मनुष्य जन्मजात रचनात्मक प्राणी है. कहते हैं दुनियाँ में जन्मा प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी विशिष्ट प्रतिभा का धनी होता है. बहुधा यह प्रतिभा उसमें निगूढ़ होती है. लगन, मेहनत, संकल्प, दृढता, कर्तव्य-परायणता के जरिये वह स्वनिहित इस प्रकृतिप्रदत्त प्रतिभा को कुशलता से तराश कर उत्कर्ष पर पहुँच सकता है. किन्तु, जैसे कस्तूरी मृग इस सत्य से बेखबर होता है कि जिस प्रिय गंध की खोज में वह वन-वन भटक रहा है वह सुगंध उसी के भीतर है, अन्यत्र नही. वैसी ही कुछ हालत मनुष्य की है. वह स्वनिहित विराट संभावना से अंजान बना जगत् में हताश फिरता रहता है. अपनी अदूरदर्शिता और अनावश्यक चंचलता से अपनी मेधा को उपयुक्त अवसर नही दे पाता ताकि वह फल-फूल सके. इस प्रकार अनगिनत प्रतिभाएं उचित अवसर, पोषण व प्रोत्साहन से वंचित हो पनप नही पातीं अथवा पनप कर कुपोषण का शिकार हो दम तोड़ देती हैं. मानवीय प्रतिभा के प्रारब्ध की यह बड़ी विडंबना है. इस विडंबना का प्रमुख कारण मनुष्य द्वारा स्वयं की शक्ति से अनभिज्ञता तो है ही बहुधा मामलों में आत्मविश्वास की कमी भी है. भगवान बुद्ध ने ऐसे ही व्यक्तियों को लक्ष्य कर ‘अप्प दीपो भव’ की बात कही है अर्थात् अपना दीपक स्वयं बनो.
प्रश्न उठता है कि हम खुद में छिपी प्रतिभा की पहचान कैसे करें? हमें कैसी पता चले कि हमारी प्रतिभा के विविध आयामों में से किस आयाम के मुखर होने की संभावना अधिकतम है? हम किस दिशा में दृढ यत्न कर विमल यश प्राप्त कर सकते हैं? प्रतिभा अमूमन किस उम्र में उभरकर सामने आती है?
उपरोक्त प्रश्न जायज हैं और विचारणीय भी. यह आवश्यक नही कि एक व्यक्ति में केवल एक ही प्रतिभा हो. वह बहुमुखी प्रतिभा का धनी हो सकता है. एक व्यक्ति में अच्छा खिलाड़ी, वक्ता, लेखक, अध्यापक आदि होने की प्रतिभा छिपी हो सकती है. ऐसे में उसे कैसे पता चले उसे किस दिशा में अधिक गंभीर प्रयास करने की जरुरत है. यह प्रश्न वाकई सरल नही है. किन्तु, समाधानशून्य भी नही. हमें अपनी प्रतिभा को ‘महत्तम रूचि के प्राकृतिक सिद्धांत’ पर आकलन करना चाहिए. अर्थात् दिन भर में खुद के द्वारा किये जा रहे विविध कार्यों में किस कार्य में अधिकतम आनंद की प्राप्ति हो रही है? ऐसा कौन सा कार्य या गतिविधि है जिसे निर्वहन करते समय हमारी तल्लीनता, ऊर्जस्विता, कर्मठता और आनंद अपने चरम पर होता है? हम अपना सुध-बुध खोकर उस कार्य में डूब जाते हैं और डूबे रहना चाहते हैं. निश्चित रूप से वह कार्य हमारी मनोवृत्ति, चेतना, मन और हृदय के सर्वाधिक निकट है. उस कार्य हेतु हमारा चुनाव प्रकृति का निर्णय है, नैसर्गिक है. इसी रूचिकर्म को अंग्रेजी में ‘हॉबी’ की संज्ञा दी गई है. ‘हॉबी’ अर्थात् रूचिकर्म ऐसा कार्य है जिससे हमारी प्रज्ञा अभिन्नता से जुड़ी रहती है. उस कार्य की जहाँ भी जिक्र हो, चर्चा चले हम खिंचे चले आते हैं. उस विषय की हरेक छोटी-बड़ी बात जानने की लिप्सा मन में सदैव बनी रहती है. जितना देर उस कार्य को करो अचेतन मन मानो उस कार्य से तदाकार सा हो जाता है. उस कार्य को कर पुलकित हृदय एक अद्भुत आनंद के अनुभव से आंदोलित सा हुआ रहता है. अगर उस कार्य से असंपृक्त होना पड़े तो लगे कि आज का दिन निरर्थक गया. थके तन और क्लांत मन में भी उस कार्य को करने का अशेष उत्साह और ऊर्जा यदि विद्यमान रहे तो समझना चाहिए कि वह कार्य विशेष हमारा ‘हॉबी’ है/रूचिकर्म है.
