२०१५ में झारखण्ड राज्य के मांडर जिले में पांच महिलाओं को उनके घरों से जबरदस्ती बाहर निकाल कर डंडे और लोहे की छड़ से उनकी पिटाई कर उनकी निर्मम हत्या कर दी जाती है | गाँव वालो का आरोप था की “ये महिलाएँ काला जादू करती थी” |
२० सितम्बर २०१८ में झारखण्ड राज्य के ही बुंडू जिला में बुधनी देवी के डायन होने के शक में उसी के भतीजे ने कुल्हाड़ी से मार कर उसकी हत्या कर दी |
१२ नवम्बर २०१८ में झारखण्ड राज्य के चाईबासा जिले के चक्रधरपुर प्रखंड के कुरलिया गाँव के रणजीत प्रधान ने अपनी ही सास को डायन बताकर धारदार हथियार से मार डाला |
उपरि लिखित घटनाएं सुनकर मन में यह संदेह अवश्य होता है की क्या सच में ऐसे कोई भी किसी मनुष्य को डायन बताकर कानून को भी ताक में रखते हुए किसी की जान ले सकता है या फिर सच में डायन जैसा कोई ऐसा रहस्य है जिससे हम आज भी डरते है और व्यथित होकर उसे खत्म कर देने को आमादा हो जाते है | हमारा मन तथ्यों से ज्यादा साक्ष्य पर भरोसा करता है | ऐसे में अगर कोई इंसान आपको ऐसी कोई कहानी या घटना सुना देता है तब हमारा मन उसकी बातों को तुरंत स्वीकार कर लेता है कि सच में ऐसी कोई अलौकिक शक्ति हमारे आसपास मौजूद है | शायद यही वजह है कि समाज में डायन-बिसाही जैसी अवधारणा लोगों के मन में घर की हुई है और इसी अंधविश्वास को मानते हुए यह समाज न जाने कितने महिलाओं की मौत की वजह बन गया है |
यह ३ घटनाएं तो सिर्फ एक प्रदेश की है, ऐसी अनगिनत घटनाएं है जिनका पुलिस अथवा प्रशासन के रिकॉर्ड में नाम तक अंकित नहीं है | ऐसी अनगिनत घटनाएं न जाने कितने दर्ज नहीं हो पाते है और कितने की घटनाएं वहीँ के वहीँ दब जाती है |
ऐसे घटनाओं को सुनकर सबसे बड़ा सवाल हमारे मन में यह आना चाहिए की क्या सच में हम डायन बिसाही की अवधारणा को मान सकते है या फिर ऐसे किसी भी व्यक्ति के पास ऐसी कोई तांत्रिक शक्ति का प्रसार हो सकता है जिससे की वो किसी अन्य मनुष्य को हानि अथवा नुकसान पहुंचा सकता है ? विज्ञान की बात माने को ये सब अंधविश्वास है और पौराणिक गाथाओ की माने तो ये सब सच के काफी निकट लगता है |
झारखण्ड राज्य में अलग अलग वर्षो में कुल डायन-बिसाही सम्बंधित हत्याओ का ब्यौरा प्रस्तुत किया गया है :
वर्ष | हत्याएं |
२०११ | ३६ |
२०१२ | ३३ |
२०१३ | ४७ |
२०१४ | ३८ |
२०१५ | ४७ |
२०१६ | २७ |
२०१७ | ४१ |
२०१८ | २६ |
इन आंकड़ो से हम इस बात को समझ सकते है की इन मामलों में हर साल काफी संख्या में लोग मौत के मुंह में जा रहे है और सबसे चौकाने वाली बात तो ये है की ये संख्या सिर्फ एक राज्य की है | पूरे भारतवर्ष की देखे तो NCRB के अनुसार डायन बिसाही के नाम पर कुल ६५६ हत्याएं पिछले 5 सालो में हुई है | इतने बड़े पैमाने पर डायन-बिसाही के नाम पर लोगों की हत्या होना निश्चित ही रहस्य एवं शोध का विषय है | हमें ये भी गौर करना पड़ेगा की ये ऐसी आंकड़े है जो दर्ज कराये गए है | ऐसी अनगिनत घटनाएं है जिनका न ही कोई वर्णन होता है और न ही उसपर कोई कार्यवाही होती है |
आखिर क्या है ये डायनों का रहस्य ?
