जीवन मूल्यदर्शन: चरैवती – चरैवती

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Photo : trauma-recovery
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आजीवन व्यक्ति कुछ न कुछ सीखता रहता है. किसी विद्वान के द्वारा जीवन को निम्नानुसार परिभाषित किया है.

जीवन की इनमे से एक या कई परिभाषाएं निर्धारित की जा सकती हैं.
जीवन एक चुनौती है : इसका मुकाबला करो. जीवन एक त्रासदी है : इसमें साहस रखो जीवन एक व्यथा है : इस पर विजय हासिल करो. जीवन एक यात्रा है :इसे पूर्ण करो.
जीवन एक जोखिम है : इसे ललकारकर उठाओ. जीवन एक संघर्ष है : इससे जूझो .
जीवन एक कर्त्तव्य है: इसे निष्पादित करो. जीवन एक अवसर है : इसका लाभ उठाओ.
जीवन एक स्वप्न है: इसे सच बनाने का यत्न करो. जीवन एक रहस्य है: इसे उद्घाटित करो.
जीवन एक वादा है: इसे पूर्ण करो. जीवन एक क्रीडा है: इसे नियमानुसार खेलो.
जीवन एक आनंद है : इसका पूर्ण अनुभव लो. जीवन एक गीत है: इसे मधुरता से गाओ.
जीवन एक सौंदर्य है: इसकी पूजा करो. जीवन प्रेम है, मधु है: इसका रस लो,ये जीवन को स्वर्ग में बदल देता है.


जीवन में यदि एक कदम भी गलत पड़ जाये तो फिसलकर गिर सकते हैं या कोई गलत निवेश करके अपनी पूँजी गँवा सकते हैं, या किसी ऐसे बेमेल सम्बन्ध से जुड़ जाएँ जो सफलता की ओर न ले जाये. अक्सर हम मार्गदर्शक स्तंभों को देखकर भी अनदेखा कर जाते हैं. फलस्वरूप जीवन में गलत दिशा का चुनाव कर बैठते हैं. तदनुसार जीवन की भूलभुलैयाँ में एक दुसरे को पुकारते, सही रास्ता देखने का संघर्ष करते हुए चलते रहते हैं. इसी जीवन यात्रा की अनिश्चितता की महीन धार पर चलते हुए एक दुसरे की आवश्यकता होती है, जो दैवीय शक्ति हो और मार्गदर्शक का भी कार्य करे. अतः आवश्यक है कि अपने चुनाव, अपने अनुभव, अपने विचारों में देश, काल, परिस्थितियों के अनुसार आवश्यक बदलाव करते चलें. सुप्रसिद्ध कवि, लेखक गुलज़ार कहते हैं : थोड़ा सा रफू करके तो देखिये / फिर से नई लगेगी / ज़िन्दगी ही तो है.


एक व्यक्ति क्या चाहता है और क्या नहीं चाहता है, यह उसके जीवन दर्शन (फिलोसौफी) और लक्ष्य पर निर्भर करता है. कई व्यक्ति सुबह बड़ी प्रसन्नता के साथ उठते हैं क्योंकि उनकी कुछ कर डालने की इच्छा बनी रहती है. परन्तु कुछ लोग बिस्तर से बाहर आने के लिए संघर्ष ही करते रह जाते हैं क्योंकि शनैः – शनैः यह उनकी आदत में शुमार होकर चलता रहता है. साथ ही ऐसे व्यक्ति डरते भी हैं कि पता नहीं क्या हो जायेगा ? सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग. कई अपने जीवन का उद्देश्य ढूँढने में ही आजीवन लगे रहते हैं. अन्य बहुत से अच्छे विचारों को झाड़ देते हैं क्योंकि हमारे पास उन विचारों के बारे में सोचने, मनन करने का समय ही नहीं रहता. सर्वप्रथम किसी भी रचनात्मक विचार को स्वीकार कर के ग्रहण करना सीखना होगा. तभी उसके क्रियान्वयन की योजना बन सकेगी.