हॉबी की पहचान किस उम्र में उभरकर सामने आती है?
प्रचलित कहावत है – ‘होनहार बिरवान के होत चिकने पात’. अर्थात्, कोई भी संभावना अपने आरंभिक दिनों में ही अपनी लाक्षणिकता प्रकट करती है. जैसे एक खिलाड़ी की प्रतिभा का आकलन एक बालक के खेल के प्रति रुझान और उसके खेल कौशल का अवलोकन कर लगाया जा सकता है. उसी प्रकार गायन, पेंटिंग, वादन, अभिनय इत्यादि प्रतिभा की आरंभिक झलक संबंधित व्यक्ति के बाल्या अथवा किशोरा अवस्था में अमूमन देखने को मिल जाता है. किन्तु, कुछ प्रतिभाएं जैसे लेखन, होर्स-राईडिंग आदि की झलक संभव है कि किशोरावस्था के ठीक उपरान्त दिखाई देने लगे. मगर, इतना स्पष्ट है कि 18 वर्ष की उम्र तक अधिकांश मामलों में व्यक्ति को अपनी रूचि/शौक का पता लग जाता है. यह उम्र व्यक्ति के जीवन का वसंत ऋतु होता है. इस समय व्यक्ति शारीरिक रूप एवं मानसिक रूप से उत्कृष्ट स्थिति में होता है. शरीर ऊर्जा का महाकोष बना होता है और मस्तिष्क सृजनात्मकता का महाकेन्द्र. ऐसे में व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने रुचिकर्म को विकसित करने हेतु योग्य गुरु/उस्ताद अथवा शिक्षण/प्रशिक्षण संस्थानों की मदद ले. अपनी रूचिकर्म से संबंधित तकनीकी पक्षों को जाने. सामान्यतया की जानेवाली और भूलकर भी न की जानेवाली गलतियों को जाने तथा उससे परहेज करे. उस क्षेत्र में सफल व्यक्तियों की रचनाओं/कार्यों/अनुभवों का अध्ययन कर अपनी समझ का दायरा बढ़ाये तथा वर्तमान में उस क्षेत्र की व्यावसायिक संभावना का पता लगाए. तत्पश्चात्, योजनाबद्ध तरीके से उस दिशा में आगे बढ़े एवं अपनी प्रतिभा के धार को प्रकर्ष करे. रूचिकर्म कई प्रकार के हो सकते हैं- गायन, वादन, नृत्य, अभिनय, खेल-कूद, पेंटिंग, चित्रकला, डाक-टिकट संग्रह, योगाभ्यास, ज्योतिष अध्ययन आदि.
