को बहोत सारी उम्मीदे है और ऐसे हालात मे उसे कहीं से कोई मदद नहीं मिली तो वो शारीरिक और मानसिक दोनों तरफ से टूट जाएगा। डॉ. पदमा ने कहा तुम मुझे थोड़ा समय दो तब तक तुम उसे किसी अच्छे जगह रहने की व्यवस्था करो। रहने की व्यवस्था होगी तब जाकर उसके सारे कागजपत्र बनेंगे। तुम प्रयत्न करो और देखो की उसके कागजपत्र बन जाए सिर्फ बिरजू के नहीं पहले तुम्हें उनके माता पिता के कागजपत्र बनवाने पड़ेंगे। डॉ. शरद बोले ठीक है मेडम में अपने तरफ से पूरी कोशिश करता हूँ। डॉ. शरद ने बिरजू को बुलाया और कहा देखो तुम्हारे काम की शुरुवात हो चुकी है पर इसमें कितना समय लगेगा यह कोई नहीं बता सकता क्योंकि तुम्हारे पास कोई कागजपत्र नहीं है, तो सारे कागजपत्र तैयार करने में काफी समय लग जाएगा, ६ महीने भी और ६ साल भी। बिरजू बोला पूरी जिंदगी फुटपाथ पर बितानी पड़े उससे तो ६ साल का इंतजार अच्छा। डॉ. शरद बोले और हाँ अब तुम उस फुटपाथ पर नहीं रहोगे। मेरा एक मित्र है जो तुम्हारे रहने की व्यवस्था कर देगा। बिरजू बोला वो सब तो ठीक है पर घर का किराया में कहाँ से दूँगा? डॉ. शरद बोले जब करोड़पति बन जाओगे तब मुझे दे देना हिसाब में लिख दूँगा। बिरजू मन में बोला पता नहीं क्यों मुझे हिंदुस्तानी से इतनी नफरत थी।
कुछ दिन बाद डॉ. पदमा का फ़ोन आया उन्होंने डॉ. शरद को मिलने बुलाया। डॉ. शरद से उन्होंने कहा देखो मेने अपने तरफ से सरकार से भी बात की और कुछ अधिकारी से भी बात की पर कोई भी बिरजू की मदद को तैयार नहीं। अब एक ही रास्ता है बिरजू को तुम और में अपने खर्चे से ऑस्ट्रेलिया घुमा कर लाए। डॉ. शरद बोले घुमा कर लाए मतलब? डॉ. पदमा बोले हाँ घुमाकर ही लाना पड़ेगा जब हमारे हिंदुस्तान में कोई बिरजू की बात पर विश्वास नहीं कर रहा तो ऑस्ट्रेलिया वाले तो हमें दूर से ही भगा देंगे। डॉ. शरद बोले आप ठीक कह रही है पर बिरजू को सब पता चलेगा तो वह दुखी हो जाएगा, क्यों न हम एक कोशिश करे और केयर एंड केयर अस्पताल को एक ईमेल लिखे जिसमे सारी बाते बताये और उनसे हम निवेदन भी करेंगे की एक इंसानियत के नाते बिरजू को अस्पताल की मुलाकात की मंजूरी दे। डॉ. पदमा ने कहा जी हाँ यह कर सकते हे, पर हम अगर सीधे उनको लिखेंगे तो वो शायद मना कर देंगे। में देखती हूँ अगर कोई पहचान निकल आती है तो काम थोड़ा आसान होगा।डॉ. पदमा भी अब दिन रात बिरजू के ऑस्ट्रेलिया प्रवास के बारे में ही सोचती रहती थी। आखिर उन्हें एक रिश्तेदार मिल ही गए जिनका बेटा (चेतन) सिडनी में दवाई की दूकान चलाता था। उन्होंने थोड़ी भी देरी किए बिना चेतन से बात की और उसे कहा की पता करो वहां के किसी डॉक्टर से पहचान निकल आए तो बताना। चेतन अस्पताल के कुछ डॉक्टर को जानता था पर उसने फिर भी कहा में देखता हूँ क्योंकि उसको भी समझ में नहीं आ रहा था की अस्पताल के डॉक्टर से कैसे बात करे। पर यहाँ दो बाते थी जिसने चेतन को थोड़ी हिम्मत दी, एक तो किसी छोटे बच्चे के सपने पूरे होने की और दूसरी की वह बच्चा एक हिंदुस्तानी है। उसने डॉ. स्मिथ से बात की उसकी बात सुनकर डॉ. स्मिथ तो जैसे कोई चुटकुला सुनाया हो वैसे हस पड़े। चेतन ने फिर समझाने की कोशिश की और कहा एक बच्चा जो आपके अस्पताल में आकर थोड़ा बहोत घूम फिर के चला जाएगा इससे अस्पताल या किसी और को भी क्या नुक्सान होगा?
