लौह युग में ईशान्य भारत में विस्तृत मौर्य साम्राज्य के महामंत्री चाणक्य द्वारा लिखित अर्थशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथमें अर्थतंत्र की परिभाषा को व्यक्ति की आमदनी और सो आमदनी की उपयोग पद्धति से जोड़ा गया है। तथापि, वर्तमान काल में अर्थतंत्र की परिभाषा को स्थानीय एवं वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक राजस्व और आय-व्यय की पद्धति से जोड़ा जाता है। उत्पादन, वितरण और खपत के व्यवस्थापन के लिए विभिन्न प्रणालियों का विकास किया गया है, जिनमें से पूँजीवाद, साम्यवाद और समाजवाद में से किसी एक को अधिकतम देशों में व्यवहार में लाया गया है। उत्पादन के साधनों की प्राप्ति हेतु प्रतियोगिता के सिद्धांत पर खड़ा पूँजीवाद और उत्पादन के साधनों के आम स्वामित्व के सिद्धांत पर खड़ा साम्यवाद के बीच ज़मीन और आसमान का फ़रक़ है। दूसरी ओर, साम्यवाद और समाजवाद आपस में संबंधित सिद्धांत हैं, जिसकी भिन्नता समझने में थोड़ी कठिनाई हो सकती है।
परिचय
साम्यवाद सामाजिक वर्ग, मुद्रा एवं राज्य की अनुपस्थिति और उत्पादन के साधनों के आम स्वामित्व के सिद्धांत पर आधारित सामाजिक-आर्थिक प्रणाली की रचना में तल्लीन दार्शनिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक विचार पद्धति है। वर्तमान में साम्यवाद अंतर्गत मार्क्सवाद और अराजकतावाद लगायत पूँजीवाद, सामाजिक अर्थव्यवस्था और उत्पादन प्रणाली के ख़ासकर नकारात्मक पक्षों की जाँच करनेवाली विभिन्न अवधारणाओं को समावेश किया जाता है। पूँजीवादी समाज में आम जनता अर्थात् सर्वहारा को श्रम के आधार पर जीविकोपार्जन करने के लिए काम करना पड़ता है। दूसरी ओर, बाँकी के बूर्जुआ उत्पादन के साधनों के स्वामित्व द्वारा पूँजी इकट्ठा करते हैं। साम्यवादी नीति अनुसार सामाजिक क्रांति मज़दूर वर्ग को सत्ता में लाकर उत्पादन के साधनों पर आम स्वामित्व स्थापित कर सकती है, जो साम्यवाद की ओर समाज के परिवर्तन का प्राथमिक तत्व है।
समाजवाद उत्पादन के साधनों के आम स्वामित्व के राजनीतिक सिद्धांत और संबंधित क्रांतियों को समावेश करनेवाली राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विचार पद्धति है। इस संदर्भ में आम स्वामित्व सामाजिक, सामूहिक, सहकारी या अपक्षपाती हो सकता है। संसाधन के वितरण में बाज़ार की भूमिका, साधनों के आवंटन की योजनाएँ, संगठनों में प्रबंधन प्रणाली की संरचना और सामाजिक परिवर्तन लाने में वर्तमान सरकार की प्रभावकारिता जैसे विषय को लेकर समाजवाद की परिभाषाओं में फ़रक़ पाए जाने के बावजूद सामाजिक स्वामित्व को इस विचारधारा का प्राथमिक तत्व माना जाता है। इस हिसाब से साम्यवाद को भी समाजवाद का हिस्सा माना जा सकता है। आजकल के ज़माने में पर्यावरणवाद, नारीवाद और प्रगतिवाद जैसी विविध विचारधाराओं को समेत समाजवाद से जोड़ा जाने लगा है।
इतिहास
इतिहासविदों के मुताबिक़ पाँचवीं सदी में समता के सिद्धांत पर खड़ा वर्गहीन समाज की अवधारणा के विकास होने के बाद विभिन्न समय में विभिन्न क्षेत्रों में इस पद्धति को व्यवहार में लाया गया था। सोहलवीं सदी में अंग्रेज़ी लेखक टॉमस मोर द्वारा रचित यूटोपिया नामक ग्रंथ में भी जायदाद के आम स्वामित्व पर आधारित समाज का वर्णन किया गया है। अंग्रेज़ी गृहयुद्ध से लेकर यूरोपीय ज्ञानोदय तक के अभिलेखों से उस ज़माने की साम्यवादी विचारों की पुष्टि होती है। फ़्रांसीसी क्रांति में रेस्तिफ़ द ला ब्रेतोन, सिल्वैं मारेशाल और फ़्रौंस्वाँ नॉएल बाबोफ़ की देख-रेख में फ़्रांस में साम्यवाद को व्यवहार में लाया गया था। उन्नीसवीं सदी में औद्योगिक क्रांति के ख़िलाफ़ जारी की गई समाजवादी क्रांति में कार्ल मार्क्स और फ़्रेडरिक एंगल्ज़ द्वारा प्रतिपादित साम्यवादी घोषणापत्र में साम्यवाद की नई परिभाषा को सार्वजानिक किया गया था, जिसके बाद आधुनिक साम्यवाद की शुरुआत हुई।