अन्य विधाओं की तरह लेखन भी एक लोकप्रिय विधा है तथा यह अधिकाँश व्यक्तियों के रुचिकर्म में शामिल है. लेखन मन की अतल गहराइयों में उठने वाले सूक्ष्म विचार लहरों तथा मनोभावों को प्रकट करने का सबसे सशक्त तरीका है. लेखक अपनी शाब्दिक अभिव्यक्ति, निजी अनुभव एवं अवलोकन द्वारा आम आदमी के जीवन में घटित होने वाली घटनाओं की विचित्रता, सामजिक विद्रूपता, मानसिक द्वन्द, मानव व्यवहार के विरोधाभासी पहलू आदि विषयों पर अपनी बात रखता है. किन्तु, लेखक का अनुभव महज निजी ना होकर सार्वजनिक हो जाता है. उसकी अभिव्यक्ति समाज और लोगों के विचार को आंदोलित कर एक सकारात्मक परिवर्तन की नींव भी खड़ा करता है. विचारों की उत्पत्ति से सफल अभिव्यक्ति तक की प्रक्रिया तक लेखक बेचैन रहता है; किन्तु, सफल अभिव्यक्ति के पश्चात् उसे उसी सुख और आनंद का बोध होता है जो प्राणघाती प्रसव पीड़ उपरान्त मातृत्व पदलब्धा प्रसूता स्त्री को होता है.
लेखन के प्रकार
लेखन के मुख्य रूप से दो भेद हैं-
(i) साहित्यिक और (ii) गैर साहित्यिक
साहित्यिक लेखन की दो शाखाएं हैं:-
(i) गद्य तथा (ii) पद्य
गद्य में कहानी उपन्यास, नाटक, एकांकी, संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत, रिपोर्ताज, आदि विधायें शामिल हैं. वहीं पद्य में कविता, गीत, गजल, नज्म, शायरी, खंडकाव्य, एवं महाकाव्य आदि शामिल है.
इसी प्रकार गैर साहित्यिक श्रेणी में तकनीकी विषयों पर लेखन, पाठ्य पुस्तकों का लेखन, प्रतियोगिता परीक्षाओं पर आधारित पुस्तक लेखन, पर्यावरण, विज्ञान, मानवाधिकार, विधि, लोक- प्रशासन एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध, वित्त एवं व्यापार, रक्षा-मामले, कंप्यूटर एवं आई.टी, फोरेंसिक विज्ञान , मानव-संसाधन, प्रबंधन आदि विषयों पर तकनीकी लेखन.
लेखन क्षेत्र में कैरियर की संभावना
लेखन क्षेत्र में पूर्णकालिक एवं अल्पकालिक दोनों विषयों पर लेखन की अपार संभावनाएं हैं. पूर्णकालिक करियर में पत्रकारिता, निजी एवं प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में सम्पादकीय कार्य, स्वतंत्र साहित्यिक लेखन, व्यावसायिक लेखन, फिल्मों में पटकथा, संवाद एवं गीत लेखन, विज्ञापनों एवं उद्योगों हेतु टेगलाइन, राजनितिक दलों हेतु स्लोगन लेखन, विभिन्न टी.वी चैनलों के लाइव शो हेतु ऑन द स्पॉट लेखन, धारावाहिक हेतु स्क्रिप्ट लेखन, वृतचित्र लेखन, पौराणिक कथाओं एवं ऐतिहासिक इतिवृत्तियों से संबंधित लेखन आदि शामिल है.
वहीं अल्पकालिक लेखन के क्षेत्र में निजी ब्लॉग लेखन, सोशल मीडिया पर अपने चैनल के माध्यम से विविध विषयों पर लेखन, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं पर सामयिक, लोकरूचि व लोकमहत्त्व के विषयों पर लेखन. ‘माई गोव’ जैसे सरकारी पोर्टल पर आयोजित टेगलाइन, स्लोगन, काव्य एवं निबंध प्रतियोगिता में लेखन, ऑनलाइन निबंध प्रतियोगिता में लेखन आदि शामिल है.
लेखन से संबंधित महत्वपूर्ण बातें
लेखन का क्षेत्र वृहत् और अति व्यापक है. अतः यहाँ सफल लेखक बनने हेतु कई महत्वपूर्ण बाते हैं, जिसे ध्यान देना परम आवश्यक है.
