खुद की न कुछ बिसात हो तो बात है,
वो दिन को कहे रात हो तो रात है।।
वो डूबने कहे,तो खुद को छोड़ दें जो हम,
दरिया भी है, वही,वही तो पात है।।
अपनी ये बूंद ले के कहां घूमते रहें,
सागर में जा मिलें,ऐसी बरसात है।।
मैं और तुम,कभी तो अब हम से जा मिलें,
तनहाई कहां इतनी आबाद है।।
सूरज ये ,चांद,नीर औ ये डोलती पवन,
कैसे ये सबक़े वास्ते,खुलती किताब हैं।।
बेशक हैं कहीं दूर,नजरों से भी ओझल,
पर दिल में वो बैठे हैं,यही साथ हैं।।
तुम जीतते ही जाओ,जो खेलो कभी,
अपनी तो जीत है वही जब मात है।।
क्या उससे अलग हो के भी अपना वजूद है,
आदि भी वही,अंत व ही, वही नाबाद है।
खुद की न कुछ बिसात हो तो बात है,
वो दिन को कहे रात है,तो रात है।।