आज हम ईक्कीस वी सदी मे जी रहे है | कई कामियाँबियाँ हमने हासिल की है | तरक्की के नये रास्ते धुंड लिए है | लेकिन आपको ऐसा नहीं लगता हम कुछ खो बेठे है | कहाँ धुंडु मे इंसानियत इस विषय पर लिखणा ही हमारा सबसे बङा दुर्भाग्य है | हाँ हम खो बेठे है हमारे अंदर की ,इंसानियत करुणा, लागणी , प्रेम, ममता एक दूसरे के प्रति लगाव को |
आज हर इंसान को कुछ ना कुछ पाने की आस होती है | सपने पूरे करने का ध्यास होता है | उसमे कुछ गलत बात नहीं है | पर अपने सपनों को पुरा करने के लिए इंसानियत की हद पार कर किसीकी भावना के साथ खिलवाड़ करना ये किसी पाप से कम नही हैं | कामियाँबी हासिल करने के लिए आज इंसान कुछ भी कर सकता है | अगर कुछ मासूमों कि जान भी लेनी पडे तो इंसान वो भी कर सकता है | वो कामियाँबी किस काम की जो लोगों के खुन से रंगी हो | आपको उस कामियाँबी का कोई लाभ नहीं हो सकता जो लोगों की भावना के साथ खेलकर मिली हो | हम हर रोज अखबारों में पढ़ते है , जमीन के लिये भाईने ही अपने सगे भाई का खून कर दिया | अरे! हम क्या कहे यैसे इंसान को, जो इंसानियत पर कालिमा पोथ दे | आजकल अखबारों मे आधे से ज्यादा यैसे ही ख़बरें होती है | जब हम अपने ही रिश्तों मे इंसानियत , प्रेम नहीं देख सकते तो हम दूसरों को कैसे मदत करेंगे | आज विज्ञान ने कई तंत्रो का निर्माण किया है | आज मोबाईल सबकी जरुरत बन गया है, लोग उसका इस्तेमाल किस प्रकार इंसानियत भूलकर करते हैं उसका आँखो देखा उदाहरण | अगर सड़क पर किसीका अपघात हो जाये तो लोग उस इंसान की मदत करने के बजाय मोबाईल मे फोटो और व्हिडिओ बनाने मे व्यस्त हो जाते है और भागते है likes और comments के पिछे | अगर उनके नजरों के सामने उस इंसान की मौत हो जाये तो लोगों को कुछ फरक नहीं पडता | आजकल लोगों को मशीनों से इतना लगाव हो गया है की वो इंसानियत , प्रेम , लागणी, बिक कर खाँ चुका है | आज मशीन कुछ भी कर सकती है लेकिन वो इंसानियत की भावना, प्रेम नहीं दे सकती ये भावना, प्रेम सिर्फ अपने ही दे सकते है | आज देश मे दिन प्रती दीन वृध्दाश्रम और अनाथालय की संख्या बढ़ने लगी है | आज हम युवा पिढ़ी को देश का भविष्य कहते है | लेकिन वृध्दाश्रम और अनाथालय की संख्या बढ़ने का कारण भी यही युवा पिढ़ी है | जिस माँ-बाप के सहारे आप काबिल बने उन्हें ही आप वृध्दाश्रम का रास्ता दिखाते है | जो इंसान अपने माँ-बाप के साथ इतना बुरा व्यवहार कर सकता है वो इंसान केहलाने के लायक ही नहीं है |
हमारी संस्कृती सिखाती है कि बड़ों की इज़्ज़त करणी चाहिये उनका मान रखना चाहिये | क्या हमारे संस्कार इतने कमजोर हो गये हैं की हम अपने ही माँ-बाप को घर से बाहर निकाले | जिस उम्र में हमें उनके सहारे की लाठी बनना चाहिये उस उम्र में हम उन्हें वृध्दाश्रम के द्वार दिखाते है | आज हम देखते है गरीबी से लढ़ते हुये लोग, आज भी कई सारे लोग कचरे मे पड़ा खाना खाते है | अगर हम यैसा कुछ देखते है तो क्या हमारा इंसानियत के नाते फर्ज नहीं की हम उस गरीब के पेट की रोटी बने | आज विश्व मे जितने लड़कियों के कामियाँबिके किस्से है उतने ही उनके अपमान