इस क्षेत्र में आजीविका बनाने वाले व्यक्तित्व में अटल धैर्य, अध्ययनशीलता, समयबद्धता, विभिन्न विषयों में गहन रुचि, अन्वेषणात्मक वृत्ति, तीव्र ग्रहण व स्मरण शक्ति, शब्दों की परख व शब्द शक्ति का मार्मिक ज्ञान, व्याकरण का विधिवत् ज्ञान, शास्त्रीय-भाषा, लोक-भाषा, व समसामयिक भाषाओं की समझ, विभिन्न भाषिक शैलियों की समझ व उन पर पकड़ होना नितांत आवश्यक है. कैरियर में स्थिरता आने व मनमाफिक आर्थिक व प्रतिष्ठागत लब्धि प्राप्त होने में समय लग सकता है. अतः व्यक्ति को आशावादी रहकर सतत् प्रयत्न करते रहना होगा.
भाषायी माध्यम का करियर पर प्रभाव
एक भ्रांत धारणा है कि अंग्रेजी में साहित्यिक अथवा गैर साहित्यिक लेखकों के लिए भारतीय भाषाओं की अपेक्षा अर्थ एवं यश की अधिक संभावना है. यह धारणा यद्यपि पूरी तरह से सही नही है. किन्तु, इसे सिरे से खारिज भी नही किया जा सकता है. यह सही है कि भारतीय भाषाओं की अपेक्षा अंग्रेजी साहित्य का बाजार अधिक व्यवस्थित, लेखक केंद्रित, तथा वृहत् पाठक वर्ग वाला है. यहाँ फिक्सन, रोमांस, थ्रिलर, मिस्ट्री, मायथोलोजी आदि की अच्छी मांग है तथा सफल लेखक को अनुशासित पाठक वर्ग द्वारा अच्छा प्रतिसाद मिलता है, जिससे उनकी आय सुस्थिर रहती है. किन्तु, इन सबके पीछे एक ही गतिशील कारक है. वह यह है कि लेखक की रचना कितनी दमदार है, कितनी मौलिक है, पाठकों की मांग एवं रूचि के कितना अनुकूल है. शेष कारक तदुपरांत ही कार्य करते हैं. प्रसिद्ध युवा लेखक अमीश त्रिपाठी को अपने पहली पुस्तक ‘Immortals of Meluha’ छपवाने के लिए बीस से अधिक प्रकाशकों की अस्वीकृति झेलनी पड़ी थी. आज उनकी पांच किताबों की 55 लाख से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं और वो सफलतम युवा लेखकों में से एक हैं.
अपने आरंभिक दिनों में अन्य सफल लेखकों को भी इस स्थिति से दो चार होना पड़ा है. आज अन्य भाषाओं की तरह अंग्रेजी में भी संघर्षशील लेखकों की अच्छी खासी फ़ौज है. कई बार अच्छी रचनाओं को भी प्रकाशक एवं पाठक का उचित प्रतिसाद नही मिल पाता और लेखक को उम्मीद से कमतर सफलता मिलती है. किन्तु, एक लेखक को इन उतार-चढ़ावों से ऊपर उठकर सतत् अपनी मौलिकता तथा गुणवत्ता को उभारते रहना चाहिए. ‘अभिज्ञानशाकुंतलम’ से कालिदास की गणना संस्कृत के श्रेष्ठतम कवियों में होने लगी. उन्हें भी ऋतुसंहार जैसी रचना पर विशेष सराहना ना मिली. उसी प्रकार ‘रामचरितमानस’ से पूर्व व पश्चात् भी तुलसीदास ने विविध ग्रथ यथा रामचंद्रिका, बड़वे रामायण, रामलला नहछू, पार्वती मंगल, जानकी मंगल आदि ग्रन्थ लिखे पर उन्हें जो सिद्धि राम चरित मानस से मिली वह अन्य किसी कृति से नहीं. वहीं एक मात्र सदग्रंथ ‘बिहारी सतसई’ लिखकर बिहारी साहित्य जगत् में अमर हो गए. वस्तुतः, लेखकीय जीवनक्रम में प्रयास का ही मोल है. हर सजग व गंभीर प्रयास लेखक के ज्ञान व अनुभव में एक नया अध्याय जोड़ जाता है जो आगे चलकर किसी महान् रचना का प्रबल कारण बनता है. एक लेखक को यह सावधानी रखनी पड़ती है कि सफलता का ज्वर उसके दिमाग पे न चढ़े और विफलता का विषाद उसके दिल में न बैठे. वह केवल ईमानदारी और सजगता से अपना काम करता चले. सफलता सही समय आने पर उम्मीद से कहीं ज्यादा मिलती है.