झारखण्ड में जादू टोना, अंधविश्वास और डायन बिसाही बताकर हत्या और प्रतारणा के मामले काफी पहले से है | झारखण्ड में १८०० महिलाओं की इसी सन्दर्भ में निर्मम हत्या की जा चुकी है | डायन-बिसाही के नाम पर हत्याएं झारखण्ड के अलग अलग जिले जैसे रांची, खूंटी , सरायकेला , गुमला , देवघर , लोहरदगा और लातेहार शामिल है जहाँ इस कुकृति के साक्ष्य निशान देखने को मिले है | जादू टोना या डायन बिसाही की बातें शहरों की अपेक्षा गाँव घरों में अधिक देखने को मिलती है | यहाँ लोगों में अंधविश्वास इस तरह हावी हो जाता है कि वो ये सब बातें आँख बंद करके विश्वास कर लेते है | किसी को रोग हो गया और उसका सही उपचार न करने से उसकी मृत्यु हो गयी तब उसकी मृत्यु का ज़िम्मेदार भी डायन को मान लिया जाता है | घरेलू उपचार के साथ ओझा गुनी की मान्यता गाँव घर में ज्यादा मिलती है | वे समझते है की ओझा के पास जाकर किसी भी असाध्य रोग से भी मुक्ति मिल सकती है | डायन के नाम पर औरतों के साथ जुल्म करने वाले लोग ओझा गुनी की बातों पर भरोसा करके उसका शोषण करते है | यहाँ तक की महिलाओं को डायन बताकर मल-मूत्र पिलाया जाता है, निर्वस्त्र कर सामूहिक दुष्कर्म किया जाता है और सर मुड़वा कर मुंह कला कर गाँव घर में घुमाया जाता है | इस विभत्स्य चित्र को देख कर किसी की भी रूह काँप उठती है | ऐसी खबरों को सोचकर ही मन में निःस्तब्धता आ जाती है| किसी के कहने से अगर किसी की मृत्यु हो जाती है तब उसे हम अंधविश्वास नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे ? महिलाओं को डायन बताकर नृशंस हत्या करना अमानवीय संवेदना का परिचायक है | इस कुकृति को कोई भी समाज या इंसान कैसे मान सकता है ? ना ही कोई इस पर आवाज़ उठता है और न ही कोई इसपर कोई सुनने समझने को तैयार होता है | आम तौर पर गांवों में ये अवधारणा है की डायन तंत्र-मंत्र से किसी की भी जान ले सकती है | उनके पास इतनी शक्ति होती है की हरे-भरे पेड़ को सुखा दे या फिर बच्चे या जीव को गायब या बीमार कर दे | गाँव के ही कुछ ऐसे ओझा गुनी व्यक्ति खुद की पैठ बनाने के लिए विधवा या कमज़ोर महिलाओं को डायन घोषित कर उनपर शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना देकर अंततः उनकी जान ले लेते है |
डायन बताकर होने वाली हत्याओं की रोकथाम के लिए झारखण्ड में अलग से कोई कानून नहीं था | संयुक्त बिहार के डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम १९९९ ही झारखण्ड में लागू है जिसे राज्य सरकार ने ३ जुलाई २००१ में अंगीकृत किया था | इस अधिनियम के बनने के बावजूद समाज में इस प्रथा का उन्मूलन नहीं हो सका है | अपितु हम यह कह सकते है की लोग और समाज में इस कुरीति का अंत होना फिलहाल संभव नहीं दिखता है | अगर हम मूल वजहों पर जाए तब हमें यह पता चलेगा की इसकी मुख्य वजह शिक्षण और जागरूकता की कमी एवं स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है | गाँव घरों में शिक्षा की स्थिति दयनीय है जिसकी वजह से आम लोगों में इस प्रथा के प्रति जागरूकता शून्य के करीब है | लोग स्वास्थ्य सुविधा अच्छी नहीं होने पर तथा किसी अनजाने से रोग होने पर भी उसका कारण काले जादू और डायन-बिसाही को मान लेते है |
अंततः मैं ये स्वीकार करने को तैयार हूँ की कई सारे लोग डायन जैसे बातों पर आज भी भरोसा करते है | पर मेरे अनुसार यह एक सामाजिक कुरीति है जिसने कई लोगों को डंसा है | ऐसे रहस्य निश्चित ही एक शोध का विषय है क्योंकि ऐसे रहस्य जिसका कोई तर्क न हो उसे अंधविश्वास मान कर उसका दुष्प्रचार होना स्वाभाविक है | ये बात याद रखनी चाहिए कि अंधविश्वास को बढ़ावा देना भी समाज के पतन का मार्ग खोल देता है | हमे ये बात याद रखनी चाहिए की कानून से बड़ा कोई नहीं होता है और किसी की भी हत्या करना एक जघन्य अपराध है |
नाम- प्रियंका भारती , रामगढ (झारखण्ड)