सांसें क्यों इतनी सस्ती हुईं,
ये बात समझ न आती है,
चिंता क्यों इतनी हुई भारी,
जो जीवन को डस जाती है।।
सबको ले कर साथ चलो तो,
खुशियों का दर दूर नहीं,
तनहां तनहां खुशियां चाहो,
यह रब को भी मंजूर नहीं।।
जिनकी हमने कदर न की,
उनसे दूरी हो जाती है,
जो वक्त के रहते न चेते,
तो किस्मत भी सो जाती है।।
जीवों की तो बात है क्या,
निर्जीव भी प्यार समझते है,
क्यों इंसा हो कर न समझें,
क्यों चलें न सीधे रस्ते है।।
दौलत भी थी,शोहरत भी थी,
पर कुछ तो कमी रही होगी,
कुछ मन पर भार रहा होगा,
जो,जीने की फितरत न थी।।
जैसे भी जिस हाल में हम हैं,
खुद की जिम्मेदारी है,
विस्तृत होना ही हल इसका,
सीमितता ही लाचारी है।।
जीवन खतरे में मत डालो,
जीवन अनमोल तुम्हारा है,
जीवन जीने का नाम ही है,
जीवन बहती इक धारा है।।
सांसें क्यों इतनी सस्ती हुई,
ये बात न समझ न आती है,
चिंता क्यों इतनी हुई भारी,
जो जीवन को डस जाती है।।
कबि परिचिति : मधुरंजन