भारतीय भाषाओं की यदि बात करें तो हिंदी समेत अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी लेखन की अपार संभावनाएं हैं. क्षेत्रीय भाषाओं में बँगला, मराठी, गुजराती, तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम आदि का अपना वृहत् पाठक वर्ग है, साथ ही इन भाषाओं की साहित्य संपदा भी अति व्यापक और उन्नत है. इन भाषाओं के कतिपय रचनाकार तो भारत का सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक पुरस्कार ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ के विजेताओं में शुमार हैं. इसके अतिरिक्त प्रतिवर्ष ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ व ‘युवा साहित्य अकादमी पुरस्कार’ इन भाषाओं में उत्कृष्ट लेखन हेतु विजेता लेखकों को प्रदान किया जाता है. इसके अतिरिक्त इन भाषाओं में प्रकाशित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन की संभावनाएं हैं. क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों व धारावाहिक में संवाद, पटकथा व गीत लेखन का विकल्प भी लेखकों के लिए उपलब्ध है. चूँकि, क्षेत्रीय भाषायें बहुधा लेखक की मातृभाषा ही होती है, अतः लेखक की सोच, अभिव्यक्ति एवं व्यंजनाएं सहज, स्वतः-स्फूर्त व हृदयस्पर्शी होती हैं.
हिंदी भाषा में लेखन
हिन्दी भाषा में लेखन के विविध विकल्प उपलब्ध हैं. फिर भी केवल लेखन द्वारा आजीविका चलाना यहाँ चुनौतीपूर्ण है. 19वीं- 20वीं सदी के लेखकों यथा-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, हरिवंश राय ‘बच्चन’, फणीश्वर नाथ ‘रेणु’, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, ‘नागार्जुन’, ‘मुक्तिबोध’, मैथिली शरण गुप्त, ‘हरिऔध’, राम नरेश त्रिपाठी, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, सुमित्रा नंदन पन्त, हरिशंकर परसाई या तो पूर्ण लेखक थे अथवा शिक्षण, चिकित्सा व पत्रकारिता जगत् से जुड़े थे. फिर भी उन्हें यश और धन अर्जन में संघर्ष करना पड़ा. किन्तु, वर्तमान समय में परिदृश्य थोड़ा बदला है. अच्छी साहित्यिक रचनाओं को व्यासायिक जगत् यथा टेलीविजन एवं फिल्म उद्योग से भी अच्छा प्रतिसाद अब मिलने लगा है. जिसने उदीयमान लेखकों को अर्थ और यश का लाभ देकर उनके लेखकीय उत्साह का वर्धन किया है. साथ ही I.S.B.N लागू होने तथा कॉपीराईट कानून की वजह से लेखक को अब उचित रॉयल्टी भी मिलने लगी है. ऑनलाइन प्रकाशन की सुविधा ने भी प्रकाशन कार्य को पारदर्शी, प्रतिस्पर्धात्मक व जवाबदेह बनाया है. ऑनलाइन व पारंपरिक कवि सम्मलेनों, साहित्यिक महोत्सवों, पुस्तक मेला आदि के सतत् आयोजन ने भी लेखन को खुला एवं प्रतिस्पर्धी बाजार उपलब्ध कराया है. अतः एक लेखक को आशावादी रहकर लेखकीय साधना में रत रहना चाहिए.
लेखक द्वारा अपनाई जानेवाली सावधानियां
चाहे आप पूर्ण लेखक हो या अल्पकालिक, लेखकीय यात्रा को सुगम व आनंददायक बनाने हेतु कतिपय अनुशासन व नियम हैं जिनका विवेचन अधोलिखित पैरा में किया जा रहा है. इन्हें अवश्य पालन करना चाहिए.