चेतन ने फिर उनसे उनकी बेटी के नाम पर तीर चलाया और कहा अगर आपकी बेटी को किसी कारण दूसरे देश में जाना हो और वहां के लोग ऐसे ही मदद नहीं करे तो आप और आपकी बेटी को कितना बुरा लगता। हिंदुस्तानी की एक ख़ासियत यह भी हे की सामनेवाले की दुखती नस कब और कैसे दबानी है यह
अच्छी तरह से जानते है। बेटी के नाम का तीर डॉ. स्मिथ के सीधे दिल पर जाकर लगा और उन्होंने चेतन से कहा कोशिश करता हूँ और तुम्हें बताता हूँ।
दूसरे ही दिन डॉ. स्मिथ ने अस्पताल के सभी सदस्यों की बैठक बुलाई। बैठक में डॉ. स्मिथ ने सारी बाते बताई कुछ लोग डॉ. स्मिथ पर बहोत गुस्सा हो गए और बोले तुमने हमें यहाँ फ़िल्मी कहानी सुनाने के लिए बुलाया है? तुम एक डॉ. होकर ऐसी सब बातों पर विश्वास करते हो? पर कुछ डॉक्टर थे जिन्होंने सुझाव भी दिया और कहा एक बच्चे से मिलने में हमें कोई नुक्सान नहीं और अगर आपको लगता है की इस मुलाकात से अस्पताल को कोई नुक्सान होगा तो हम उस बच्चे से कहीं और मिलेंगे। अगर वह बच्चा सच में अल्बर्ट है तो उसे अस्पताल से ज्यादा हमसे मिलने की ख़ुशी होगी और फिर हम उसे प्यार से समझा देंगे की अस्पताल अब सरकार की निगरानी में है वहां उनकी परवानगी के बिना कुछ नहीं होता है।
यह सुझाव सबको पसंद आया सबने डॉ. स्मिथ को कहा हो सके उतना जल्दी यह सब काम ख़तम करो और यह सब अनौपचारिक होगा हम सभी एक सामान्य नागरिक के तौर पर उस बच्चे से मिलेंगे, कोई भी किसी भी प्रकार का लेन-देन नहीं होगा। कहीं प्रसार माध्यम को पता चल गया तो हंगामा खड़ा कर देंगे और फिर अस्पताल और हम बड़ी मुसीबत में फस जाएंगे। यह मुलाकात ऐसे रखो जैसे अचानक से वह बच्चा हमे मिला और हमने उसका मन रखने के लिए थोड़ी बाते कर ली। डॉ. स्मिथ ने कहा सब कुछ तय हो जाए तो यह मुलाकात मेरे घर करेंगे, ताकि अगर कुछ दिक्कत हो तो आराम से बैठकर सोचा जा सकता है। सभी ने मंजूरी दे दी और आखिर यह बात डॉ. शरद तक पहुंची। डॉ. शरद और डॉ. पदमा ने डॉ. स्मिथ से फ़ोन पर बात की और कहा की थोड़े कागजपत्र बनाने में समय लग सकता है जैसे ही सब कुछ तैयार हो जाएगा हम आप को फ़ोन पर बता देंगे।
डॉ. शरद और डॉ.पदमा ने सभी कागजपत्र तैयार कर लिए और सबसे पहले बिरजू के माता पिता को सब बात बताई। बिरजू की माँ ने साफ़ साफ़ मना कर दिया मेरा बिरजू कहीं नहीं जाएगा। डॉ. शरद ने समझाया उनको जैसे आप इन सब बात पर विश्वास नहीं कर रही है वैसे ही वहां भी बिरजू की बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा और हमें वापस भेज देंगे। अगर बिरजू ऑस्ट्रेलिया नहीं जा पाया तो बहोत उदास हो जाएगा इस वक्त वह ज़िन्दा है तो सिर्फ एक ही उम्मीद पर की वह ऑस्ट्रेलिया जाकर सब कुछ पहले जैसा कर देगा। ऐसी हालत में आप ही उसे रोकेंगे तो कैसे काम चलेगा। हम सब कुछ इसलिए कर रहे हे की उसकी अपने पहले वतन जाने की इच्छा अधूरी न रह जाए। माँ का मन तो नहीं मान रहा था पर बिरजू के ख़ातिर मान गई।
