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याद आते हैं हमे भगवान ;
जब भी आए हम पर कोई भी पीड़ा ,
क्या सच में! सिर्फ मुसिबतों में ही पुकारती होंगी उन्हें मीरा? ||

खुशियों के सागर में डूब ,
खो दिया हमने परमप्रभु का स्वरूप ,
उस मीरा के तो थे नारायण हर सुख-दुख के साथी ,
तभी तो बन पाई मीरा गिरधारी के दीये की बाती |
और हम तो सिर्फ बुलाते हैं उन्हें जब दिखती है हमे कोई भी पीड़ा,
क्या सच में ! ऐसे ही बुलाती होगी उन्हें मीरा? ||

हम तो छोड़ देते हैं कुछ ही क्षण में सारी आस,
पहचानते ही नहीं हैं परमपरमेश्वर को जो रहते हैं सदैव हमारे पास |
फस जाते हैं इस जग की माया के अंदर,
तब लगने लगता है यह मोह हमें बहुत ही सुंदर |
ईश्वर को तो सिर्फ बना देते हैं हम अपने स्वार्थ के साथी ,
क्या सच में ! मीरा भी कृष्ण महिमा हमारी तरह स्वार्थ के लिए थी गाती ? ||

अपने दो दिन के प्रेम के लिए छोड़ने को सब कुछ रहते हैं हम तत्पर ,
पर भूल जाते हैं उस प्रेमी को जिसका हाथ था रहा जीवन भर हमारे सर पर |
हममें और मीरा में यही था बस अंतर,
कि जान लिया था उसने सच्चे प्रेम का मंतर |
क्या कभी हमारे बुलाने पर भी आएंगे कान्हा,
क्या हम भी जान पाएंगे उन्हें जितना मीरा ने था जाना ? |
शायद हम कभी समझ ही नहीं सकते उस दीवानी की पीड़ा ,
तभी तो लगती है आसान वो राह हमें जिस पर चली थी मीरा ||

           – राधिका


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