आधुनिक समाजवाद से जोड़ी जानेवाली कई अवधारणाओं की उत्पत्ति आद्य एवं मध्य युग में हुई थी। प्राचीन मिस्र में धर्मतंत्र को अपनाया गया था जहाँ मज़दूरों को मंदिर और धान्यागार जैसी आर्थिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण जगहों की ज़िम्मेदारी दी जाती थी। इस पद्धति को धर्मतांत्रिक समाजवाद का नाम दिया गया है। प्राचीन यूनान में निजी संपत्ति को अर्थतंत्र के प्रमुख तत्व माना तो जाता था लेकिन शहर की आवश्यकताओं को बढ़ावा दिया जाता था। उसी प्रकार से चाणक्य की सलाह अनुसार चंद्रगुप्त द्वारा शासित मौर्य साम्राज्य को विश्व का प्रथम कल्याणकारी राज्य माना जाता है। तथापि, उन्नीसवीं सदी की अंतिम तिहाई में यूरोप में मार्क्सवाद पर आधारित समाजवादी पक्षों की स्थापना हुई। बीसवीं सदी के पहले हिस्से तक समाजवाद को सोवियत अर्थतंत्र से जोड़ा जाता था लेकिन 1968 में वियतनाम युद्ध की दीर्घीकरण पश्चात् पश्चिमी विश्व में नवीन वामपंथी समाजवाद की शुरुआत हुई, जिसमे आम स्वामित्व के साथ नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार, नारीवाद, एलजीबीटी अधिकार, गर्भपात अधिकार, लैंगिक भूमिका और नशालु पदार्थ संबंधी नियमों के सुधार जैसे मुद्दों को शामिल किया गया था। वर्तमान में समाजवाद में पर्यावरणवाद, नारीवाद और प्रगतिवाद जैसी विविध विचारधाराओं को समेत शामिल किया जाता है।
भिन्नताएँ
साम्यवाद में केंद्रीय सरकार के अधीन प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता अनुसार समाज की आर्थिक स्थिति को सबल बनाने में योगदान देता है और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी आवश्यकता अनुसार सो योगदान का फल मिलता है। सामाजिक वर्ग की अवधारणा को जड़ से उखाड़ा गया होता है और सभी उत्पादन के साधनों को आम जनता के स्वामित्व में रखकर सरकार द्वारा नियंत्रण किया जाता है। उत्पादन और खपत मुफ़्त में जनता की आवश्यकता अनुसार होती है, जिसकी वजह से पूँजीवाद में विद्यमान निजी संपत्ति और असमान आय जैसी अवधारणाएँ इस पद्धति में मौजूद नहीं होते हैं। साम्यवाद में धर्म का उन्मूलन किया जाता है और सभी जनता को एक माना जाता है।
दूसरी ओर, समाजवाद में केंद्रीय सरकार के अधीन प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता अनुसार समाज की आर्थिक स्थिति को सबल बनाने में योगदान देता है और प्रत्येक व्यक्ति को उसके योगदान के आधार पर लाभ प्राप्त होता है। सामाजिक वर्ग की अवधारणा को कायम रखा जाता है लेकिन उनके बीच रहे भिन्नताओं को कम करने की कोशिश की जाती है। इस पद्धति में निजी संपत्ति मौजूद होती है जिसकी वजह से औसत आमदनी में थोड़ी असमानता हो सकती है लेकिन उद्योग एवं उत्पादन पर आम जनता का स्वामित्व और गणतंत्रात्मक ढंग से चुना गया सरकार का नियंत्रण होता है। उत्पादन हेतु व्यक्तिगत एवं सामाजिक आवश्यकताओं को मध्यनज़र में रखा जाता है लेकिन वितरण में व्यक्तिगत क्षमता और योगदान को बढ़ावा दिया जाता है। समानता को समाजवाद का प्रमुख तत्व माना जाता है लेकिन साम्यवाद के विपरीत, इस पद्धति में धर्म निरपेक्षता को व्यवहार में लाया जाता है।
निष्कर्ष
हालाँकि नगर की आवश्यकताओं पर केंद्रित अर्थव्यवस्था का सिद्धांत सदियों से प्रचलन में रहा है, आधुनिक साम्यवाद और समाजवाद का इतिहास तुलना में नया है। उन्नीसवीं सदी में यूरोप में औद्योगिक क्रांति के दौरान धनवान व्यापारियों द्वारा हुए आम मज़दूरों के शोषण के विरोध में आधुनिक साम्यवाद और समाजवाद की शुरुआत हुई थी। इसीलिए ये दो शब्द पूँजीवाद के विलोम शब्द माने जाते हैं। आपस में संबंधित होने के बावजूद इन दो अवधारणाओं में थोड़ी-बहुत भिन्नता है। उदहारण के लिए, साम्यवादी समाज में सरकार द्वारा खाना, कपड़ा, निवास लगायत आधारभूत आवश्यकताओं की व्यवस्था होती है। दूसरी ओर, सामाजवादी समाज में व्यक्ति की क्षमता और योगदान अनुसार उसे लाभ प्रदान किया जाता है। तदर्थ, समाजवाद में श्रम और नवोन्मेष को पूजा जाता है। वास्तव में, अधिकतम समाजवादी समाज में पूँजीवाद और समाजवाद के मिलावट को व्यवहार में लाया गया है। साम्यवाद की सिद्धांत में ज़्यादा परिवर्तन नहीं हुए हैं लेकिन वर्तमान में समाजवाद से पर्यावरणवाद, नारीवाद, प्रगतिवाद जैसी अवधारणाओं को भी जोड़ा जाता है।
By Arnav Darnal