सरहद पर बैठे एक सिपाही की भावना जो बह रही उस हवा से (जो सरहद, दो सरह...
कविता
न जनो मुझे माँ एक ध्वनि न जाने कहाँ से आयी ढूंढू फिरूँ मैं बाबरी किस ओर...
एक बार आगे जो बढ़ आये तो फिर पीछे देखने का मन नहीं करता, मुझे उन यादो...