संघर्ष करो
संघर्ष करो
संघर्ष हमारी
कर्म भूमि है
हमारी रणभूमि है
संघर्ष से नहीं है घबराना
संघर्ष से हुए हैं बड़े बड़े काम
जो बैठे हैं हक मारकर
हाशिये के लोगों का
उनसे भी
करना है संघर्ष
और उससे पहले तो
अपने आपको भी
मनुवादी सोच से
बाहर लाने के लिए
अपने आपसे भी करना है
संघर्ष…
अब हम झूठे वादों
के चक्कर में नहीं आएंगे
अब हम अपनी भागेदारी, हिस्सेदारी
की बात करेंगे
अपने हक हकूक के लिए
हाथ नहीं फैलाएंगे
बल्कि हम करेंगे संघर्ष
उन सबसे जो हमारे
हकों के खिलाफ हैं
हम अपने हाशिये के लोगों के
साथ हैं
अब हम किसी और के लिए
नहीं
सामाजिक न्याय के लिए
संघर्ष करेंगे
संघर्ष करेंगे….
रचयिता: बलदाऊ यादव
हिंदी साहित्य छात्र
आर्यभट्ट महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय
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बहुत खूब👌
Bhut badiya brother..🖤
Superb poem
Nice poem