के भी किस्से है | आज सरे आम लड़कियों के साथ छेडखानी , बलात्कार , खुन , होता है | एक और स्त्री को देवी मानकर पूजा जाता है और दूसरी और उसकी इज़्ज़त की धज्जियाँ उडाई जाती है | सरे आम लड़कियों पर ॲसिड फेका जाता है उनका बलात्कार करने के बाद उन्हे जला दिया जाता है हाथरस और ,निर्भया घटनायें इंसानियत पर कलंक है | क्या इंसान इतना निष्ठुर हो गया है | अगर हम किसी औरत का सम्मान नहीं कर सकते तो उसकी बदनामी का कारण तो मत बनो | जैसे महाभारत काल मे लोग द्रौपदी के वस्त्रहरण का तमाशा देखते रहे वेसेही आज लोग लड़कियों की बत्किस्मती का तमाशा देखते है | आज पुरे विश्व मे कोरोना का हाहाकार हैं | लोगों का आन्तिंमसंस्कार करने के लिए जगह कम पड़ रही है | मृत्यु का महातांडव दिख रहा है | भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत मे कहाँ है –
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवती
भारत अभ्युथानम् अधर्मस्य
तदात्मांन् सृजाम्यहंम् |
परित्राणाय साधुनाम् विनाशाय
चः दुष्कृताम धर्म संस्थापनार्थाय
संम्भवामी युगे युगे |
जब इस धरती पर इंसानियत, प्रेम कम हो जायेगा जब इंसान एक दूसरों के प्रती सिर्फ घृणा की भावना रखेंगे तब भगवान इंसानियत की राह दिखाने आयेंगे | आज सारी और दंगे फसाद , आतंकवाद ,भ्रष्टाचार के साथ लोग जी रहे है | उसमे कोरोना का संकट, ऐसा लगता है ये कोरोना नहीं बल्की कल्की है जो इस धरती को फिर से इंसानियत की राह दिखाने आया है | जब इस विश्व मे एक इंसान अगर दूसरे इंसान के काम ना आये तो हमारा इंसान होने का क्या फ़ायदा | हमारा कर्तव्य है किसी मजबूर की मदत करना , लोगों को प्रेम बाँटना और हमारा सत्कर्म भी येसा हो-
किसी के होठों की में मुस्कान बन जाऊ
गरिब के पेट का निवाला मे बन जाऊ
बुजुर्ग के लिए मे सहारा बन जाऊ
और हर स्त्री का मे सम्मान बन जाऊ
बस एक ही ख्वाईश है मे सिर्फ अच्छा
इंसान बन जाऊ |
जब हर इंसान की सोच ऐसी हो जाये तो इस धरती से घृणा, राग ,लोभ का वजुदही मिट जायेगा | प्रेम, ममता, लागणी ,वात्सल के साथ हर ईन्सांन मे परमेश्वर बसेगा और हर घर मे सिर्फ ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ होगी | जब किसी दूसरे इंसान के होठों पर मुस्कान लाकर हम खुश रहने लगे तब हमारी खोई हुई इंसानियत हमे फिर मिल जायेगी | आशा है इस दुनिया में कुछ ऐसा हो …….
हर इंसान का एकही सपना हो |
यहाँ घृणा नहीं सिर्फ प्यार की मिठास हो |
हर आँख दूसरों का गम देखकर रोती हो |
हर गरीब के घर मे दो वक्त की रोटी हो |
इस पिढ़ी मे आतंक की गोलियां नहीं सिर्फ स्नेह का सागर हो|
यहा भ्रष्टाचार का रोग नहीं सिर्फ सत्य का वास हो |
हर स्त्री का यहाँ सन्मान हो और हर इंसान मे इंसानियत की मुरत हो |
प्रतिष्ठा से तेजस्वी सब की सुरत हो |
हर किसीका सपने पुरे करने का ध्यास हो |
और आत्मा मे आगे बढ़ने का विश्वास हो |
सबके होठों पे ख़ुशियाँ और दिलों मे प्यार हो |
हर ईन्सांन मे यहाँ भगवान का वास हो |
.
यहाँ संघर्ष का महाभारत नहीं |
सिर्फ प्यार, धर्म और सत्य का राम राज्य हो|
By Aakanksha Ganesh Dahihand