एक रचनात्मक विचार अन्य लोगों की सेवा करना भी है. जब सेवा की जाती है तो मेवा भी उदारता पूर्वक प्राप्त होता जाता है. बहुत से उद्योगों, मॉल, होटलों, और शिक्षण संस्थाओं में एक बोर्ड लटका रहता है कि ग्राहक हमेशा सही है, ग्राहक प्रथम, ग्राहक राजा होता है, ग्राहक का संतोष ही हमारा सुख है, इत्यादि. कहने का तात्पर्य यह है कि सामान्य से अधिक सेवा. जब हम अपने चयनित लक्ष्य के क्षेत्र में अपने प्रयासों से श्रेष्ठता, उत्तमता हासिल कर लेते हैं तो जीवन में सफलता प्राप्त करना बाएं हाथ का काम हो जाता है. प्रयास की कमी होने पर अपनी प्रतिभा के उच्चतम स्तर पर पहुंच पाना कठिन हो जाता है. उच्चतम उपलब्धियां प्राप्त लोगों और कमतर प्राप्ति वाले व्यक्तियों के बीच एक बेहद बारीक सी रेखा है. ओलंपिक्स में भी १०० मीटर की तेज़ दौड़ में सेकंड के सौवें हिस्से से सोने और चांदी का पदक तय हो जाता है. किसी भी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता, उसकी श्रेष्ठता, उत्तमता के प्रति वचन बद्धता के अनुपात में होती है. यह सिर्फ हमारे हाथों में होता है कि हम अपने जीवन की गुणवत्ता कैसे सुधारें क्योंकि श्रेष्ठतम मानवीय सम्बन्ध जीत की मास्टर चाबी है. अतः बेहतर होगा कि समय – समय पर अपने जीवन मूल्यों में उत्तरोत्तर वृद्धि करते रहें.


ऐसा देखने में आता है कि हर रात लाखों लोग फुटपाथ पर सोते हैं क्योंकि उनके पास छत नहीं होती. करोड़ों की सुबह प्रतिदिन गरीबी में होती है और उनको पता भी नहीं होता कि दोनों समय खाना खाने के लिये क्या, कैसे, कितना किया जाये ? करोड़ों बच्चे कुपोषण, भयंकर सर्दी या गर्मी के कारण असमय ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, जिनको देखने वाला , जिनके लिए रोने वाला कोई नहीं होता ! न जाने कितनों को जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं रोटी, कपड़ा और मकान का पता ही नहीं होता. गरीब को कोई भले ही पैसा न दे लेकिन अपनी सेवाएं, अच्छे शब्द, अच्छे कर्म अवश्य दे सकता है ताकि सभी प्रसन्न हो सकें. इस प्रकार के कार्य अमूल्य होते हैं और दिल के अंतरतम से प्राप्त होते हैं. किसी को दिल से हंसने में,मुस्कुराने में मदद करें, किसी को दुर्घटना का सामना करने में मदद करें, किसी का तनाव, दर्द कम करने में सहायक हों. किसी ने सच ही कहा है कि यदि आप स्वयं न कर पायें तो मदद मांगें और यदि कोई मदद मांगने, देने आये तो अपेक्षित सहायता अवश्य करें.हमारी इस सहायता से एक भी मानव जीवन उत्कृष्ट बन पाया तो हमारा जीवन धन्य होगा.


