गर्भ की आवाज

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PHOTO : Pixabay
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न जनो मुझे माँ एक ध्वनि न जाने कहाँ से आयी

 ढूंढू फिरूँ मैं बाबरी किस ओर से आवाज  आयी

 न दिखा मुझे किसी का सांया,न कोई भी परछाई

सोचूँ फिर माँ की  गुहार किसने मुझको लगाई

एक क्षण खुद को शांत किया,आँखें मैंने झुकायी

देखा  माँ  की  गुहार तो  मेरे  गर्भ से  ही आयी

रख गर्भ पर हाथ खुशी से मैं फूली न समायी

 गुहार  माँ  की  एक बिटिया  ने  जो थी  लगायी

 न जनो मुझे माँ,आवाज उसकी थी बेहद घबराई

 बोली माँ,बेटी न जनने की गुहार तूने क्यूं लगायी

 ये दुनिया तो बेहत खूबसूरत ये तू न समझ पायी

बोली बेटी,दुनिया तो सुंदर पर उसमें कई कसाई

 आज  मुझे  जन कर  तू बहुत खुश  हो जाएगी

पर कल मेरी फिक्र में तू असीमित दुःख पाएगी

 जब होंगी तुझसे थोड़ी दूर पर,चिंता तुझे खाएगी

क्या आज मेरी बेटी सही सलामत वापस आएगी

चिन्ता की लकीरें तेरे माथे पर न देख पाऊँगी

बेहतर इससे गर्भ में तेरे सुकून से जी जाऊँगी


कवि परिचय : मेरा नाम शिखा गर्ग है। मैं धौलपुर(राज.) की रहने वाली हूँ। मैंने B.sc जयपुर के एस. एस. जैन सुबोध गर्ल्स कॉलेज से की है और अभी B.ed द्वितीय वर्ष में अध्ययनरत हूँ।
मेरी रुचि कविताएं लिखना है जिसकी शुरुआत मैंने तीन वर्ष पूर्व की थी। मुझे कविता लिखने का प्रोत्साहन मेरे परिवार और दोस्तों से मिला है।मेरी कई कविताएं अमर उजाला काव्य की साइट पर प्रकाशित हो चुकी हैं। मुझे हिंदी की कविताएं पढ़ना बहुत पसंद है और मेरे पसंदीदा कवि श्री हरिवंश राय बच्चन जी है । 
Note : Shikha Garg is the SECOND PRIZE WINNER of QUATERLY CREATIVE WRITING COMPETITION (OCT_DEC,2018)

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