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अबकी बरसात में हम,कुछ ऐसे भीग गये,
लवरेज हुऐ प्रेम से,और द्वैत,द्वेष रीत गये।।

तन भींगा,मन भीगा,अंतरतम सीज गये
जो थे पाषाण ह्रदय,वो भी पसीज गये,।।

क्या सावन,क्या भादों और कहां तीज गये,
उर्वरता जाग उठी,जब ऐसे बीज गये।।

मधुरांकुर,फूट पड़े,खुशियों पे रीझ गये,
मधुरस जो छूट पड़े, पलकों को मींच गये।।

पहचाने अब देखो,रांझे और हीर गये,
जब समझे,समझाए,गा़लिब,ओ मीर गये।।

जब वारा सब तुमपे,तब ही अमीर भये
सब हारा, स्वीकारा,जगते जमीर गये।।

रंजना मिश्रा ” मधुरंजन”

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