श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर भारत के एक राज्य केरल की राजधानी तिरूचवंतपुरम में है। यह मंदिर आज तक पूरी दुनिया में एक रहस्य का विषय बना हुआ है। इस मंदिर में सिर्फ हिंदू धर्म के लोगों को हीं प्रवेश दिया जाता है। इस मंदिर में पुरूषों को धोती और महिलाओं को साङी पहनना अनिवार्य है। लेकिन ये पोशाक इस मंदिर को रहस्यमयी और महत्वपूर्ण नहीं बनातें हैं। आखिर इस मंदिर में ऐसा क्या है, जो इस मंदिर को एक रहस्यमयी मंदिर बनाता है। वो रहस्य क्या है, जो आज तक अनसुलझी है। इन सब विषयों पर अभी तक शोध चल रहा है। इस मंदिर के साथ सोने धातु को काफी ज्यादा जोङा जाता है। जैसे क्या ये मंदिर सोने का बना है या क्या इस मंदिर में सोने की कोई मूर्ति है, या सोने की तरह ही कोई कीमती धातु से बनी मूर्ति है, इत्यादि। फिर भी ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में इतना खजाना है जो भारत की अर्थव्यवस्था को बदल सकता है। शोधकर्ताओं के द्वारा ऐसा अनुमान लगाया गया है कि इस मंदिर के पास इतनी सम्पति है कि इससे भारत में लगभग १ करोड़ से डेढ़ करोड़ अस्पताल बनाये जाये सकते है और लगभग १४००० हज़ार राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण किया जा सकता है। कुछ शोधकर्ताओं का ये भी मानना है कि यदि इस धन को भारत की जनता में बाँट दिया जाये तो हर व्यक्ति को लगभग २०००० रूपये मिलेंगे। इस मंदिर में इतनी सम्पत्ति भरी पड़ी है कि उस धन से सिंगापुर और स्विट्जरलैंड जैसे देशों को ख़रीदा जा सकता है। मंदिर का ये खजाना कहाँ-कहाँ है अभी इसका पता लगाया जा रहा है।
मंदिर के केंद्र में स्थापित गर्भगृह में ये खजाना रखा गया। भारतीय ख़ुफ़िया विभाग के अधिकारी टी.पी.सुन्दर राज ने कहा, उन्हें मंदिर की सम्पति खोजने का अवसर दिया जाये। १ जून २०११ में भारत सरकार और सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें आदेश दे दिया। तब, टी.पी.सुन्दर राज ने ७ दरवाजों का नामक्रम किया- क्रमशः ए, बी, सी, डी, इ,फ, जी। एक महीने बाद जुलाई २०११ को टी. पी. सुन्दर राज ने ६ दरवाजो को खोल दिया। जब दरवाजो को खोला गया तो वहाँ सोने के आभूषण, स्वर्ण मुद्रायें , सोने से बने वस्त्र, ७ फुट लम्बें कीमतीं गले का हार, सोने के बर्तन,सोने और हीरे जङित मुकुट, संदूक और सबसे मूल्यवान वस्तु सोने से बनी मूर्तियाँ मिलीं। इन मूर्तियों में विष्णु जी की मूर्ति भी है। इस मूर्ति का नाम ‘अनन्तसयनम’ जिसका अर्थ हैं, ‘कभी न ख़त्म होने वाल लेटना’। खजाने में सोने-चाँदी के साथ-साथ हीरा, पन्ना, रूबी तथा अन्य दूसरे कीमती पत्थर मिले हैं। आँकड़ों के अनुसार इन सब का मूल्य आंकना बेहद मुश्किल है, फिर भी अभी तक खजानें का मूल्य खरबों में आँका गया है। अनुमानतः लगभग इन सब का मूल्य 120000000000 रूपए अर्थात् १२ खरब है। लेकिन जानकारों का कहना है कि ये सभी चीज़ें ऐतिहासिक हैं इसलिए यदि इन सब चीज़ो का मूल्यांकन