प्रस्तुत कविता माँ से संबंधित है । इस कविता में एक शिशु (भ्रूण)जो कि गर्भ में पल...
कविता
मेरी औकात नहीं तुम्हें पाने की ! हैसियत नहीं हथियाने की ! शायद मेरी अंतरात्मा तुम्हें पुकारती...
मुंबई लोकल में एक यात्री की जेब कट जाती है. अपनी व्यथा, जब वह विभिन्न सहयात्री और...
कैद थी अपनी जिम्मेदारियों से,जब संभलना चाह खुद को नीचे पायाइन समाज के बीमारियों से,बहुत गिन चुकी...
खुद की न कुछ बिसात हो तो बात है,वो दिन को कहे रात हो तो रात है।।...
अबकी बरसात में हम,कुछ ऐसे भीग गये,लवरेज हुऐ प्रेम से,और द्वैत,द्वेष रीत गये।। तन भींगा,मन भीगा,अंतरतम सीज...
जब रोती हुई आई वो इस दुनिया में तो उसके साथ एक माँ बाप भी जन्मे जो ...
हम सोते है जो सुकून से घर पर, वो बहाते आपना लहू है सरहद पर बैठी...
कब तक बांधे रखो गे अपनी आँखों पर ब्रह्म की पट्टी खोलो आंखे देखो समाज में फैली...
मुंबई की लाइफ लाइन है लोकल, दिन हो या रात, बस भागती रहती है हर पल। मुंबई...