एक अन्य जीवन मूल्य है दान देना. जब भी दान की बात की जाती है तो उसका तात्पर्य होता है, धन अथवा भौतिक संपत्ति. लेकिन जब अपना समय किसी के साथ व्यतीत करते हैं, सामने वाले की प्रतिभा को सराहते हैं या धैर्यपूर्वक सामने वाले की कठिनाई, दुःख सुनते हैं अथवा किसी के प्रति दया, रहम का प्रदर्शन करते है तो वह भी दान के अंतर्गत ही आता है.जिस समय आप इनमे से एक या कई या सभी कार्य कर रहे होते हैं तो आप प्रकृति निर्मित वृहद स्कीम को समझते हुए ईश्वरीय सार तत्व को स्वीकार कर रहे होते हैं. तदनुसार आप स्वार्थ के परे, लालच से दूर , या व्यक्तिगत आवश्यकताओं से हटकर सोच रहे होते हैं. तत्समय आप मानवता के उच्चतम शिखर पर विचरण कर रहे होते हैं. देना बड़ी कठिन प्रक्रिया होती है, किन्तु आपके भीतर एक अद्भुत चिंगारी होती है कि आप कोई भी बात , कोई भी चीज़ दूसरों के साथ बाँटना चाहते हैं. मानव के भीतर की क्षमता, प्रतिभा, व्यक्तित्व और मिल बाँटने का अवसर ह्रदय की गहराइयों से निकल कर बाहर आता है.


देने के बारे में सबसे मोहक बात ये है कि उसे प्राप्त करने के लिए कोई है. साथ ही साथ देने वाले को यह अहसास ही नहीं होता कि उसका प्रभाव कब तक, कहाँ तक चलेगा. सेवा और मानवता की शुरुआत ही अन्य की भावनाओं को समझने के सामर्थ्य के साथ होती है. जब आप सच में दूसरों के दर्द, ख़ुशी, भय,और भावनाओं को समझना आरंभ करते हैं यानि दूसरों के स्थान पर अपने को रखकर देख, महसूस कर सकते हैं, विचार करने लग जाते हैं तो इसी को समानुभूति कहा जाता है. समानुभूति का उच्चतम बिंदु वह है जब आप ये जान जाएँ कि दूसरों की आवश्यकताएं, उनका दर्द, दुख, ख़ुशी और आकांक्षाएं क्या हैं ? दान की भावना तब सबसे पवित्र हो जाती है जब उसके बदले में कुछ भी नहीं चाह जाता.
मुमकिन है आदमी का हिन्दू या मुस्लमान होना /
लेकिन गैर मुमकिन है आदमी का इंसान होना //
इस ज़माने में इंसानियत बमुश्किल आती है, तब ही वो बिना कोई बदला चाहे दूसरों की भलाई कर सकता है, सहायता कर सकता है. वो सभी मानसिक वृत्तियाँ जो प्रतिकूल, आलोचनात्मक या विरोधी प्रतिरोधक हों तो उसके चरित्र में कमी नज़र आती हैं. अच्छाई, भलाई का पालन कर चरित्र सर्वश्रेष्ठ बना सकते हैं. दृढ चरित्र से सही बात को उचित तरीके से करने का ज्ञान होता है. इसी दुनियां में उस चरित्र वाले मिल जाते हैं जो अपने कर्मों को सही निर्देशित करते हुए अपने लिए एक खूबसूरत और बेहतरीन भविष्य का निर्माण कर पाते हैं. ये ही वह पथ है जिससे जीवन में रंगीनी, गुणवत्ता और सर्वोत्कृष्ट योग्यता का प्रादुर्भाव होता है. एक दृढ चरित्र न केवल अपने सभी तत्वों और उर्जाओं को बेहतर जीवन के निर्माण के लिए सहायक होता है. साथ ही साथ जीवन पर संकट, आपदा के वक़्त मन – मस्तिष्क को संतुलित रखता है ताकि जीवन सदैव सही दिशा में चलता रहे, चाहे रास्ते में कितनी भी परेशानियाँ, कठिनाइयाँ क्यों न आये.