बिरजू के पिता ने डॉ. शरद से पूछा साहब आप सब कुछ मेरे बेटे के लिए क्यों कर रहे हो? हमारा और आपका रिश्ता ही क्या है? और ऊपर से हम यह सारा खर्च हुआ पैसा आपको लौटा भी नहीं पाएंगे फिर भी आप इतना कुछ कर रहे हे आखिर क्यों? डॉ. शरद बोले अरे तुम जानते नहीं तुम्हारा बेटा कौन है, वह बड़ा होकर सिर्फ आपका या अपने राज्य का नहीं पूरे देश का नाम रोशन करेगा। उसका दिमाग कंप्यूटर से भी ज्यादा तेज है पर इस वक्त थोड़ी परेशानी में है इसलिए वरना अब तक तो उसका नाम अखबारों में छप चुका होता। यह सब बात छोड़िए आपको बिरजू कब और कहाँ जा रहा है किसीको भी बताना नहीं है सिर्फ २-३ दिनों में हम वापस लौट आएँगे।
बिरजू की माँ ने पूछा आप जा कब रहे हो? डॉ. शरद बोले थोड़ा समय लगेगा शायद १-२ महीना। धीरे धीरे बिरजू की गाड़ी हाईवे से रन-वे पर आ रही थी। डॉ. शरद ने बिरजू को नए कपडे, जूते और तो और एक मोबाइल भी खरीदकर दिया। ऑस्ट्रेलिया ३ लोग जा रहे थे डॉ. शरद, डॉ. पदमा और बिरजू। आखिर वह दिन आ ही गया था, बिरजू के इंतजार की घड़ी ख़तम हो रही थी और वह अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर पहुँच गया।
भाग ७
विमान ने उड़ान भरी और २०-२२ घंटो में सिडनी पहुंचने वाले थे। डॉ. शरद ने बिरजू से पूछा कहीं विमान में डर तो नहीं लग रहा ना? बिरजू बोला जी नहीं जब पहली बार बैठा था तब थोड़ा डर लगा था अब तो आदत सी हो गयी है। डॉ. पदमा ने कहा आप इस वक्त बिरजू से नहीं डॉ अल्बर्ट से बात कर रहे है तो सोच समझकर पूछना जो भी पूछना हो। बिरजू खिड़की के बहार देखते हुए मुस्कुराया। विमान सिडनी सुबह ८ बजे पहुंच गया जब हवाईअड्डे से बहार निकले तो बिरजू चलते चलते रुक गया डॉ. शरद ने पूछा चलो रुक क्यों गए? बिरजू आसमान की और देखकर बोला यही नीली चादर हिंदुस्तान में भी है, यही तकिये भी हिंदुस्तान में है, डॉ. शरद बोले तकिये? बिरजू बोला हाँ यह बादल, हम तो इसी नीली चादर और तकिये को ओढ़कर सोते थे। डॉ. ने कहा कहना क्या चाहते हो? बिरजू बोला धरती और आसमान सभी जगह एक समान हे बस फर्क है तो इंसान की सोच का। डॉ. शरद बोले, डॉ अल्बर्ट आप प्रवचन बंध करके कृपया आगे बढ़ेंगे।चेतन को भी बिरजू से मिलने की इच्छा थी इसलिए वह खुद ही उसको लेने पहुँच गया था। चेतन बिरजू के बारे में जानकर और पुनर्जन्म के बारे में सुनकर वह बिरजू से मिलने के लिए बेचैन था। उसने सभी के रहने की सुविधा अपने घर ही कर रखी थी ताकि पूरी कहानी वह शुरु से सुन सके। चेतन ने कहा आप मेरे घर पहुँच कर चाय नास्ता करके थोड़ा आराम कर लेना फिर हम दोपहर को खाना खाकर डॉ. स्मिथ से मिलने जाएंगे फिर वह हमें बाकी डॉक्टरों से मुलाकात करवाएंगे। बिरजू कहाँ आराम करनेवाला था वह तो चाय नास्ता करके बाहर टहलने लगा अपनी यादे ताजा कर रहा था। चेतन दोपहर होते ही डॉ. स्मिथ से मुलाकात के लिए सभी को ले गया। डॉ. स्मिथ ने सभी को एक कमरे में बैठने को कहा। बिरजू डॉ. स्मिथ को नहीं जानता था। सभी समिति के सदस्य एक कमरे में बैठे थे। बिरजू ने सोचा था की जैसे ही वह रुम में प्रवेश करेगा सभी लोग उसका तालियों के साथ स्वागत करेंगे, पर ऐसा कुछ हुआ नहीं, जैसे ही सभी लोग कमरे में दाखिल हुए सभी को बैठने के लिए कहा गया। सभी लोगो ने अपना अपना परिचय दिया। बिरजू की नजर पीटर को ढूंढ रही थी।