उस रूप में किया जाये तो अभी के अनुमान से १० गुना ज्यादा हो जायेगा। इतिहासकारों का ये भी मानना है कि ये सारा धन चोला, चेरा, पंड्या और अन्य बहुत से राजवंशो ने मिलकर जमा किया था। महाराज मार्तण्ड वर्मा ने शुरुवात में छोटे छोटे राज्यों को मिलाकर एक साम्राज्य स्थापित किया। फिर बड़ें-बड़े राज्यों को हरा कर एक बड़ा साम्रज्य स्थापित किया उसका नाम रखा त्रावनकोर। उसके बाद खुद को विष्णु भगवान को समर्पित कर खुद को उनका दास घोषित कर दिया। उस समय से आज तक ये परम्परा चलती आ रही है। त्रावनकोर की हर पीढ़ी खुद को भगवान विष्णु का दास मानती है।
इन सात दरवाजों में से सातवां दरवाजा अभी तक नहीं खोला गया है। सातवें दरवाजें में भी ३ दरवाजे हैं। पहला दरवाजा लोहे का बना हैं, दूसरा दरवाजा लकड़ी का बना मोटा व कठोर दरवाजा है और तीसरा दरवाजा पुनः लोहे का बना है। ऐसी भी धारना है कि इनके अलावे भी एक और दरवाजा है जिसकी दीवारें सोने की बनी है। इस दरवाजें को लेकर ऐसी भी कहानियां हैं कि दरवाजे के पीछे से पानी की आवाजें आती रहतीं हैं और यदि इस दरवाजे को खोला गया तो सारा पानी तेज बहाव के साथ बहता चला आएगा। पानी का बहाव सारे खजाने को नष्ट कर देगा। साथ ही पद्मनाभस्वामी मंदिर भी नष्ट हो जायेगा। सातवें दरवाजे के ऊपर दो नागो की मूर्तियाँ बनी हैं। इन्हीं नागों को लेकर ऐसी मान्यताएं भी हैं कि सातवें दरवाजें की रक्षा लाखों सांप करते हैं। कुछ लोगों का कहना हैं कि दरवाजो को खोलने के लिए दरवाजे पर बने दोनों नागों से अनुमति लेनी पड़ती है क्योंकि दरवाजे को नाग बंधन मंत्र से बंद किया गया था। ये सांप जिसे अनुमति देंगे वही सातवें दरवाजे को खोल सकता हैं। इन सापों को लेकर ये भी कहा जाता है कि चूँकि ये सांप दरवाजों की सुरक्षा करते हैं इसलिए इन्हें सिर्फ गरुड़ मन्त्र से ही शांत किया जा सकता है या वश में किया जा सकता है। यह भी माना गया हैं कि इस दरवाजो को खोलने के लिए गरुड़ मंत्र का जाप करना पड़ता हैं। यह जाप इतना कठिन व खतरनाक है कि एक चूक हुई और मृत्यु निश्चित है। टी.पी.सुन्दर राज के साथ भी ऐसा हीं हुआ. दरवाजों को खोलने के कुछ ही दिनों में हीं उनकी मृत्यु हो गयी। इस मंदिर के दरवाजों को लेकर एक कहानी ये भी है कि यदि कोई इस दरवाजो को खोलता है या खोलने की कोशिश करता है तो पहले वो बीमार हो जायेगा और फिर उसकी मृत्यु निश्चित है। जैसा कि ६ दरवाजे को खोलने वाले टी.पी.सुन्दर राज के साथ हुआ। दरवाजें को लेकर ये भी धारना है कि दरवाजे के पीछे का रास्ता हिन्द महासागर के पास निकलता है।
सन् २०१२ में एक ब्रिटिश अखबार को साक्षात्कार देते हुये त्रावणकोर राजवंश के सबसे बुजुर्ग सदस्य उत्तरोतम मार्तंड वर्मा ने कहा है कि “मैं जानता हूँ कि दरवाजे के पीछे क्या है, लेकिन यह जानना सब के लिए जरुरी नहीं है।“ इस दरवाजो को खोलने का प्रयास एक सौ उन्तालीस साल पहले भी हुआ था, जो कामयाब नहीं हो पाया था।
By Anant Kumar