यह जीवन की एक बहुत बड़ी सच्चाई है कि हमें, हमारी योग्यताओं के अनुसार उपलब्धियां नहीं मिल पाती हैं. अतः आवश्यक होगा कि अपने आंसुओं को पोंछकर, अपनी निराशाओं से उबरकर चेहरे पर एक बड़ी सी मधुर मुस्कान लाकर, प्रगति, उन्नति के प्रयास में पुनः लग जाना ही श्रेयस्कर होता है. यदि आप किसी दिन कोई अच्छा कम नहीं कर पाते तो उससे किसी भी किस्म के नुक्सान का आकलन करना बंद कर दीजिये, हो सकता है कि उस दिन आपने, अगले दिन के लिए कोई महान उपलब्धि की संयोजना कर रखी हो. प्रसिद्ध कवि डॉ. हरिवंश राय ‘बच्चन’ जी अपने सदी के महानायक सितारे पुत्र को कहते थे “ यदि मन का हो जाये तो अच्छा लेकिन मन का न हो तो और भी अच्छा क्योंकि मन का न होने पर उसमे ईश्वर की मर्ज़ी छुपी रहती है.” अतः जब महत्वाकांक्षा के साथ विश्वास का योग बैठता है तो इच्छाएं पराजित हो जाती हैं. साथ ही हम यदि चाहतों में निरंतर परिवर्तन करते रहेंगे तो अपना मनचाहा किस तरह प्राप्त कर पाएंगे ? अतः सावधान रहें. परिवर्तन जीवन का नियम मानते हुए भी हमें अपनी चाहतों में ज़ल्दी – ज़ल्दी परिवर्तन नहीं करना है.


जीवन के सच्चे खजाने के रूप में हम एकता, अच्छाई, सच्चाई को अपने दिल – ओ – दिमाग में बैठाये रहते हैं. जीतने और हारने का अंतर हमेशा देश, काल और परिस्थितियों पर निर्भर करता है. हमें सदा याद रखना चाहिए कि यदि कोई काम सही न हो तो श्राप न दें और सही हो तो खुशियाँ न मनाएं क्योंकि आपको अच्छे या बुरे वातावरण में रहते हुए अपना सर्वश्रेष्ठ करना होता है. अतः करें और सफलता प्राप्त करें भले ही कोई भी, कैसी भी देश, काल और परिस्थितियां हों. शायद कुछ लोग इसे ही किस्मत कहते हैं.


हम सभी जानते हैं कि जीवन आकाश की तरह अपरिमेय है. इस निस्सीम जीवन का लक्ष्य कहीं ढूँढने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह यत्र – तत्र – सर्वत्र मौजूद है. अतः इस आलेख का समापन सुमित्रानंदन पन्त जी की निम्न पंक्तियों के साथ कर रहा हूँ.
जीना अपने में ही एक महान कर्म है / जीने का हो सदुपयोग यह मनुज धर्म है //
अपने में ही रहना एक प्रबुद्ध कला है / जग के हित रहने में सबका सहज भला है. //
जीवन मानव को ईश्वर प्रदत्त एक ऐसा उपहार है जिसके बिना हम उन चीज़ों का आनंद नहीं उठा सकते जो ईश्वर ने बनाई हैं. इसलिए सदा प्रयास होना चाहिए कि इस धरा पर अपना सर्वश्रेष्ठ जीवन व्यतीत किया जाये.

लेखक परिचिति : हर्षवर्धन व्यास ,गुप्तेश्वर, कृपाल चौक के निकट, जबलपुर (म.प्र.)


NOTE : Harsh Wardhan Vyas , is the WINNER of Quaterly Creative Writing Competition, June, 2019 organized by Monomousumi Services . For Result Please Check https://monomousumi.com/result-of-quarterly-creative-writing-competition/


SOURCEHarsh Wardhan Vyas
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  1. […] पारिवारिक सौहार्द्र निश्चित रूप से बढेगा. एकल तथा संयुक्त परिवार के प्रति नज़रिए में फर्क आएगा. अभी तक होता यही है कि कमाऊ पूत घर को धर्मशाला समझकर आते और चले जाते हैं. पत्नी, बच्चों के साथ सातों दिन चौबीसों घंटे निरंतर ४०-५० दिन रहने से एक विशेष किस्म की प्रतिबद्धता की अनुभूति हुई. माता-पिता, बच्चों, नाते-रिश्तेदारों के साथ बैठकर घरेलु खेल ताश, लूडो, शतरंज, कैरम आदि खेलने से आपसदारी में आशातीत वृद्धि हो रही है.  […]

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