डॉ. पीटर जो बिरजू का खास दोस्त था। पीटर को देखते ही बिरजू के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आयी। पीटर भी उसे देख मुस्कुराया, बिरजू अपनी खुर्सी से उतरकर पीटर को गले लगाकर फिर आकर बैठ गया।
सभी लोगो ने बिरजू से बहोत सारे सवाल पूछे सभी का बिरजू ने सही जवाब दिया। अंत में समिति के अध्यक्ष ने सभी से बाहर जाने को कहा सिवाय बिरजू के। सभी के बाहर जाते ही अध्यक्ष ने बिरजू से कहा देखो तुम यहाँ जिस काम से या जिस इरादे से आए हो उसमे तुम्हें कामयाबी नहीं मिलेगी। अस्पताल अब सरकार के निगरानी में है हमारे हाथ में कुछ नहीं है। कुछ ही दिनों में शायद सरकार इसे अपने कब्ज़े में ले लेगी। में तुम्हें साफ़ साफ़ बता देना चाहता हूँ हम यहाँ सिर्फ डॉ. अल्बर्ट के ख़ातिर आए हुए है, उनके हम सब पर बहोत सारे एहसान है। पर इसका मतलब यह नहीं की कोई भी आकर कहे की में डॉ. अल्बर्ट हूँ तो हम उसे सच मानकर उसे अस्पताल का मालिक बना देंगे। अगर तुम सिडनी घूमना चाहते हो तो हम एक गाड़ी की व्यवस्था कर देंगे शाम तक तुम्हें सभी प्रख्यात जगह पर घूमा कर तुम्हारे घर छोड़ देगी।
बिरजू चुपचाप सब कुछ सुनता रहा। अंत में बिरजू ने शुक्रिया किया और बोला आपने मेरे लिए जो किया वह बहोत है, अब हमें यहाँ से जाने की परवानगी दे। सभी लोग दूसरे कमरे से बहार आते तब तक तो बिरजू गाड़ी में जाकर बैठ गया था। सभी डॉ. समझ गए थे की अध्यक्ष जी ने साफ़ साफ़ मना कर दिया होगा। बिरजू को बहोत गुस्सा आ रहा था मन में सोच रहा था यह लोटरी की टिकट एक ही बार में जल क्यों नहीं जाती बार बार झूठे सपने दिखा कर फिर ज़मीन पर पटक क्यों देती है। डॉ. पदमा और डॉ. शरद तुरंत गाड़ी के पास गए और बिरजू से पूछा तुम ठीक हो ना? बिरजू बोला हाँ ठीक हूँ। बिरजू बोला चेतन भैया गाड़ी निकालो अब हमें यहाँ से चलना चाहिए। बिरजू काफी गुस्से में था, सभी ने सोचा घर जाकर बात करते है।
भाग ८
बिरजू घर जाकर घर के आँगन में ही थोड़ी देर बैठा रहा। बिरजू ने थोड़ी देर बाद टेलीफोन डिरेक्टरी मंगवाई। उसने सोचा उसके जो खास मरीज़ थे उनसे बात करता हूँ। कुछ नंबर मिले कुछ नहीं मिले। कुछ लोगो ने बिरजू से बहोत अच्छी तरह से बात की पर इलाज़ पर दी गई सलाह को अन-देखा कर दिया। कुछ लोग बिरजू को मिलने पहुँच गए आकर देखा की एक छोटा बच्चा है तो हाय, हेलो करके चले गए। कुछ देर बाद पीटर वहां आए। बिरजू ने पीटर से मिलने से इनकार कर दिया। पीटर फिर भी बाहर के कमरे में बैठे रहे, बिरजू जब बाहर आया तो पीटर से पूछा तुम अभी तक गए नहीं? पीटर बोले में तो जाने वाला था पर इन्होंने कहा आए हो तो खाना खाकर जाना और तुम तो जानते हो पीटर मुफ्त की चीजें कभी छोड़ता नहीं है। जानते हो ना पीटर की आदते की भूल गए?