कौई तौ है !!

By Fariya

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जहाँ देखो दूर दूर तक सूखी हुई बंजर ज़मीन.उसपे सूखे हुए लम्बे लम्बे पेड़ ,और काली रात का अँधेरा,कहिं दूर दिखती हुई चांद कि रौशनी मैं रहस्य भरा आशयाना ,ऐसा लगा जैसे कि उसकी जलती शमा ने हमे पुकारा हो.देखते ही देखते पता नहीं कब हमने आशियाने के दरवाज़े पर अपनी दस्तक दे डाली. काली हवाओ की आहट से वो दरवाज़ा खुलने लगा ,सांसे थमी हुई थी,ऐसा लग रहा था जैसे दिल और दिमाग इक दुसरे मे उलझे हुए से थे,शायद सही दिशा की तलाश मे थे.तभी दरवाज़े ने सोए हुए जिस्म को खटखटाया ,लगा कि जैसे किसी ने हमें पुकारा. टिक….टोक….टिक….टिक…….करती दो सुइया आपस मै खेल रही थी,मैं सहमी हुई सी थी और मेरे कदम आगे बढ़ते चले गए. अचानक से उपर से टपकती हुई खून की बूँदें मेरे ऊपर गिरी,जैसे वो हमारे जिस्म से बातें करना चाहती हो. फिर 1 चीख! आअअअअअअअअअअअअअअअअअअअअअ वौ लम्बी चीख आअअअअअअअअअअअअअ खङखङाती हुई खिङकियाँ चरररर चररर हिलती कुरसी साफ साफ ब्या कर रही थी कि (कौई तौ है)कौन हो तुम? मैंने कहा कौन हों तुम ? मेरी कांपती हुई  आवाज़ने मुझसे ही सवाल किया के यहाँ कौन हौ सकता हे ? पर मेरी खामौशी कौई जवाब ना दे सकी ! फिर अचानक से एक आवाज आई शशशशशशशशशशशह शौर ना कर ,मुझे शांति पसंद हे ; शांति सिर्फ शांति ; आखौं के सामने एक सफेद चादर छा गई ,फिर एक सुरत दिखाई दी ,जो ईतनी भयानक थी के रुह कांप उठती.सफेद बाल जो झूलते हुए उसके पेरो को छू रहे थे ,आँखो का लाल पन हमारे जिस्म का हीमोगलोबिन(Haemoglobin) चूस रहा था, उसकी बेठी हूई सांसे हमारा हाथ पकङने कि कोशिश कर रहीं थीं । मेरे दो कदम पीछे तो उसके दो कदम आगे फिर मेरे दो कदम पीछे तो उसके दो कदम आगे ।मेरा थकता हुआ जिस्म दीवार से जाकर रुक गया,जैसे दीवार ने मुझे जकड़ लिया हो ।मैने घबरा कर अपने आप को बचाने के लिये बराबर मे टंगी हुई लालटैन को सामने की और फैका ।मैरे दिल ने तो चीखना चाहा पर मेरी आवाज ने साथ ना दिया । फिर अचानक भयानक आत्मा गायब हो गई ।जैसे के मै एक सपना देख रही हूँ………….मै सीढयो से उपर जाने लगी ,मेरी हिम्मत साथ छौङ रही थी ,फिर लगा कौई मेरे कदमो को गिन्ता हुआ मेरे पिछे आ रहा हो ।चलते चलते मैं एक कमरे मे पहुँच गई ।सामने दिवार पर टंगी हुई तस्वीर कुछ कहना चाह रही थी ,शायद वो तस्वीर मुझे बुला रही थी ।लग रहा था जैसे वो किसी राजकुमारी की तस्वीर हो, जो इतनी खूबसूरत थी कि मेरी आँखे हट नही रही थी । फिर अचानक उस तस्वीर से वही भयानक खोफनाक लम्बे सफेद बालो वाली मेरी तरफ बढती हुई दिखाई दी। तब मेरी नजर का सफर शुरु हुआ, मेरी आँखे उसके उलटे  पैरो पर जाकर रुकी ,तब जो हालत थी मेरी उसी को कहते है” डरररर “आँखो को घुमाया कमरे मे तो जाना कि ये वो कमरा है जिसे खूनी कमरा कहें तो कोई बुराई नही दिवारो पर खून के दाग फर्श पर बिखरा हुआ खून गवाही दे रहा था कि “कोई तो है” मैने उस जगह से बाहर आना चाहा तो दरवाजे धममम से बंद हो गए सब कुछ हिलता हुआ नजर आया मुझे ,धीरे धीरे सब धुंदला होता गया,चीजे घूमने लगी ,फिर मैं घुटनो के बल जमीन पर गिर गई ,मेरा सर दिवार पर टकराया तभी मेरी आत्मा उस भयानक चुङेल ने खीच ली मै और मेरी आत्मा आज तक उस हवेली मे कैद है। मैं इन काली दिवारो मे थम कर रह गई हूँ यहाँ की दिवारे मुझे रोज सुबह शाम याद दिलाती है के ये जिंदगी “आधी मौत है” यहाँ का मनजर काली खोफनाक चादर है ,जो मैं चाह कर भी उतार नही सकती । कभी रात कभी दिन बस काँट रही हूँ इतने साल हो गए ये आज भी वही भयानक रात है जिस दिन आशयाने कि इन दिवारो ने मुझे जकङा था ,मेरी जिंदगी मे ऐसा पहली बार हुआ था ।उस पहले ऐहसास ने मेरी जिंदगी भर के डर के साथ हाथ मिला लिया ,लेकिन मुझे उम्मीद है, इंतेजार है किसे के आने का कहीं वो “तुम तो नही ?” मै  यहाँ अकेली नही हूँ मेरे साथ सालो पुरानी हस्तियाँ भी है पर मैं ……. मैं तो अकेली हूँ । ये आशयाना भी कभी किसी का महल हुआ करता था ।सालो पुरानी बात है इस महल की राजकुमारी जिसका नाम प्रयामिका था ,उसको महल के लोगो ने मार कर उसके खून से इस आशयाने की दिवार बना दी जब से ही ये महल भयानक खोफनाक हवेली मे तबदील हो गया है।आज भी वो रानी अपने दुश्मरो  को पुकारती है ,उसकी चीखती हुई आवाज़ मेरे दिल के दरवाज़े को खटखटाती है ।आज सालो बाद मुझे ये एहसास हो रहा है कि वो आ गई है ,जो मुझे और मेरी आत्मा को शांति देगी ,सुनोगे नही वो कौन है ?वो तुम हो …हाँ वो तुम ही हो ।