एक लेखक को सतत् अध्ययनशील होना चाहिए. उसे विभिन्न विषयों के पुस्तक, पत्र-पत्रिकाएं, समाचार-पत्र आदि का पठन-पाठन कर निरन्तर अपनी समझ एवं शब्द शक्ति का विस्तार करते रहना चाहिए.
किसी विषय पर लेखन से पूर्व, लेखक को संबंधित विषय का भलीभांति अध्ययन कर उसकी अवधारणा व विभिन्न पहलुओं से अवगत हो, एक सुदृढ़ रूप रेखा बना लेनी चाहिये. तत्पश्चात्, लेखन करनी चाहिए.
सामान्यतः, अध्ययन व लेखन में अनुपात 3:1 रखें. अर्थात् 1 घंटा लेखन हेतु तीन घंटा अध्ययन करें. इस अनुपात को बाद में बढ़ाकर 3:2 किया जा सकता है.
हमेशा अपने पास एक सादा कागज़ व कलम रखें, जैसे ही कोई विचार मन में कौंधे या किसी पद्य का कोई अंतरा या मुखड़ा सूझे उसे तुरंत कलमबद्ध करें. फिर उसके दायरे को विकसित कर उसे पूर्ण रूप दें.
रचना निर्माण में अतिशीघ्रता ना करें. पूर्ण संतुष्टि होने तक अवलोकन करें व त्रुटि पाए जाने पर परिमार्जित करें.
समकक्ष अथवा सहलेखकों से लेखन संबंधित विभिन्न पहलूओं पर लगातार विचार विमर्श करते रहें और लेखन की बारीकियों से अवगत होते रहें.
अपनी मौलिकता नष्ट न करें. लाख प्रभावित होने पर भी सफल व नामचीन लेखकों की नक़ल न कर स्वयं की कथ्य शैली विकसित करें.
व्याकरण का ज्ञान: लेखक का व्याकरण पर अच्छी पकड़ होना अति आवश्यक है. भाषिक अशुद्धि लेखकीय अपरिपक्वता की ओर इशारा करता है और छवि खराब भी करती है. पाठक अच्छे लेखक की भाषा को मानक मान पर उनसे सीखते हैं. अतः, लेखक को व्याकरण के विभिन्न पहलुओं यथा लिंग, वचन, कारक, विशेषण, सर्वनाम, चिन्ह, समास, अलंकार, छंद, पर्यायवाची शब्द, विलोम शब्द, इत्यादि का भली भाँती ज्ञान होना आवश्यक है. व्याकरण के सम्यक ज्ञान बिना उसकी भाषाई प्राचीर सुदृढ़ नींव हासिल नही कर पायेगी. इसी प्रकार छंद एवं अलंकार के ज्ञान बिना, शब्दों की भाषिक शक्ति व सीमाएं, मीटर ज्ञान, प्रभावी शब्द प्रयोग आदि का बोध नही हो पायेगा.
विभिन्न भाषाओं के प्रतिष्ठित पुस्तकों का अध्ययन
लेखक चाहे किसी भी भाषा में लिखे उसे अपनी भाषा तथा अन्य भाषाओं के प्रतिष्ठित लेखकों की प्रसिद्ध रचनाओं को एकाधिक बार अवश्य पढ़ जाना चाहिए. इन पुस्तकों के अध्ययन से लेखक में वैचारिक विस्तार, कल्पनाशीलता का फैलाव, भाषाई अवधारणा का विस्तार, भाषा का शैलीगत परिचय लाभ प्राप्त होता है. लेखक मौलिकता व गुणवत्ता के प्रति आग्रही होता है. यह गुण कालांतर में चलकर उसे सिद्ध लेखक के रूप में प्रतिष्ठित करता है. उदाहरणार्थ- हिंदी के लेखक को सूर, तुलसी, बिहारी, रहीम, रसखान, जायसी, मीरा के साथ-साथ भारतेंदु हरिश्चंद्र, ‘हरिऔध’, ‘दिनकर’, राम नरेश त्रिपाठी, प्रसाद, पन्त, मैथिली शरण गुप्त, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, जैनेन्द्र, उपेन्द्र नाथ ‘अश्क’, प्रेमचंद, हरिशंकर परसाई, ग़ालिब, मीर, कैफी आजमी, अली सरदार जाफरी, मंटो, इस्मत चुगताई, फैज अहमद फैज, कृशन चंदर आदि को अवश्य पढ़ना चाहिए. इसी प्रकार रविन्द्रनाथ टैगोर, शरत चंद्र चटर्जी, बंकिम चंद्र चटर्जी, महाश्वेता देवी, विजय तेंदुलकर, विष्णु सखाराम खांडेकर, सीता कान्त महापात्रा जैसे क्षेत्रीय भाषा के प्रतिष्ठित लेखकों की अनूदित रचनाओं को भी अवश्य पढ़ना चाहिए. वैश्विक लेखकों में तोल्स्तोय, चेखव, दोस्तोवस्की, कांट, जार्ज बर्नार्ड शॉ, गुन्नार मिर्डल, शेक्सपीअर, लॉन्गफेलो, मिल्टन आदि को भी पढकर अपनी साहित्यिक रूचि व क्षमताओं को यथाशक्ति विकास करते रहना चाहिए.