बिरजू फिर अपने कमरे में चला गया और फिर ५ मिनट बाद आवाज़ दी पीटर खाना बनने में समय है अंदर आ जाओ। डॉ. शरद और डॉ. पदमा जानते थे की अभी सिर्फ पीटर ही है जो इसका गुस्सा शांत कर सकते है और अस्पताल की पूरी सच्चाई बता सकते है। पीटर के कमरे में जाते ही बिरजू चिल्लाया तुम तो मुझे पहचान सकते हो ना? तो फिर तुमने उन सबको मेरे बारे में कुछ बताया क्यों नहीं मेरी मदद क्यों नहीं की। पीटर बोले देखो अल्बर्ट अब बात पहले जैसी रही नहीं। में अब एक निवृत्त डॉक्टर हूँ उस अस्पताल से मेरा कोई लेना देना नहीं। में सिर्फ तुमसे मिलना चाहता था इसलिए डॉ. स्मिथ को बिनती की और उन्होंने मुझे वहां बैठने की परवानगी दी। हकीक़त तो यह है की तुम्हारे मरने के बाद, मेरा कहने का मतलब डॉ.अल्बर्ट के मौत के बाद कुछ ही दिनों में आपसी झगड़ा होने लगे। सिर्फ अंदर से ही नहीं बाहर से लोग आकर भी झगड़ते थे। सभी की नजर तुम्हारे मिलकत पर थी। वाद-विवाद दिन भर दिन बढ़ते ही जा रहा था इसलिए आखिर सरकार बिच में आ गयी और सरकार ने सभी को कहा जो भी दावा करना हो लिखित में करे और सरकार इसका फैसला लेगी की किस चीज का कौन कितना हक़दार है। तब जाकर थोड़ा मामला शांत हुआ क्योंकि लोग जानते थे जो ज्यादा दावा करेगा उसी पर डॉ.अल्बर्ट के क़त्ल का इलज़ाम भी लग सकता है।
शायद सरकार अगले साल यह अस्पताल अपने कब्जे में ले लेगी और तुम्हारी बाकी संपत्ति भी सरकार के पास चली जाएगी। किसी भी चीज का खरीदी और बिक्री का रिकॉर्ड नहीं मिल रहा है ऐसी मुसीबत में डॉ.अल्बर्ट आकर बोलेंगे की में जिंदा हूँ तो कौन विश्वास करेगा। और तुम तो बहोत बहोत अच्छी तरह से जानते हो कुछ ऑस्ट्रेलियन को हिन्दुस्तानी से नफरत भी है। जानते हो ना? अरे पीटर तुम भी कहाँ पुरानी बाते लेकर बैठे गए। पीटर बोले डॉ. साहब आप भूल रहे है यहाँ जो भी पंचायत हो रही है वो पुरानी बातों को लेकर ही हो रही है।
बिरजू का गुस्सा अब शांत हो चुका था बिरजू ने सभी को कमरे में बुला लिया सभी का फिर से परिचय करवाया। डॉ. शरद ने कहा पीटर जी एक बात पुछु? बुरा तो नहीं मानोगे? अल्बर्ट के दोस्त को किसी भी बात का बुरा नहीं लगता क्योंकि अल्बर्ट दिन में ४ बार तो अपमान कर ही देता था तो आदत पड़ गयी है। डॉ. शरद ने कहा की हम भी जानते तो थे की यहाँ हमारी बातो पर कोई विश्वास नहीं करेगा और वैसा ही हुआ पर आप सिर्फ हमारी बातों पर विश्वास नहीं कर रहे है, साथ ही साथ हम हिन्दुस्तानी टोली के साथ समय बिताना, खाना पीना सब कुछ, क्या आप पुनर्जन्म में विश्वास रखते है? इतने बड़े सवाल का जवाब पीटर ने हसी मज़ाक में दे दिया उसने कहा जब मुझे पता चला की अल्बर्ट हिंदुस्तान में पैदा हुआ तो हस हस कर मेरे पेट में दर्द होने लगा था और उसका कारण आपको पता है? बिरजू बोला बस अब आगे कुछ मत बताओ पीटर बोले नहीं यह बात तो बतानी ही पड़ेगी। डॉ. शरद बोले कोनसी बात? पीटर बोले यह जो महाशय आपके सामने बैठे है इनको पिछले जन्म में किसी देश और उस देश के सभी नागरिक से बहोत नफरत थी। डॉ. शरद समझ गए और बोले क्या यह सच हे बिरजू की तुम्हें हिंदुस्तान और हिन्दुस्तानी से बहोत ज्यादा नफरत थी?