दश्य ….तुमहारे घर पर….

तुम रात के खाने के बाद कहानी पढ़ने के लिये एक कहानी की किताब खोलती हो जिसपर प्रयामिका की कहानी लिखी होती है ।तभी तुम्हारे सिर पर उपर से एक लालटेन गिरता है “खटटटट” तुम्हारी आत्मा तुम्हारा जिस्म छोड़कर उस किताब मे आ जाती है और तुम्हारा बेजान जिस्म उस किताब पर गिरता है ,तो किताब बंद हो जाती है और इस तरह तुम्हारी आत्मा यहाँ इस महल मे आ जाती है ।   

तुम :ये कहाँ हूँ मैं ? ये क्या हो रहा है ?तभी एक आवाज़ आती है ऐ लड़की चली जा, यहाँ जो आता है वो अपनी जिंदगी अपना जिस्म खून मै भिगोता है। मैने कहाँ मैं यहाँ कैसे आई ? कौन हो तुम ? शशशशशशशह शांत ,मुझे शांति पसंद है ,सिर्फ शांति । मैं वापस जाना चाहती हूँ ।मुझे….मुझे जाने दो प्लीज़ । तुम ऐसा क्यो करती हो ? तुम भी तो एक इंसान हो ? फिर तुम दूसरो को क्यो परेशान करती हो ?मुझसे कहो मैं मदद करुँगी तुम्हारी ! चल बैठ मैं सुनाती हूँ तुझे अपनी कहानी , इस महल का काला सच । 

 अब से सालो बरलो पहले की बात है कि ये काला महल एक सफेद महल हुआ करता था ।इस महल मे मेरा जन्म हुआ था,मेरा नाम रानी प्रयामिका था,मेरे माता पिता यहाँ के रानी राजा हुआ करते थे, महल के चारो तरफ घनी आबादी थी ।मेरे बड़े होकर एक घुड़सवार से प्यार करने लगी थी ,बहुत प्यार ,उसने किसी लड़की के प्यार की वजह से मेरा पूरा परीवार तबह कर दिया और मुझे ज़िंदा मार दिया मेरा खून इस महल की दिवारो पर चादर की तरह चढ़ा है मेरी आत्मा यहाँ रोज़ तड़पती है ,पुकारती है ,चिल्लाती है पर कोई नही आता ।यहाँ की काली दिवारे मेरे जिस्म मे रोज़ खंजर घुसेढ़ती है यहाँ जो आता है यहीं का हो जाता है ।

मैं कुछ कर सकती हूँ क्या ? क्या मैं ये सब रोक सकती हूँ ?

हवन ,बलियाँ ,कुरबानियाँ दे पाऔगी तुम ! बताऔ मुझे ?

कांपती हुई आवाज़ मे लड़की ने कहा  ,हाँ मैं करुँगी ………  

सात चुड़ेलो की बली चढ़ानी होगी ,हवन कराना होगा ,तब शायद मुझे मुक्ती मिले 

फिर इस महल मे भी बली दी गई ,हवन करवाया गया तब जाकर इस महल की दिवारो ने साँसे ली ,मुझे शांति मिली पर आखरी आवाज़ यही थी के मैं फिर वापस आऊँ ,रोज़ आऊँगी ,जहाँ अंधेरा होगा वही आऊँगी ,मेने अपनी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा अंधेरे मे गुज़ारा है ,मुझे शांति तो मिल गई पर सुकून नही मिला             

“मैं वापस आऊँगी ” ।  

By Fariya

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