आँखें न बहुत कुछ कहती हैं
कोई सुने तो सही
ये इशारे बहुत कुछ बोलते हैं
कोई इन्हें पढ़े तो सही
कहते हैं आँखें मन का आईना होती हैं
जो कहते हैं, गलत कहते हैं
अरे! आईना तो सच्चाई का रूप है
जिसमें सब प्रत्यक्ष है
जिसमें कभी कुछ छिपा नहीं, कभी कुछ ढाका नहीं
मगर आँखें!
आँखें इक छलावा है
ये कभी न खत्म होने वाला एक भ्रमजाल बुनती हैं
ख़ुशी के मौके पर तो रो देती हैं
पर दुखों को निरंतर खुद में समाये रखती हैं
इनमें हज़ारों कहानियां दफन हैं
इनमें हज़ारों ऐसे अनकहे बोल छिपे हैं
जिन्हें जुबां की राह तो कभी मिली ही नहीं
ये दिल के ज़ख्मों को छिपाती हैं
वो ज़ख्म, जो निरंतर रिस्ते हैं
तो आँखें आईना कैसे हुई?
आँखों में जो दिखता है ना वो सत्य नहीं है
मगर वो असत्य भी इक जटिल सत्य का ही अंश है
वो सत्य, जो उभरना चाहता है, जो सुलझना चाहता है
मगर उसे सुलझाना हर किसी के बस की बात नहीं
आँखें कहती तो बहुत कुछ हैं,
आखिर कोई सुने तो सही
By – Himanshu Yadav
Amazing and beautifully written