भाग ९
बिरजू बोला जी हाँ शायद उसी नफरत का आज में खुद शिकार हो गया हूँ। अब पता चल रहा है मेने कितनी बड़ी गलती की थी। पर अब मुझे ऑस्ट्रेलिया और उसके नागरिक(पीटर की और देखकर) से नफरत सी हो रही है पता नहीं क्यों? पीटर बोले हाँ वो तो होगी ही अब तुम हिन्दुस्तानी जो ठहरे तुम्हारी तो आदत है अपने देश को छोड़ कर बाकी सब से नफरत करना। बिरजू बोला मेरी बात छोडो तुम्हारा क्या होगा पीटर? पीटर बोले मेरा क्या? तुम तो ऐसे देश से नफरत कर रहे हो जहाँ कोई भी पैदा नहीं होना चाहता। मेरा तो ठीक है हिंदुस्तान से नफरत की और बच गया, आज हिंदुस्तान में जन्म लेकर मेरी सारी ग़लतफ़हमी दूर भी हो गयी। पर अगर तुम उस देश में जन्म लोगे तो बहोत पछताओगे। पीटर बोले अरे भाई ऐसा कोई नियम नहीं की किसी देश से नफरत करो तो अगले जन्म में वहीँ पैदा हो जाओगे, अगर ऐसा होता तो सभी का वर्ल्ड टूर कितनी आसानी से हो जाता, कभी अमेरिका से नफरत करते, कभी रशिया से, कभी युरोपीन देश से और जिनको गलती का एहसास हो वो हिंदुस्तान से नफरत करके पछतावा भी करता।
पीटर के आने से बहोत अच्छा हुआ बिरजू का गुस्सा भी शांत हो गया और उसे अब अस्पताल से कोई उम्मीद भी नहीं थी। पीटर बोले अगर तुमने मुझे अपना नॉमिनी रखा होता तो आज सारी मिलकत फिर से तुम्हारे नाम कर देता किसी को कोई तकलीफ़ होती ही नहीं। सभी लोग हस पड़े, बिरजू बोला हाँ ठीक है यार जो हुआ सो हुआ। पीटर को सभी ने कहा आज की रात रुक जाओ कल चले जाना पता नहीं जिंदगी में फिर कब मुलाकात होगी। पीटर भी रुक गया और सुबह सभी को हवाईअड्डे पर छोड़ने भी गया। जाते जाते बिरजू पीटर को कान में बोल गया जल्दी से मर कब तक यह बुढ़ापा लेकर घूमेगा और हिंदुस्तान में जन्म ले फिर से दोस्ती की एक यादगार कहानी बनाएंगे।
विमान आने में थोड़ा समय था पर बिरजू फिर से थोड़ा नाराज़ दिख रहा था। डॉ. शरद बोले क्या हुआ? बिरजू बोला पता नहीं पर पीटर को छोड़ कर पूरे ऑस्ट्रेलिया से नफरत सी हो गयी है। डॉ. शरद बोले ऐसा कोई नियम नहीं है की जिस देश से नफरत करो उस देश में जन्म हो पीटर ने कहा ना? तो अब तुम ऑस्ट्रेलिया का विचार कुछ समय के लिए अपने मन से निकाल दो। तुम अब हिंदुस्तान में पढ़ लिखकर एक अच्छे डॉक्टर बनो। बिरजू तुरंत बोला डॉक्टर बनो का क्या मतलब है? में एक डॉक्टर हूँ। डॉ. शरद बोले तुम डॉक्टर हो नहीं तुम डॉक्टर थे। मुझे एक बात बताओ एक इंसान को डॉक्टर बनने में कितने साल लग जाते है? बिरजू बोला करीब ३० साल, डॉ. शरद बोले बराबर और तुम्हारी उम्र क्या है? बिरजू बोला ५ साल, तो अब तुम बताओ एक ५ साल का बच्चा डॉक्टर कैसे कहलायेगा?
