हाइफा दिवस

सोनिका धनगर

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वर्तमान में इजराइल- फिलिस्तीन विवाद के विषय में तो सभी लोगों को ज्ञात होगा। किंतु इजराइल देश के बनने के पीछे भारत देश से संबंधित गौरवमयी घटना के विषय में शायद ही कुछ लोगों को ज्ञात हो इसलिए आज उस विषय से संबंधित हाइफा दिवस के विषय में जाना जाए:

हाइफा दिवस प्रतिवर्ष भारत में भारतीय सेना द्वारा 23 सितंबर को मनाते हैं क्योंकि इस दिन भारतीय सैनिकों द्वारा असंभव से प्रतीत होते विजय से अवगत कराने के उपलक्ष्य में शहीद जवानों की स्मृति में यह दिवस मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि हाइफा के युद्ध से इजराइल देश कीआजादी का रास्ता खुला था। जब भारतीय सैनिकों ने तलवार ,भाले की सहायता से ही तुर्क जर्मनी की आधुनिक हथियार जैसे बंदूक ,मशीन गनो युक्त सेना को हराया था।

इस युद्ध का संपूर्ण वर्णन रवि कुमार की किताब “इजराइल में भारतीय वीरों की शौर्य गाथा” में किया गया है।जिसके अनुसार सन् 1918 में प्रथम विश्वयुद्ध में हाइफा शहर में तुर्की शहर का कब्जा था जिसके खिलाफ ब्रिटिश सेना की मदद के लिए हैदराबाद, मैसूर एवं जोधपुर से सैनिकों को भेजा गया। जिनका मुकाबला तुर्की,ऑस्ट्रिया और जर्मनी के सैनिकों से था जिनके पास तोप, बम इत्यादि आधुनिक हथियार थे और भारतीय सैनिकों के पास तलवार एवं भाले और ब्रिटिश सेना को हाइफा पहुंचकर ज्ञात हुआ कि विरोधी सेना तो काफी मजबूत एवं ताकतवर है जिसमें 1500 सैनिक है और भारतीय सेना जिसमें 400 सैनिक थे इसलिए ब्रिटिश सेना के ब्रिगेडियर जनरल एडमंड एल- नबी ने अपनी सेना को वापस बुला लिया परंतु भारतीय सैनिकों ने इस बात से इंकार कर दिया एवं कहां की हम यहां लड़ने के लिए आए हैं और बिना लड़े जाना हमारा अपमान होगा । अंत में सेना ब्रिगेडियर जनरल ने उन्हें अनुमति दे दी।

 दिन था 23 सितंबर की सुबह का जब भारतीय घुड़सवार एवं पैदल सैनिकों ने हाइफा शहर की ओर बढ़ना प्रारंभ किया उनका मार्ग माउंट कार्मेल पर्वत श्रृंखला के साथ लगता था। जब सेना 10:00 बजे हाइफा पहुंची तो माउंट कार्मेल पर तैनात 77 एमएम बंदूकों के निशाने पर आ गई किंतु जवानों ने सूझबूझ दिखाई और मैसूर लांसर्स की एक स्क्वाड्रन शेरवुड रेंजर्स के एक स्क्वाडर्न के समर्थन से दक्षिण की ओर से माउंट कार्मेल पर चढ़कर उस की ढलान पर दुश्मन के दो नौसैनिक तोपों पर कब्जा कर लिया तत्पश्चात 2:00 बजे ‘बी’बैटरी एचसी के समर्थन से जोधपुर लांसर्स ने आईफा पर आक्रमण किया एवं दुश्मनों की मशीनगनों युक्त मजबूत प्रतिरोध के बाद भी 3:00 बजे तक भारतीय घुड़सवारो ने आईफा पर कब्जा करके उसे 400 साल पुराने तुर्की साम्राज्य से मुक्त करवाया।

हीरो आफ हाईफा:

 हाइफा युद्ध के नायक, जोधपुर के मेजर दलपत सिंह शेखावत को शहर को मुक्त कराने में उनकी भूमिका को लेकर उन्हें हीरो आफ हाईफा के रूप में जाना जाता है। जिन्हें उनकी बहादुरी के लिए मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया है। एवं अन्य भारतीय सैनिक कैप्टन अमन सिंह और दफादर जोरे सिंह को इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किया गया है।

“दलपत सिंह ने ना केवल मेरे शहर का इतिहास परिवर्तित किया, अपितु संपूर्ण मध्यपूर्व का इतिहास परिवर्तित किया-आईफा के मेयर-यहाव”

युद्ध के पश्चात-हाइफा में उस समय युद्ध के दौरान बहा ईसमुदाय के आध्यात्मिक गुरु अब्दुल बहा के समर्थक तेजी से बढ़ रहे थे जिसके कारण उन्हें दुश्मनों द्वारा

 नजरबंद कर लिया गया था और उनकी जान पर खतरा बन गया था।

भारतीय सैनिको द्वारा उन्हें रिहा कराने के लिए योजना बनाई गई जिसमें वे सफल भी हुए जिसके पश्चात अल्पसंख्यक समुदाय के बहुत से लोगों ने भारत में शरण ली थी। आज भी इस समुदाय के करीब 20 लाख लोग भारत में रहते हैं।

हाइफा महत्वपूर्ण क्यों-हाइफा शहर समुद्र के किनारे बसा एक बंदरगाह था जो कि सामानों की पहुंच सेवा एवं रेल नेटवर्क के कारण महत्वपूर्ण था। साथ ही साथ भारतीय सैनिक गठबंधन की ओर से लड़ाई लड़ रहे थे जिससे जीत के पश्चात गठबंधन की शक्ति मजबूत हो गई।

तीन मूर्ति हाइफा चौक-दिल्ली के तीन मूर्ति चौक में जोधपुर ,मैसूर एवं हैदराबाद से भेजे गए सैनिकों की स्मृति में सन् 1922 में तीन मूर्तियां बनाई गई है। सन् 2018 के इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के भारत दौरे के पश्चात इसे तीन मूर्ति हाइफा चौक नाम दिया गया।

भारत -इजरायल संबंध- हाइफा की आत्मा:

2017 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने इजरायल यात्रा के दौरान भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि दी थी उसी प्रकार इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतनयाहू ने सन् 2018 में अपने भारत दौरे में प्रधानमंत्री जी को एक तस्वीर तोहफे में दी थी जिसमें भारतीय सैनिकों को हाइफा के युद्ध में ब्रिटिश सेना का नेतृत्व करते हुए दिखाया गया था ।इसराइल में भी भारतीय सैनिकों की भूमिका को याद करते हुए 2010 से प्रतिवर्ष हाइफा दिवस मनाते हैं। और सैनिकों के गौरवमयी योगदान के कारण आईफा शहर के नगर पालिका ने वर्ष 2012 से उनके किस्सों को कक्षा 3 से 5 के स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला किया था ।

इस प्रकार हाईफा का युद्ध जो भारत की अंतिम महान घुड़सवारी सेना अभियान थी ।जिसमे हमारे देश के सैनिकों ने अपने घर परिवारों से दूर रहकर अपने प्राणों की आहुति दी थी संपूर्ण मध्य पूर्व के इतिहास में विशिष्ट प्रभाव रखता है। हम सभी भारतवासियों को हमारे देश के सैनिकों की इस विजय का सम्मान करना चाहिए साथ ही हमें भी भविष्य में इस प्रकार की चुनौतियों के लिए तैयार रहना चाहिए।

सोनिका धनगर, रायपुर

SOURCEसोनिका धनगर
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