कौशल प्रवर्धन से जुड़े संस्थान
इसे दु:संयोग ही कहें कि लेखन से संबंधित कोई विश्वविद्यालय नही है जहाँ से कोई नियमित कोर्स करके लेखकीय डिग्री हासिल किया जा सके. अपितु, यह स्वप्रेरणा से खुद को अद्यतन व उन्नत करते रहने वाली जूनूनी विधा है. फिर भी वर्तमान में प्रमुख साहित्यिक संस्थाएं समय-समय पर विभिन्न कार्यशालाओं का आयोजन करती रहती हैं. इनमें सफल साहित्यिक रचनाओं की बारीकियां प्रबुद्ध एवं सफल लेखकों द्वारा साझा की जाती है. इसके अतिरिक्त नामचीन लेखकों द्वारा अपने सोशल मीडिया चैनल, ब्लॉग आदि के माध्यम से भी लेखन की बारीकियां बताई जाती है. इनसे लाभ उठाया जा सकता है.
प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कारों की सूची
हिंदी व अंग्रेजी समेत भारतीय संविधान की अष्टम सूची में शामिल भाषाओं में मौलिक लेखन को प्रोत्साहन देने हेतु विभिन्न संस्थाओं द्वारा कतिपय पुरस्कारों की स्थापना की गई है. जो कि संबंधित श्रेणी में प्रतिवर्ष लेखकों को दिए जाते हैं. इनमें प्रमुख पुरस्कार इस प्रकार हैं.
ज्ञानपीठ पुरस्कार: भारत संविधान की अष्टम सूची में शामिल किन्हीं 16 भाषाओं के ऐसे लेखक जिनका संबंधित भाषा साहित्य में अविस्मरणीय योगदान रहा हो को यह पुरस्कार उनकी उत्कृष्ट रचना हेतु प्रदान किया जाता है. इसके तहत 11 लाख रूपये की सम्मान राशि, प्रशस्ति पत्र एवं वागीश्वरी की ताम्र पट्टिका प्रदान की जाती है. भारतीय ज्ञानपीठ संस्था द्वारा दिया जाने वाले इस पुरस्कार को भारतीय साहित्य जगत् के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार की संज्ञा दी जाती है.
नवलेखन पुरस्कार: भारतीय भाषाओं में उत्कृष्ट लेखन हेतु युवा नवोदित लेखकों को अपनी पहली कृति पर यह पुरस्कार प्रदान की जाती है. इसके अंतर्गत 50 हजार रूपये की सम्मान राशि, प्रशस्ति पत्र व ‘वागीश्वरी की ताम्र पट्टिका’ चिन्हस्वरूप भेंट किया किया जाता है.
यश भारती पुरस्कार: उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा प्रदान किया जानेवाला यह पुरस्कार हिन्दी साहित्य में देश-विदेश में प्रदेश का नाम ऊँचा करनेवाले ख्याति प्राप्त साहित्यकारों को दिया जाता है. इसके अंतर्गत 11 लाख रूपये की सम्मान राशि, शाल व प्रशस्ति पत्र प्रदान की जाती है.