डॉ. शरद ने कहा तुम्हें क्रिकेट में बहोत रुची है ना तो एक बात बताओ की एक बल्लेबाज़ ने एक मैच में ९० रन बनाये और जब वह दो दिन बाद दूसरी मैच खेलने किसी और राज्य में जाता है वहां १० रन बनाकर बल्ला ऊपर करके अपने शतक होने की ख़ुशी मनाएगा? बिरजू बोला ऐसा थोड़ी होता है, नयी मैच नया खेल नया स्कोरकार्ड सब कुछ फिर से शुरु होता है। पर तुम भी तो यही कोशिश कर रहे हो दूसरी मैच में १० रन बनाकर पहले वाले मैदान में जाकर शतक की ख़ुशी ढूंढ रहे हो। बिरजू बोला समझ गया आप क्या कहना चाहते हो अब फिर से १ रन से शुरु करके शतक बनाऊंगा। डॉ. शरद बोले शाबाश चलो अब विमान आने का समय हो गया है। विमान में बैठे तब डॉ. शरद फिर बोले तुम विज्ञान के बारे में ज़रुर जानते होंगे अब भारत के इतिहास और भूगोल के बारे में भी जानो, अच्छे से अपनी पढ़ाई पूरी करना तुम्हारे पूरे पढ़ाई का खर्च में करुंगा। जैसे ही विमान हिंदुस्तान आया विमान से नीचे उतरते ही बिरजू ने ज़मीन को हाथ छू कर अपने सर पर घुमाया और फिर धरती को चुम लिया।
बिरजू को सही सलामत देखकर उसकी माँ बहोत खुश हो गयी। जैसे डॉ. शरद ने वादा किया था वैसे बिरजू को एक विद्यालय में दाखिला करवा दिया। अब बिरजू पढ़ाई कर रहा है। देखते है आगे क्या होता है। क्या पीटर भी हिंदुस्तान आ कर बिरजू के साथ पढ़ाई करेंगे?
निष्कर्ष:
कहानी पढ़ कर लगता है ना की नसीब हमें हमारा पिछले जन्म का कुछ याद नहीं वरना पता नहीं कितनी मगजमारी होती एक साथ २-२ जिंदगी जीने में। भगवान भी यह बात जानते है इसीलिए सब कुछ भुला देते है। सोचो अगर कोई बड़ा कलाकार अचानक से आम आदमी बन जाए और उसे अपना पहले का जीवन याद हो तो कितनी मुसीबत हो जाएगी। अपनी ही फिल्मे देखकर उसे गुस्सा आएगा। और उनका क्या हाल होगा जो अपने अपने पड़ोसी देश से नफरत करते है और उनका जन्म पड़ोसी देश में ही हो जाए। यहाँ तक तो भी ठीक रहता पर अगर इंसान दूसरे जन्म में पशु या पक्षी बन जाए तो? अगर किसी का खून हो जाता या किसी ने कोई कारणसर आत्महत्या की होती तो वह अदालत में खुद अपना ग़वाह बन कर गवाही देता। जज साहब की भी परेशानी बढ़ जाती।
इसीलिए कहा जाता है जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा ही हो रहा रहा है और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा।
जय हिन्द