नाराज़गी
मेरे ना मिलने से खफा हुए वो,
जिनसे मुकम्मल कभी मुलाकात न हुई,
मैं कहता रहा, वो सुनती रही,
फिर कहती है मुझसे कोई बात न हुई,
कभी दीदार ना किया, ख्वाबों में उनका,
कभी भुला उन्हें, माजी की तरह,
उनसे मिलकर ऐसा कोई दिन ना ढला,
उनसे बिछड़कर ऐसी कोई रात न हुई,
जब मिले तो ऐसे जमकर बरसे,
चांद था गीला, धरती भींगी,
उस पर भी उनकी शिकायत तो देखो,
जो कहते हैं यह कोई बरसात न हुई।
नादानी
मेरा रूठ जाना जिन्हें मुनासिब नहीं
मगर हमारी दिलचस्पी का भी तो ख्याल नहीं
हम नजरें बिछाए उनकी राह देखते हैं
मगर उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं।
हमारी शिकायतों पर समझदारी कि गुहार लगाते हैं
जानते नहीं हैं प्रेम में दिमाग का काम नहीं
हम तो समझदारी कब का भूल आए हैं
और समर्पण का मापदंड हमें ज्ञात नहीं।
अपने मशगूल होने के के कई कारण बताते हैं वो
मगर हमारी नादानी के हम उन्हें समझने को तैयार नहीं
हमारे लिए संसार तो वही हैं, समझदारी, समर्पण सब
करता इतनी सी बात से वे वाक़िफ नहीं??
कबि परिचिति : – शिखा सिंह