सरस्वती सम्मान: के. के. बिड़ला फाउंडेशन के द्वारा प्रदान किया जानेवाला यह पुरस्कार विगत दस वर्षों में अष्टम सूची में शामिल 23 भारतीय भाषाओं में प्रकाशित किसी उत्कृष्ट कृति पर प्रदान किया जाता है. इसके तहत 15 लाख लाख रूपये की सम्मान राशि व प्रशस्ति पत्र प्रदान की जाती है.
व्यास सम्मान: के. के. बिड़ला फाउंडेशन के द्वारा दिया जाने वाला यह पुरस्कार हिंदी में विगत 10 वर्षों में प्रकाशित किसी उत्कृष्ट कृति के लेखक को प्रदान किया जाता है. इसके तहत 4 लाख रूपये की सम्मान राशि व प्रशस्ति पत्र प्रदान की जाती है.
श्लाका सम्मान: हिंदी अकादमी की ओर से दिया जाने वाला यह सर्वोच्च सम्मान है. हिंदी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में समर्पित भाव से काम करनेवाले मनीषी विद्वानों, हिंदी के विकास तथा संवर्धन में सतत् संलग्न मूर्धन्य साहित्यकारों को यह पुरस्कार प्रदान किया जाता है. इसके तहत 2.00 लाख रूपये की पुरस्कार राशि, प्रशस्ति-पत्र व प्रतीक चिन्ह भेंट किये जाते हैं.
साहित्य अकादमी पुरस्कार: हिंदी समेत 24 भारतीय भाषाओं में यह पुरस्कार प्रतिवर्ष प्रकाशित किसी उत्कृष्ट साहित्यिक पुस्तक के लिए प्रदान किया जाता है. इसके तहत 1 लाख रूपये की सम्मान राशि, प्रशस्ति-पत्र, ताम्र प्रतीक प्रदान किया जाता है.
साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार: 35 वर्ष तक के युवा लेखकों को उनकी उत्कृष्ट रचनाओं के लिए प्रदान किया जाता है. इसके तहत 50 हजार रूपये की सम्मान राशि, प्रशस्ति पत्र, व ताम्र प्रतीक भेंट किया जाता है. इसके अतरिक्त विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा कतिपय पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं. जिनमें मध्यप्रदेश सरकार द्वारा ‘कबीर सम्मान’, के.के. बिड़ला फाउंडेशन का ‘बिहारी पुरस्कार’ जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार शामिल हैं.
अंग्रेजी भाषा हेतु पुरस्कार
डी.एस.सी. पुरस्कार: अन्तराष्ट्रीय महत्त्व का यह पुरस्कार दक्षिण एशिया के परिप्रेक्ष्य में राजनीति, संस्कृति, इतिहास, और व्यक्ति पर केंद्रित अंग्रेजी में लिखित उपन्यास या अंग्रेजी में अनूदित उत्कृष्ट कृति पर दिया जाता है. इसके अंतर्गत 25000 डॉलर की पुरस्कार राशि प्रदान की जाती है.
मैन बुकर पुरस्कार: राष्ट्रकुल या आयरलैंड के लेखक द्वारा लिखे गए अंग्रेजी के मौलिक उपन्यास के लिए यह प्रतिष्ठित पुरस्कार हर वर्ष प्रदान किया जाता है. इसके तहत 60 हजार पौंड की पुरस्कार राशि विजेता लेखक को प्रदान की जाती है.
नोबेल पुरस्कार: यह विश्व का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है. अंग्रेजी भाषा में आदर्शवादी साहित्य लेखन के लिए यह पुरस्कार संबंधित लेखक को प्रदान किया जाता है.
इस प्रकार लेखन का क्षेत्र साहस, जोखिम, सीख, यश और धन की संभावना से भरा पड़ा है. आवश्यकता है अपनी प्रतिभा को पहचान कर दृढतापूर्वक अनवरत प्रयास करने की.
By Krishna Kumar Choudhary,Bilaspur, Chhatisgarh
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