एक बार आगे जो बढ़ आये तो फिर पीछे देखने का मन नहीं करता,
मुझे उन यादो को फिर छुने का मन नहीं करता
दोस्तों के साथ आन्सु भी थे अछे, पर अब दुख आते भी हैं तो मेरा रोने का मन नहीं करता,
दोस्तों के साथ आन्सु भी थे अछे, पर अब दुख आते भी हैं तो मेरा रोने का मन नहीं करता,
मुझे उन यादो को फिर छुने का मन नहीं करता
ये नहीं कि मै खुश नहि, या मैं हूँ नराज़
बस अब मेरा वैसे रुठ के हस्ने का मन नहि करता
मुझे उन यादो को फिर छुने का मन नहीं करता
मेरा फ़ैस्ला मुझे गलत नहि लगता, पर अब मेरे हर फ़ैस्ले पर ऐत्बार करने का मन नहीं करता
मुझे उन यादो को फिर छुने का मन नहीं करता
वहा
कवि परिचय : प्रियंवदा सिंह
Note : Priyamvadha Singh won a Consolation PRIZE (POEM CATEGORY), in Quaterly Creative Writing Competition (OCT_DEC,2018) Organized by www.Monomousumi.com/HINDI
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